16 अगस्त 2024 को चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर और हरियाणा समेत दो राज्यों में विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान किया. चुनाव आयोग की घोषणा के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे. वहीं, हरियाणा में महज एक चरण में ही चुनाव कराए जाएंगे. दोनों राज्यों के चुनाव के नतीजे 4 अक्टूबर 2024 को घोषित किए जाएंगे. -Jammu and Haryana Election date
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में किसी भी कीमत पर 30 सितंबर तक चुनाव कराए जाने चाहिए थे. वहीं, हरियाणा में वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 3 नवंबर को समाप्त हो रहा है. ऐसे में लोगों के जेहन में एक सवाल उठ रहा है कि कई बार से हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव एक साथ कराए जा रहे थे. लेकिन अबकी बार चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव को एक साथ नहीं कराने का फैसला क्यों लिया? -Jammu and Haryana Election date
बता दें, चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र में विधानसभा का चुनाव इन राज्यों के चुनावों के साथ नहीं कराए जाने को लेकर दलील भी पेश की. चुनाव आयोग ने बताया कि इस दौरान महाराष्ट्र में त्योहारी सीजन होता है. साथ ही दो राज्यों में एक साथ चुनाव कराए जाने की वजह से सुरक्षा का मुद्दा भी है. सेक्योरिटी फोर्सेज की कमी हो सकती है. इसके अलावा अभी बारिश की वजह से चुनाव आयोग के अधिकारी महाराष्ट्र की परिस्थितियों का जायजा नहीं ले पाए हैं. -Jammu and Haryana Election date
लेकिन चुनाव आयोग की ये दलीलें कितना उचित हैं. लोगों के मन में क्यों उठने लगे हैं सवाल? आइए, यहां पर समझने की कोशिश करते हैं.
दरअसल, 2019 में हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव एक साथ कराए गए थे और दोनों राज्यों में सरकारों का गठन भी थोड़े दिनों के अंतराल में ही हुआ था. हरियाणा में वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 3 नवंबर को समाप्त हो रहा है. वहीं, महाराष्ट्र वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर को समाप्त हो जाएगा. अब सवाल यह है कि दोनों राज्यों की विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने में 23 दिनों का अंतर है. इतने दिनों के अंतर के एक राज्य में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया गया और दूसरे राज्य के लिए वजह बताकर चुनाव आयोग ने पल्ला झाड़ लिया.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान को लेकर चुनाव आयोग ने स्वतंत्रता दिवस के एक दिन बाद ही पेश की है. 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले पर झंडा पहराने के बाद देश को किए गए संबोधन में बोले कि वन नेशन, वन इलेक्शन से देश आगे बढ़ेगा. बार-बार चुनावों में जाने की झंझट खत्म हो जाएगी. इससे कम खर्च करना पड़ेगा और पैसा बचने पर उसको विकास कार्यों में लगाया जा सकता है.
अब सवाल यह है, क्या चुनाव आयोग प्रधानमंत्री मोदी से बड़ा हो गया है. उनकी इच्छाओं पर अपनी मुहर नहीं लगा पा रहा है या वह पीएम के भाषण से अलग पार्टी के दिशानिर्देशों के मुताबिक चल रहा है. बता दें, इसके पहले भी चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर कई बार सवाल खड़े किए जा चुके हैं. इस तरह के आरोप लगाए जा चुके हैं कि चुनाव आयोग निष्पक्ष तरीके से चुनाव नहीं कराता है. वह विपक्ष के नेताओं पर कार्रवाई तो करता है लेकिन सत्ता पक्ष की तरफ देखता तक भी नहीं है. इसके अलावा चंडीगढ़ में मेयर के चुनाव में चुनाव आयोग के अधिकारी ने क्या कारनामा किया था, जिसे कैमरे में कैद होने के बाद पूरे देश ने देखा था.
मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सर्वोच्च अदालत ने सारे सबूतों को देखने और जांच करने के बाद विजयी घोषित किए गए प्रत्याशी के अधिकारों पर रोक लगाकर चुनाव को कैंसिल करके फिर से चुनाव कराए जाने का आदेश दिया, जिसके बाद चुनाव होने पर दूसरी पार्टी का प्रत्याशी चुनाव में जीत हासिल किया.
चुनाव आयोग के इस तरह के रिकॉर्ड को खंगालने के बाद आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े होना लाजिमी है. माना जा रहा है कि जिन दो राज्यों के लिए चुनाव की तारीखों का ऐलान किया गया है. उसको भाजपा अपने लिए मुफीद मानतर चल रही है. भाजपा को ऐसा लग रहा है कि लोकसभा चुनावों में हरियाणा में उसको पांच सीटों पर जीत हासिल हुई थी, जिसके आधार पर शायद अबकी बार भी उसे बहुमत मिल जाए.
अगर इन दोनों राज्यों के नतीजे भाजपा के उम्मीदों के मुताबिक, उसके फेवर में आते हैं तो उसको वह इस तरह से प्रचारित करने की कोशिश करेगी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू अभी कायम है. हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में जीत मिलने पर वह पूरी तरह से महाराष्ट्र के चुनावों में भुनाने की कोशिश करेगी. जबकि महाराष्ट्र की स्थिति भाजपा के लिए बहुत नाजुक हो गई है. महाराष्ट्र की राजनीति को समझने वाले विश्लेषकों का मानना है कि महाराष्ट्र में भाजपा और उसके सहयोगी दलों की स्थिति काफी कमजोर हो चुकी है. भाजपा के बारे में तो यहां तक कहा जा रहा है कि वह अपनी आधी सीटें अबकी बार के विधानसभा चुनावों में हार सकती है. इसके अलावा अजीत पवार की एनसीपी का बहुत बुरा हाल है. अजीत पवार को महाराष्ट्र की जनता धोखेबाज के तौर पर देखने लगी है. कमोबेश यही हाल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना का भी है.
लेकिन, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में उम्मीदों के मुताबिक नतीजे आने पर भाजपा इसको जोरदार तरीके से महाराष्ट्र में भुनाने में लगेगी, जिससे उसे उम्मीद है कि शायद कुछ असर पड़ जाए और हार भी हो तो सम्मानजनक हार हो, बुरी हार नहीं होनी चाहिए.
वहीं, महाराष्ट्र की राजनीति में गहरी पकड़ रखने वाले जानकारों का मानना है कि महायुति की सरकार किसी भी हाल में सत्ता को गंवाना नहीं चाह रही है जिसकी वजह से वह राज्य में कई कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा कर रही है. अभी हाल ही में राज्य सरकार ने मध्य प्रदेश की तर्ज पर लाडली बहना योजना की शुरुआत की है, जिसकी वहली किस्त जारी की गई है. जल्द ही दूसरी किस्त भी रिलीज की जानी है. इस योजना में गरीब परिवारों की महिलाओं के लिए 1500 रुपये हर महीने दिए जाते हैं. ऐसे में कम से कम दो किस्त मिलने पर शायद कुछ वोट महायुति के प्रत्याशियों के मिलें.
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सरकार की मंशा कुछ तरह की हो सकती है. जिसकी वजह से राज्य की तरफ से केंद्र को हरा सिग्नल नहीं मिला होगा तो चुनाव आयोग को इस तरह के दिशानिर्देश मिल सकते हैं कि फिलहाल महाराष्ट्र में चुनाव की तारीखों का ऐलान न किया जाए.
गौरतलब है कि चुनाव आयोग खुद को बचाने के लिए चाहे जो दलील दे लेकिन लोगों के मन ईसी के खिलाफ जो अविश्वास पैदा हुआ है उसके बारे में किसी के मन में जो सवाल पैदा हो रहे हैं उसको एक-एक करके संतुष्ट कर पाना तो मुश्किल लगता है लेकिन चुनाव आयोग को ज्यादा निष्पक्ष होकर इस तरह के फैसले लेने चाहिए न कि किसी एक पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए काम करना चाहिए.
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