India’s Strategic Move: Understanding the Rupee-Based Oil Deal with UAE | AIRR News

1
54

India’s Strategic Move: Understanding the Rupee-Based Oil Deal with UAE | AIRR News

भारत का रणनीतिक कदम: UAE के साथ रुपये आधारित तेल समझौते को समझना | एआईआरआर समाचार

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है जो अपनी तेल की जरूरत का 85 प्रतिशत से अधिक हिस्सा आयात पर निर्भर करता है। इसलिए, भारत को अपने तेल के आयात को अधिक सस्ता, विविध और अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के अनुरूप बनाने की जरूरत है। इसके लिए, भारत ने अपनी मुद्रा को वैश्विक रूप से स्वीकार्य बनाने का प्रयास किया है, ताकि वह अपने तेल के आयात के लिए अन्य मुद्राओं के साथ व्यापार कर सके। आज की इस वीडियो में हम जानेगे क्या है इस सबके मायने और आने वाले समय में इसका क्या प्रभाव होगा भारतोय अर्थव्यवस्था पर। 

भारत और यूएई के बीच रूपये में तेल खरीद का पहला सौदा इसी दृष्टि का परिणाम है। इससे पहले, भारत ने रूस से भी कुछ तेल के आयात को रूपये में ही निपटाया था। यह तब हुआ, जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण करने के बाद पश्चिमी देशों के दबाव का सामना करना पड़ा जिन्होंने उसके तेल के आयात पर प्रतिबंध लगाए थे भारत ने इस मौके का फायदा उठाया और रूस से तेल खरीदने में की शुरुआत की, जिससे भारत को अरबों रूपये की बचत हुई।

भारत ने जुलाई में यूएई के साथ रूपये में व्यापार करने की समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए थे। इसके बाद, भारत की प्रमुख रिफाइनरी, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) ने अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी (ADNOC) से एक मिलियन बैरल तेल खरीदने के लिए रूपये में भुगतान किया। इससे भारत और यूएई के बीच व्यापार को आसान और सस्ता बनाने का उद्देश्य था, क्योंकि डॉलर में राशि रूपांतरण की जरूरत नहीं पड़ी थी।

आमतौर पर, तेल के आयात के लिए डिफॉल्ट भुगतान मुद्रा अमेरिकी डॉलर ही रही है, जो तरलता और कम हेजिंग लागत प्रदान करती है। लेकिन, भारतीय रिजर्व बैंक ने रूपये की अंतरराष्ट्रीय भुगतान में भूमिका को बढ़ाने के लिए ये कदम उठाए हैं, और पिछले साल से बैंकों को 18 देशों के साथ रूपये में व्यापार करने की अनुमति दी है।

आपको बता दे कि भारत और UAE के बीच रूपये में तेल लेनदेन का ये मामला नया नहीं है बल्कि इसका इतिहास 1950 के दशक से शुरू हुआ था, जब भारतीय रुपया यूएई, कुवैत, बहरीन, ओमान और कतर में वैध मुद्रा के रूप में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था। लेकिन 1966 में, जब भारत ने अपनी मुद्रा के मूल्यांकन में कमी की, तो इन देशों ने अपनी स्वतंत्र मुद्राओं का परिचय किया, और भारतीय रुपये का उपयोग कम कर दिया। तब से, भारत और यूएई के बीच तेल के आयात के लिए डिफॉल्ट भुगतान मुद्रा अमेरिकी डॉलर रही है।

लेकिन भारत ने अपनी मुद्रा को वैश्विक रूप से स्वीकार्य बनाने के लिए कभी हार नहीं मानी। भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ रूपये में व्यापार को बढ़ाया, जैसे कि नेपाल, भूटान, श्रीलंका, बांग्लादेश और मालदीव। भारत ने अपने अफ़्रीकी और एशियाई साझेदारों के साथ रूपये में व्यापार को बढ़ाया, जैसे कि जिम्बाब्वे, मॉरीशस, इंडोनेशिया और वियतनाम। भारत ने अपने बृहत्तर एशियाई और यूरोपीय साझेदारों के साथ रूपये में व्यापार को बढ़ाया, जैसे कि जापान, चीन, रूस और जर्मनी।

बाकि भारत और UAE के बीच रूपये में तेल खरीद का ये सौदा न केवल दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों को मजबूत करेगा, बल्कि भारत को अपनी मुद्रा को वैश्विक रूप से स्थापित करने में भी मदद करेगा। भारत की मुद्रा का वैश्विक उपयोग बढ़ने से भारत को विदेशी मुद्रा के भंडार को बचाने, विदेशी मुद्रा के भण्डार को कम करने और विदेशी मुद्रा के दाम में उतार-चढ़ाव के प्रभाव को कम करने में लाभ होगा।

भारत और यूएई के बीच रूपये में तेल खरीद का पहला सौदा इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का एक उदाहरण है, जो भारत को अपनी आर्थिक स्वावलंबनता और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने में मदद करेगा। यह सौदा भारत और यूएई के बीच एक लंबे समय से चल रहे सहयोग का भी प्रतीक है, जो दोनों देशों के लिए लाभदायक है।

#india #rupee #oildeal #UAE #2024 #airrnews

RATE NOW

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here