Historic Langar by Nihang Sikhs at Ram Mandir Inauguration: A Unique Tale

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 Historic Langar by Nihang Sikhs at Ram Mandir Inauguration: A Unique Tale

राम मंदिर उद्घाटन पर निहंग सिखों द्वारा ऐतिहासिक लंगर: एक अनोखी कहानी

नमस्कार,

आज हम आपको ले चलेंगे अयोध्या, जहां 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर के उद्घाटन के अवसर पर एक ऐतिहासिक घटना होने जा रही है। इस दिन, अयोध्या में एक विशेष लंगर का आयोजन होगा, जिसकी जिम्मेदारी निहंग सिखों के एक वंशज ने ली है। इनका दावा है कि उनके पूर्वज ने 1858 में बाबरी मस्जिद में घुसकर राम नाम का जाप और हवन किया था।

आपको बता दे कि इस वंशज का नाम है गुरबख्श सिंह निहंग, जो अपने आप को निहंग सिखों के महान योद्धा अकाली बाबा फौजा सिंह के वंशज बताते हैं। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज ने 1858 में बाबरी मस्जिद में घुसकर राम नाम का जाप और हवन किया था, जिसके लिए उन पर एक एफआईआर भी दर्ज हुई थी।

आगे गुरबख्श सिंह ने कहा कि वे अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के अवसर पर लंगर का आयोजन करेंगे, जिसमें वे लगभग 500 लोगों को भोजन प्रदान करेंगे। वे यह भी कहते हैं कि वे राम मंदिर के निर्माण के लिए एक स्वर्ण ईंट भी दान करेंगे।

इस बारे में गुरबख्श सिंह ने अपने ट्विटर अकाउंट पर एक वीडियो भी शेयर किया है, जिसमें वे अपने वंशजों के बारे में बताते हुए Ram Mandir के उद्घाटन के लिए अपनी तैयारी दिखाते हैं। और साथ ही बता रहे है कि , निहंग सिखों का एक समूह राम जन्मभूमि पर लंगर का आयोजन करने जा रहा है। यह लंगर उनके गुरु गोबिंद सिंह के आदेश पर होगा, जो उन्हें सपने में दिखे थे।

आपको बता दे कि यह लंगर न केवल एक धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रम है, बल्कि एक राष्ट्रीय एकता और सद्भाव का संदेश भी देता है। इस लंगर के पीछे की कहानी बाबरी मस्जिद के 1858 के मामले से जुड़ी है, जो की उत्तर प्रदेश के अयोध्या ज़िले में रामकोट पहाड़ी जिसे राम का किला भी कहते है पर एक मस्जिद थी, जिसका निर्माण मुग़ल शासक बाबर के एक जनरल मीर बाक़ी ने 1527 में कराया था।  हिंदू संगठनों का दावा था कि इसे राम के जन्मस्थल पर बने Ram Mandir को तोड़कर बनाया गया था। इस मस्जिद को 6 दिसंबर 1992 को राम भक्तों ने गिरा दिया, जिससे देशभर में हिंसक दंगे फैल गए।

वैसे 1858 का मामला इस मस्जिद के इतिहास का एक अनोखा अध्याय है, जिसमें एक निहंग सिख ने मस्जिद में घुसकर राम नाम का जाप और हवन किया था। इसके लिए उस पर एक एफआईआर दर्ज हुई थी, जिसकी कॉपी आज भी मौजूद है।

ये वो ऐतिहासिक घटना है जब 1858 में, जब एक तरफ हिन्दू मुस्लिम और अन्य सभी धर्मो के अनुयायियों द्वारा भारत में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था, तो दूसरी तरफ एक निहंग सिख ने अयोध्या में मुस्लिम धर्म से जुडी विवादित बाबरी मस्जिद में प्रवेश किया। उसका नाम अकाली बाबा फौजा सिंह था, जो अपने आप को निहंग सिखों के महान योद्धा का वंशज बताता था। उसने मस्जिद में राम नाम का जाप और हवन किया, और उसने एक तिरंगा झंडा भी फहराया। उसने यह कार्य अपने गुरु गोबिंद सिंह के आदेश पर किया था, जो उसे सपने में दिखे थे।

उसके इस कार्य को जानकर, तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उस पर एक मुकदमा चलाया, जिसमें उसे धार्मिक भावनाओं को आहत करने, शांति भंग करने और राजद्रोह करने का आरोप लगाया गया। उसके वकील ने उसकी बचाव में यह कहा कि वह एक धार्मिक व्यक्ति है, जिसने अपने गुरु के आदेश का पालन किया है। उसने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है, बल्कि राम की भक्ति की है। उसने यह भी कहा कि बाबरी मस्जिद के स्थान पर पहले एक Ram Mandir था, जिसे बाबर ने तोड़कर मस्जिद बनाई थी।

आगे इस इस मुकदमे की सुनवाई फैज़ाबाद के ज़िला अदालत में हुई, जहां एक ब्रिटिश जज ने फौजा सिंह को दोषी पाया और उसे कारावास की सजा सुनाई। लेकिन फौजा सिंह ने अपनी सजा को मानाने से इंकार कर दिया और उसने अपने गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह के नाम पर शपथ खाकर कहा कि वह अपनी जान देगा, लेकिन अपना तिरंगा नहीं उतारेगा। उसने भूख हड़ताल सुरु कर दी जिसके कुछ ही दिनों बाद में फौजा सिंह की मौत हो गई। उनके शव को उनके साथियों ने लेकर अयोध्या से लुधियाना तक पैदल चलकर पहुंचाया, और उनका अंतिम संस्कार किया। उनके इस कार्य को निहंग सिखों ने एक शौर्य और बलिदान का प्रतीक माना, और उनके साथियों ने उनकी याद में लुधियाना में एक गुरुद्वारा बनाया, जिसे अकाली बाबा फौजा सिंह गुरुद्वारा कहा जाता है। यह गुरुद्वारा आज भी मौजूद है, और यहां पर निहंग सिखों के द्वारा रोजाना लंगर चलता है।

आपको बता दे कि विवादित बाबरी मस्जिद के बारे में कई विवाद और मुकदमे आगे भी सामने आये, जिनमें हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच की टकराव और तनाव बढ़े। 1992 में, राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान, राम भक्तों ने मस्जिद को तोड़ दिया, जिससे देशभर में हिंसक दंगे फैल गए। 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया, जिसमें उन्होंने राम जन्मभूमि को हिंदुओं को देने का आदेश दिया, और मुस्लिमों को एक अन्य जगह पर एक नया मस्जिद बनाने का प्रावधान किया।

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