Indira Gandhi: बेड पर पड़ी थीं गोलियों से छलनी इंदिरा गांधी, ऑपरेशन थिएटर छोड़ भाग गया टेक्निशियन | Indira Gandhi Death Story after being shot technician ran away leaving on bed operation theater in AIIMS

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एम्स की तत्कालीन निदेशक ने अपनी आत्मकथा में बताई कहानी

‘द वूमन हू रन ऑल एम्स’ के अनुसार, भार्गव जब एम्स की निदेशक बनीं तो उनके कार्यकाल के पहले ही दिन उन्हें अपने कॅरिअर की सबसे गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ा। जिस दिन उन्हें एम्स में बतौर निदेशक कार्यभार संभालना था, उसी दिन सुबह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके दो सिख अंगरक्षकों ने गोलियों से भून दिया था। यह हमला ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ में सेना द्वारा स्वर्ण मंदिर में की गई कार्रवाई का प्रतिशोध था। उस समय डॉ. भार्गव की उम्र 54 साल थी। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि इंदिरा गांधी को ऑपरेशन थियेटर में ले जाने से पहले ही उनकी नब्ज बंद हो चुकी थी।

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अपनी किताब में डॉ. भार्गव लिखती हैं “इंदिरा गांधी की नब्ज बंद होने के बाद भी ऑपरेशन थियेटर में उन्हें लगातार खून चढ़ाया जा रहा था। उन्हें कार्डियोपल्मोनरी बाईपास मशीन पर रखा गया और लगभग चार घंटे तक उन्हें होश में लाने का असफल प्रयास किया गया, लेकिन यह लड़ाई हम पहले ही हार चुके थे। उनका अत्यधिक खून बह चुका था। उनके शरीर में 33 गोलियां लगी थीं। जिनमें से कई आर-पार हो गई थीं और कुछ अंदर ही रह गई थीं।” डॉ. भार्गव ने अपनी किताब में बताया है “एम्स के ऑपरेशन थिएटर में मौजूद परफ्यूजनिस्ट (वेंटीलेटर ऑपरेटर) एक युवा सिख था। जब उसे पता चला कि इंदिरा गांधी को सिखों ने गोली मारी है तो वह ऑपरेशन थिएटर से भाग गया। इसके बाद दूसरा ऑपरेटर लाना पड़ा।”

राजीव गांधी ने मां को दी थी सुरक्षा संबंधी चेतावनी

95 साल की हो चुकी डॉक्टर भार्गव लिखती हैं “गोलियों ने इंदिरा गांधी के दाहिने फेफड़े और लिवर को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया था। जिससे खून रुक नहीं रहा था। हालांकि सर्जन खून रोकने की कोशिश में लगे थे, लेकिन गोलियां उनके शरीर से निकल-निकलकर फर्श पर गिर रही थीं। एक स्वास्थ्यकर्मी लगातार उनकी गर्दन की नस के जरिए खून चढ़ाता रहा, लेकिन रक्तस्राव थमता ही नहीं था। इस दौरान ब्लड की कमी भी महसूस की गई। इसके बाद कई घंटे दिल्ली के विभिन्न अस्पतालों में बी-निगेटिव और ओ-निगेटिव रक्त की तलाश में गुजर गए।”

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डॉ. भार्गव ने अपनी आत्मकथा में इंदिरा गांधी की हत्या के अध्याय में सबसे बड़ा खुलासा करते हुए लिखा है कि प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के लिए जाने से पहले राजीव ने उन्हें बताया था कि उन्होंने अपनी मां इंदिरा गांधी को उनके एक सिख सुरक्षा गार्ड के बारे में चेतावनी भी दी थी। उस दौरान राजीव गांधी हैरान और शांत दिख रहे थे। डॉ. भार्गव लिखती हैं कि उस समय कोई नहीं जानता था कि राजीव दोनों हत्यारों यानी बेअंत सिंह और सतवंत सिंह में से किसकी बात कर रहे थे। हालांकि राजीव गांधी ने इंदिरा गांधी से संदेह के आधार पर क्या बताया। इसका किताब में कोई जिक्र नहीं है।

एम्स की निदेशक की नियुक्ति पर पड़ा प्रभाव

डॉ. भार्गव बताती हैं कि इंदिरा गांधी की मृत्यु का असर उनकी निदेशक नियुक्ति पर भी पड़ा। जिसे इंदिरा गांधी ने ही मंजूरी दी थी। उस मंजूरी की अंतिम पुष्टि एम्स की गवर्निंग बॉडी को करनी थी, लेकिन जिस बैठक में यह होना था, वह उसी दिन ही प्रस्तावित थी। जो इंदिरा गांधी की हत्या के बाद स्थगित कर दी गई। इसके बाद 13 दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया। बाद में राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली फाइल डॉ. भार्गव की नियुक्ति की साइन की। डॉ. भार्गव ने अपनी किताब में ये भी बताया है कि साल 1961 में रेडियोलॉजी विभाग का कार्यभार संभालने के एक साल बाद 1962 में उन्हें प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सीने का एक्स-रे करने की जिम्मेदारी मिली।

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इसके अलावा अपने कॅरिअर में डॉ. भार्गव ने नेहरू, इंदिरा, राजीव और राहुल गांधी का भी इलाज किया। उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी के फेफड़े में एक सेंटीमीटर की गांठ का भी समय पर पता लगाया। जिससे कैंसर का शुरुआती चरण में ही निदान हो सका और न्यूयॉर्क में सफल इलाज संभव हुआ। उन्होंने उस दौर को भी याद किया जब वीआईपी लोग विशेष इलाज की मांग कर प्रशासन पर दबाव बनाते थे। सांसद अपने रिश्तेदारों के इलाज के लिए सिफारिशें करते और कई बार प्रशासनिक फैसलों में हस्तक्षेप भी करते थे।



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