The Alarming Impact of Rising Burden on India’s Economic Condition

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Foreigner कर्ज या बाहरी ऋण वह है जो एक देश को दूसरे देशों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों या Foreigner निजी करदाताओं से लिया जाता है। Foreigner कर्ज का उद्देश्य आमतौर पर विकास कार्यों, आवश्यक आयात, राष्ट्रीय बजट की कमी को पूरा करना या अन्य कर्जों का भुगतान करना होता है। विदेशी कर्ज के फायदे और नुकसान दोनों होते हैं। फायदे में यह आता है कि विदेशी कर्ज से देश को वित्तीय सहायता मिलती है, जिससे वह अपनी आर्थिक वृद्धि और विकास को बढ़ावा दे सकता है। नुकसान में यह आता है कि विदेशी कर्ज से देश को ब्याज और मुद्रास्फीति का सामना करना पड़ता है, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति ज्यादा बिगड़ सकती है।

भारत एक ऐसा देश है जिसने पिछले डेढ़ दशक में Foreigner कर्ज का बोझ लगातार बढ़ते देखा है। वर्ष 2006 में Foreigner ऋण का निरपेक्ष मूल्य 139.1 अरब अमेरिकी डालर था और अब यह 620.7 अरब अमेरिकी डालर है। हालांकि, इस दौरान भारत की जीडीपी में भी कई गुना बढ़ोतरी हुई है। सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में बाहरी ऋण स्थायी स्तर पर बना हुआ है।

इस वीडियो में हम भारत पर Foreigner कर्ज और कमाई के बीच के संबंध पर जानकारिया सांझा करेंगे। तो कही जाइएगा नहीं।  नमस्कार आप देख रहे है AIRR न्यूज़।

भारत का Foreigner कर्ज दो प्रकार का है, एक दीर्घावधि और दूसरा है लघुअवधि।

दीर्घावधि कर्ज वह है जिसकी परिपक्वता एक साल से अधिक होती है। लघुअवधि कर्ज वह है जिसकी परिपक्वता एक साल या उससे कम होती है। भारत के विदेशी कर्ज का अधिकांश भाग दीर्घावधि कर्ज है। मार्च 2023 के अंत में भारत के विदेशी कर्ज का 79.4 फीसदी भाग दीर्घावधि कर्ज था, जबकि 20.6 फीसदी भाग लघुअवधि कर्ज था।

आपको बता दे कि भारत का Foreigner कर्ज चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। जिसमे सरकारी और सरकारी गारंटेड, निजी गैर-गारंटेड, बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं का, और अन्य विदेशी कर्ज। सरकारी और सरकारी गारंटेड कर्ज वह है जिसे सरकार या उसके द्वारा गारंटी दी गई संस्थाओं ने लिया है। निजी गैर-गारंटेड कर्ज वह है जिसे निजी क्षेत्र के उद्यमी, निगम, और अन्य संस्थाओं ने लिया है। बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं का कर्ज वह है जिसे भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थाओं ने Foreigner बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से लिया है। अन्य विदेशी कर्ज में विदेशी मुद्रा जमा, विदेशी मुद्रा स्वाप, विदेशी मुद्रा फ्यूचर्स, Foreigner मुद्रा ऑप्शन, विदेशी मुद्रा फॉरवर्ड, विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव्स, और अन्य विदेशी मुद्रा संबंधित ऋण शामिल हैं।

भारत के Foreigner कर्ज की संरचना और स्रोत के आधार पर विश्लेषण करने से कुछ महत्वपूर्ण बिंदु प्रकाश में आते हैं। पहला बिंदु यह है कि भारत के Foreigner कर्ज का अधिकांश भाग निजी क्षेत्र द्वारा लिया गया है। मार्च 2023 के अंत में निजी क्षेत्र का Foreigner कर्ज 81.2 प्रतिशत था, जबकि सरकारी क्षेत्र का विदेशी कर्ज 18.8 प्रतिशत था। इसका मतलब यह है कि निजी क्षेत्र ने विदेशी पूंजी का अधिक उपयोग किया है, जो उसकी विकास और निवेश की गति को दर्शाता है। दूसरा बिंदु यह है कि भारत के विदेशी कर्ज का अधिकांश भाग रुपये में लिया गया है।

मार्च 2023 के अंत में रुपये में लिए गए विदेशी कर्ज का हिस्सा 37.4 प्रतिशत था, जबकि अमेरिकी डॉलर में लिए गए Foreigner कर्ज का हिस्सा 36.3 प्रतिशत था। इसका मतलब यह है कि भारत ने विदेशी मुद्रा में अपने कर्ज का जोखिम कम किया है, जो उसकी मुद्रा की स्थिरता और वित्तीय स्वावलंबन को बढ़ाता है। तीसरा बिंदु यह है कि भारत के Foreigner कर्ज का अधिकांश भाग बहुपक्षीय और निजी करदाताओं से लिया गया है। मार्च 2023 के अंत में बहुपक्षीय करदाताओं का Foreigner कर्ज 38.1 प्रतिशत था, जबकि निजी करदाताओं का विदेशी कर्ज 61.9 प्रतिशत था। जिसका एक संभावित कारण मोदी सरकार द्वारा विदेशी मुद्रा भण्डारण में कमी करना माना जा रहा है।

इसके अलावा Foreigner कर्ज या बाहरी ऋण वह है जो एक देश को दूसरे देशों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों या विदेशी निजी करदाताओं से लिया जाता है। विदेशी कर्ज का उद्देश्य आमतौर पर विकास कार्यों, आवश्यक आयात, राष्ट्रीय बजट की कमी को पूरा करना या अन्य कर्जों का भुगतान करना होता है। विदेशी कर्ज के फायदे और नुकसान दोनों होते हैं। फायदे में यह आता है कि विदेशी कर्ज से देश को वित्तीय सहायता मिलती है, जिससे वह अपनी आर्थिक वृद्धि और विकास को बढ़ावा दे सकता है। नुकसान में यह आता है कि विदेशी कर्ज से देश को ब्याज और मुद्रास्फीति का सामना करना पड़ता है, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति बिगड़ सकती है।

Foreigner कर्ज और कमाई के बीच का ये संबंध एक जटिल और बहुआयामी है। Foreigner कर्ज का प्रभाव भारत की आर्थिक स्थिति, Foreigner मुद्रा बचत, विदेशी विनिमय दर, विदेशी निवेश, Foreigner व्यापार, विदेशी व्यवस्था, Foreigner नीति, और विदेशी संबंध पर निर्भर करता है। विदेशी कर्ज का प्रभाव भारत की कमाई पर भी निर्भर करता है। भारत की कमाई का मुख्य स्रोत उसकी जीडीपी है, जो उसके घरेलू उत्पादन, उपभोग, निवेश, और सरकारी खर्च से बनती है। भारत की कमाई का दूसरा स्रोत उसका विदेशी व्यापार है, जो उसके आयात और निर्यात से बनता है। भारत की कमाई का तीसरा स्रोत उसका विदेशी निवेश है, जो उसके विदेशी सीधे निवेश, विदेशी पूंजीबाजार निवेश, विदेशी ऋण, और विदेशी भेंटों से बनता है।

Foreigner कर्ज और कमाई के बीच का संबंध दोनों तरफ का होता है। यानी, विदेशी कर्ज भारत की कमाई पर प्रभाव डालता है, और भारत की कमाई Foreigner कर्ज पर प्रभाव डालती है। विदेशी कर्ज से भारत को विकास के लिए अतिरिक्त वित्तीय संसाधन मिलते हैं, जिससे उसकी जीडीपी और विदेशी व्यापार बढ़ते हैं। जिससे विदेशी कर्ज से भारत को Foreigner निवेश का आकर्षण बढ़ता है, जिससे उसकी तकनीकी, प्रबंधन, और उद्यमिता की क्षमता बढ़ती है। साथ ही इस विदेशी कर्ज से भारत को विदेशी व्यवस्था और Foreigner नीति के साथ अनुकूल और सहयोगी संबंध बनाने में मदद मिलती है, जिससे उसकी अंतरराष्ट्रीय स्थिति और प्रभाव बढ़ता है।

भारत की कमाई से उसकी Foreigner मुद्रा बचत बढ़ती है, जिससे उसका Foreigner कर्ज का भुगतान करने की क्षमता बढ़ती है। भारत की कमाई से उसकी विदेशी मुद्रा की मांग बढ़ती है, जिससे उसकी विदेशी विनिमय दर मजबूत होती है। भारत की कमाई से उसकी विदेशी कर्ज का अनुपात उसकी जीडीपी के अनुपात से कम होता है, जिससे उसका विदेशी कर्ज का बोझ कम होता है।

इस तरह से हमने जाना कि भारत का विदेशी कर्ज और कमाई के बीच का संबंध कैसा है, और इसके क्या परिणाम हैं। हमने देखा कि विदेशी कर्ज और कमाई दोनों ही भारत की आर्थिक स्थिति, विकास, और अंतरराष्ट्रीय स्थिति को प्रभावित करते हैं। विदेशी कर्ज भारत को वित्तीय सहायता, विदेशी निवेश, और विदेशी संबंध का लाभ देता है, लेकिन उसे ब्याज, मुद्रास्फीति, और विदेशी दबाव का भी झेलना पड़ता है।

इस सबसे अलग भारत को विदेशी कर्ज और कमाई के बीच का संतुलन बनाने के लिए कुछ सुझाव दिए जा सकते हैं। जैसे भारत को विदेशी कर्ज को कम करने के लिए अपनी घरेलू बचत और निवेश को बढ़ाना चाहिए। इससे भारत को विदेशी संसाधनों पर निर्भरता कम होगी और उसकी आत्मनिर्भरता बढ़ेगी। दूसरे भारत को विदेशी कर्ज का उचित उपयोग करना चाहिए। विदेशी कर्ज को उन क्षेत्रों में लगाना चाहिए, जहां उच्च रोजगार, उच्च उत्पादकता, और उच्च वृद्धि की संभावना हो। इससे भारत की आय और विकास दर बढ़ेगी और विदेशी कर्ज का भुगतान करने में आसानी होगी।

साथ ही भारत को विदेशी कर्ज के ब्याज दरों को कम करने के लिए प्रयास करना चाहिए। इसके लिए भारत को अपनी आर्थिक नीतियों को सुधारना चाहिए, अपनी विदेशी मुद्रा बचत को बढ़ाना चाहिए, और अपनी विदेशी व्यवस्था और विदेशी संबंध को मजबूत करना चाहिए। इससे भारत की विदेशी कर्ज की लागत कम होगी और उसकी विदेशी मुद्रा की मांग कम होगी।

इन सुझावों का पालन करके भारत विदेशी कर्ज और कमाई के बीच का संतुलन बनाया जा सकता है।  इससे भारत की विश्व में सम्मान और प्रतिष्ठा बढ़ेगी और वह एक विकसित देश के रूप में उभरेगा।

आशा है कि आपको यह जानकारिया पसंद आयी होगा। यदि आपको इससे जुड़े कोई प्रश्न है तो आप हमसे साँझा कर सकते है।

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