वाराणसी की अदालत ने Gyanvapi Mosque के अंदर ‘व्यास का टेखाना’ क्षेत्र में हिंदुओं को पूजा करने की अनुमति दी है। इस फैसले का विरोध करते हुए, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि यह पूजा स्थल अधिनियम का उल्लंघन है और इसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की जाएगी। इस घटना के पीछे के तथ्य और प्रभाव को जानने के लिए, आइए देखते हैं AIRR न्यूज कि ये विशेष रिपोर्ट।
वाराणसी की अदालत ने Gyanvapi Mosque के अंदर ‘व्यास का टेखाना’ क्षेत्र में हिंदुओं को पूजा करने की अनुमति दी है। इस फैसले का विरोध करते हुए, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि यह पूजा स्थल अधिनियम का उल्लंघन है और इसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की जाएगी। इस घटना के पीछे के तथ्य और प्रभाव को जानने के लिए, आइए देखते हैं AIRR न्यूज कि ये विशेष रिपोर्ट।
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Gyanvapi Mosque के नीचे कुल चार ‘तहखाने’ हैं, जिनमें से एक अभी भी व्यास परिवार के कब्जे में है, जो वहां रहते थे। व्यास ने याचिका दायर की थी कि, वंशानुगत पुजारी के रूप में, उन्हें तहखाने में प्रवेश करने और पूजा फिर से शुरू करने की अनुमति दी जाए। वाराणसी की अदालत ने बुधवार को हिंदु भक्तों को मस्जिद के अंदर ‘व्यास का टेखाना’ क्षेत्र में पूजा करने की अनुमति दी है। अदालत ने जिला प्रशासन से अगले सात दिनों में आवश्यक व्यवस्था करने को कहा है। हिंदू पक्ष का प्रतिनिधि वकील विष्णु शंकर जैन ने इस बारे में कहा है कि, “पूजा सात दिनों के भीतर शुरू हो जाएगी। हर किसी को पूजा करने का अधिकार होगा।”
आपको बता दे कि अदालत द्वारा पूजा की अनुमति देने के बाद, वकील सोहन लाल आर्य ने कहा, “हम आज बहुत गर्व महसूस कर रहे हैं। कल का फैसला अदालत का अभूतपूर्व था। व्यवस्था तो कर दी गई है लेकिन अभी तक भक्तों के लिए व्यास का टेखाना खोला नहीं गया है। ”
अदालत के आदेश पर बोलते हुए, मुस्लिम पक्ष के वकील अखलाक अहमद ने कहा कि वे इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में जाएंगे। अखलाक अहमद ने कहा, “हम इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में जाएंगे। आदेश ने 2022 की आयुक्त द्वारा पेश की रिपोर्ट, एएसआई की रिपोर्ट और 1937 के फैसले को नजर अंदाज कर दिया है, जो हमारे पक्ष में था। हिंदू पक्ष की तरफ से कोई सबूत पेश नहीं किया हुआ जिससे साबित हो कि 1993 से पहले यहाँ पूजा हुई थी। साथ ही वहां कोई मूर्ति भी नहीं है।”
एक और वकील मेराजुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि वे इस आदेश को स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने कहा की , “यह कोई आदेश नहीं है। जिला मजिस्ट्रेट और जिला अध्यक्ष दोनों मिलकर काम कर रहे हैं। हम इसे कानूनी रूप से लड़ेंगे। यह राजनीतिक फायदे के लिए हो रहा है। वही रणनीति अपनाई जा रही है, जो बाबरी मस्जिद के मामले में की गई थी। आयुक्त की रिपोर्ट और एएसआई की रिपोर्ट पहले कहती थी कि अंदर कुछ नहीं है। हम इस फैसले से बहुत नाराज हैं।”
आपको बता दे की इस विवाद का इतिहास बहुत पुराना है। 1991 में, व्यास परिवार ने याचिका दायर की थी कि उन्हें तहखाने में पूजा करने की अनुमति दी जाए। उन्होंने दावा किया था कि वहां शिवलिंग और वेद व्यास की मूर्ति है। इस पर, मस्जिद की इंतजामिया कमेटी ने विरोध किया था और कहा था कि वहां कोई ऐसी चीज नहीं है। 2022 में, अदालत ने एक वकील आयुक्त नियुक्त किया था, जिसने तहखाने का मुआयना किया था और रिपोर्ट में कहा था कि वहां कोई शिवलिंग या मूर्ति नहीं है। उसने केवल कुछ पुरानी किताबें और चीजें पाई थीं। उसी साल, एएसआई ने भी एक खुदाई करके रिपोर्ट दी थी, जिसमें कहा गया था कि वहां कोई प्राचीन धार्मिक अवशेष नहीं मिले हैं।
ऐसे में इस फैसले से वाराणसी में धार्मिक तनाव बढ़ सकता है। इससे पहले, 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद, Gyanvapi Mosque को भी विवादित बनाया गया था। कुछ हिंदू संगठनों ने दावा किया था कि मस्जिद के नीचे काशी विश्वनाथ मंदिर के अवशेष हैं। उन्होंने मस्जिद को तोड़ने और मंदिर को पुनर्निर्माण करने की मांग की थी। इस पर, सरकार ने 1991 में पूजा स्थल अधिनियम बनाया, जिसने 15 अगस्त 1947 के बाद के किसी भी धार्मिक स्थान के स्वामित्व और व्यवस्था को अचल बना दिया था। इस अधिनियम के तहत, Gyanvapi Mosque को मुस्लिमों का ही माना गया था।
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि धार्मिक स्थानों के आसपास के क्षेत्रों को लेकर विवाद अभी भी जारी हैं। इस फैसले को लेकर मुस्लिम पक्ष ने अपनी असंतुष्टि जताई है और कहा है कि यह पूजा स्थल अधिनियम का उल्लंघन है। और वे इसके खिलाफ उच्च अदालत में जाएंगे। वहीं, हिंदू पक्ष ने इसे एक ऐतिहासिक फैसला बताया है और कहा है कि उन्हें अपने धर्म का अभ्यास करने का अधिकार मिला है। इस फैसले का आगे क्या प्रभाव पड़ेगा, यह देखना होगा। इसके लिए, हमें अब इंतजार करना होगा कि उच्च अदालत का क्या कहना है।
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