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भारत एक विशाल और विविधता से भरा देश है, जहां की लोकतांत्रिक प्रणाली विश्व में अद्वितीय मानी जाती है। यह प्रणाली जनता को यह अधिकार देती है कि वे अपने नेताओं का चयन कर सकें और सरकार के कामकाज की दिशा को नियंत्रित कर सकें। लेकिन इस प्रणाली में समय-समय पर सुधार की आवश्यकता होती है। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ एक ऐसा ही सुधार प्रस्ताव है, जो वर्तमान समय में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना है, जिससे चुनावी प्रक्रिया को संगठित और प्रभावी बनाया जा सके।-India’s Democratic news
बीते दिनों में, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है। इसी संदर्भ में, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एनडीटीवी के साथ एक विशेष बातचीत में इस प्रस्ताव के पक्ष में अपने विचार प्रकट किए। उन्होंने बताया कि यह कदम देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को और अधिक मजबूत बनाने के लिए कितना महत्वपूर्ण हो सकता है। –India’s Democratic news
इस प्रस्ताव को लेकर कई सवाल उठते हैं। क्या सही में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ देश के संसाधनों की बचत करेगा? क्या यह व्यवस्था देश के सभी हिस्सों में समान रूप से प्रभावी होगी? क्या इससे देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को और अधिक मजबूत किया जा सकेगा? और सबसे महत्वपूर्ण, क्या यह प्रस्ताव वाकई जनता के हित में होगा या फिर इससे राजनीतिक और कॉर्पोरेट वर्ग को ही अधिक लाभ होगा? इन सवालों के जवाब में राजनाथ सिंह का विश्वास और समिति की सिफारिशें हमें एक नए दृष्टिकोण से इस मुद्दे को समझने में मदद कर सकती हैं।-India’s Democratic news
नमस्कार, आप देख रहे हैं AIRR न्यूज़।
आज हम चर्चा करेंगे ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर, जिसमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के विचार और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशें शामिल हैं।
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का तात्पर्य है कि लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं। यह एक महत्वपूर्ण और व्यापक सुधार है, जिसका उद्देश्य बार-बार चुनाव कराने की आवश्यकता को समाप्त करना और संसाधनों की बचत करना है। राजनाथ सिंह ने एनडीटीवी के साथ बातचीत में इस बात पर जोर दिया कि बार-बार चुनाव कराने से न केवल जनता का समय और पैसा बर्बाद होता है, बल्कि सरकार की धनराशि भी खर्च होती है।
रक्षा मंत्री का मानना है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ देश के लिए अनिवार्य है। उन्होंने कहा, “पक्का होगा और यह होना ही चाहिए। ये देश के लिए अनिवार्य है।” उन्होंने बताया कि बार-बार चुनाव से जनता का समय और धन दोनों बर्बाद होते हैं। सरकार भी अपने संसाधनों का सही उपयोग नहीं कर पाती है।
राजनाथ सिंह ने यह भी कहा कि भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली पर किसी भी तरह का प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा सकता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि सरकार लोकतंत्र को और अधिक मजबूत करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगी।
आपको बता दे कि भारत में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ कोई नया विचार नहीं है। 1952 से लेकर 1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए गए थे। उस समय, चुनाव प्रक्रिया में समन्वय और संगठन का एक उच्च स्तर था। हालांकि, 1968 और 1969 में कई विधानसभा समय से पहले भंग हो गईं, और 1970 में लोकसभा को भी समय से पहले भंग किया गया। इसके बाद, एक साथ चुनाव कराने की परंपरा समाप्त हो गई और अलग-अलग समय पर चुनाव कराए जाने लगे।
हालाँकि पिछले दस वर्षों में, चुनाव के समय सरकार द्वारा जनता के दुःख दर्द को सुनने और समझने का वक़्त मिलता है नहीं तो बाकि समय जनता को सबसे ज्यादा महंगाई कि मार को झेलना पड़ता है बाकि जब चुनाव नजदीक होते है तब ही तेल और अन्य आवश्यक वस्तुओं के दाम कम किए जाने की प्रवृत्ति देखने को मिलती है। यह एक राजनीतिक रणनीति होती है ताकि जनता के बीच सरकार की छवि सकारात्मक बनी रहे। उदाहरण के लिए बात करते मोदी के कार्यकाल में पेट्रोल ,डीज़ल , रसोई गैस और अन्य वस्तुओ के दामों में भयकर तेजी देखि गयी लेकिन जब भी चुनाव नजदीक आये तब तब इनके दामों को काम और स्थिर किया गया चाहे सरकार कितना ही इसे बाजार आधारित बताती रही हो। ऐसा सिर्फ चुनावो के चलते हुआ है ताकि महंगाई कि मारी जनता को लगे कि अब सरकार उनके हित में कार्य करने लगी है। लेकिन जैसे ही चुनाव ख़त्म होते है सभी चीजों के दाम फिर से आसमान छूने लगते है।
ऐसे ही चुनावों में पार्टी और उम्मीदवार द्वारा किए जाने वाले खर्च का मुद्दा भी महत्वपूर्ण है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल चुनावी खर्च 60,000 करोड़ रुपये के पार हो गया था। इसमें काले धन और गैरकानूनी फंडिंग का भी इस्तेमाल होता है। चुनावों में धांधली का मुद्दा भी प्रमुख है। फर्जी वोटिंग, बूथ कैप्चरिंग, और वोटरों को लालच देकर वोट खरीदने जैसी घटनाएं आम हैं। ऐसे में, ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से इन समस्याओं को किस हद तक कम किया जा सकेगा, एक विचारणीय प्रश्न है। लेकिन अक्सर जो सामने आता है वो भी गंभीर विषय है अक्सर चुनाव में धांधली बाज़ी देखने को मिलती है। जैसा का वर्तमान में सामने आ रहा है कि विपक्ष ने चुनाव आयोग तक पर निष्पक्ष न होने का आरोप लगाया है। साथ ही चुनावो में होने वाली वोटिंग कि संख्याओं पर भी सवाल उठाये है कि मतदान के बाद एक करोड़ से भी ज्यादा वोट किए बढ़ गए है। इस पर चुनाव आयोग कि चुप्पी भी संदेह के घेरे में है।
ऐसे में जनता का फायदा होगा या नेताओ का इसका तो सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है बाकि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का सबसे बड़ा लाभ यह हो सकता है कि इससे चुनावी प्रक्रिया को संगठित और प्रभावी बनाया जा सकेगा। बार-बार चुनाव कराने की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे सरकारी धन और संसाधनों की बचत होगी। हालांकि, इसके नकारात्मक पहलुओं पर भी विचार करना आवश्यक है। इससे राजनीतिक दलों और कॉर्पोरेट वर्ग को अधिक लाभ हो सकता है। बार-बार चुनाव कराने से नेताओं को जनता के बीच जाना पड़ता है और उनकी समस्याएं सुननी पड़ती हैं। एक साथ चुनाव कराने से यह प्रक्रिया कम हो जाएगी और जनता की आवाज सुनी नहीं जा सकेगी।
वैसे भारत में चुनाव सुधारों के कई अन्य मुद्दे भी महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए, चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करना, राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाना, और चुनावी हिंसा को रोकना। इन सभी मुद्दों पर समय-समय पर चर्चा होती रही है और सुधार की आवश्यकता महसूस की जाती है।
तो इस तरह ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ एक महत्वपूर्ण और व्यापक सुधार बताया जा रहा है, जो देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी और संगठित बनाने का प्रयास करता है। राजनाथ सिंह और समिति के विचारों से स्पष्ट होता है कि यह प्रस्ताव देश के लिए लाभकारी हो सकता है। लेकिन इसमें जनता को क्या सच में राहत मिलेगी ये प्रश्न अभी तक अनसुलझा है और रहेगा , क्योंकि नेताओ को जनता कि याद फिर चुनावो में ही आती है तो इसके लागु होने के बाद सोचिये जनता के दुःख दर्द को क्या अगले पांच साल का इंतज़ार करना होगा ? सोचियेगा जरूर और अपनी राय हमें निचे कमैंट्स बॉक्स में जरूर दीजिये। बाकि अन्य खबरों और मुद्दों के गहन विश्लेषण के लिए जुड़े रहिये हमारे साथ। नमस्कार आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।
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