22 जनवरी का दिन ऐतिहासिक रहा है, जहाँ अयोध्या में भव्य ‘प्राण प्रतिष्ठा’ समारोह के दौरान हज़ारों श्रद्धालु देश-विदेश से जुटे। हालाँकि, विपक्षी पार्टियों का ज़्यादातर हिस्सा इस समारोह से दूर ही रहा। कांग्रेस ने साफ़ तौर पर निमंत्रण ठुकरा दिया था, लेकिन कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य और सांसद शशि थरूर ने सोशल मीडिया पर राम लला की मूर्ति की तस्वीर साझा करके सबको चौंका दिया। क्या ये पार्टी लाइन से हटने का संकेत था?-Historic Day in Ayodhya
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इसपर तिरुवनंतपुरम के सांसद श्री थरूर ने साफ़ किया कि हर ‘राम भक्त’ बीजेपी समर्थक नहीं होता। उन्होंने कहा कि उनके सहित कई लोग भगवान राम के भक्त हैं और अगर भविष्य में वे अयोध्या के मंदिर जाएंगे तो वो सिर्फ अपनी भक्ति दर्शाने के लिए, किसी को दुःख देने के लिए नहीं।-Historic Day in Ayodhya
आपको बता दे कि, यह टिप्पणी श्री थरूर ने गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में रिपोर्टर्स से बात करते हुए की, जहाँ स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया एक्टिविस्टों और फ़्रेटर्निटी सदस्यों ने उनके सोशल मीडिया पोस्ट के विरोध में प्रदर्शन किया था। प्रदर्शनकारियों ने उन्हें ‘बेशर्म’ कहकर नारे लगाए और बैनर-पोस्टर भी दिखाए, जिनमें से एक पर लिखा था- ‘शशि थरूर, आप एक लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राज्य के लिए कलंक हैं।’
कांग्रेस सांसद ने अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति की तस्वीर के साथ हिंदी में ‘सीयावर राम की जय’ का संदेश भी पोस्ट किया था। श्री थरूर ने कहा कि उनके पोस्ट का मकसद सिर्फ भगवान राम के प्रति उनकी भक्ति जताना था और साथ ही राम का जयकार करते हुए सीता का नाम न लेने का संदेश देना भी था।
“इसलिए इसे इतना बड़ा मुद्दा बनाने की ज़रूरत नहीं है,” उन्होंने कहा।
केरल स्टूडेंट्स यूनियन द्वारा कॉलेज में एक कार्यक्रम में आमंत्रित श्री थरूर ने आगे कहा, “मुझे समझ नहीं आता कि मैं उस भगवान को क्यों छोड़ दूं जिस पर मैं रोज़ाना विश्वास करता हूं और जिसकी पूजा करता हूं? बीजेपी शायद सभी राम भक्तों को अपना वोटर बनाना चाहती है, लेकिन क्या हर राम भक्त बीजेपी समर्थक है? यही सवाल है। मेरी राय में, वे नहीं हैं। मैं यह भी पूछता हूं कि कांग्रेस को भगवान राम को बीजेपी के हवाले क्यों छोड़ देना चाहिए? हम भी तो प्रभु को स्वीकार कर सकते हैं और उनकी पूजा कर सकते हैं, हमारा भी धर्म है।”
श्री थरूर ने आगे कहा कि पार्टी में कोई भी राम मंदिर के खिलाफ नहीं है, “हम सिर्फ उस कार्यक्रम के खिलाफ थे।”
“अगर मैं मंदिर जाता हूं, तो वो पूजा करने के लिए जाता हूं, राजनीति के लिए नहीं। एक दिन मैं अयोध्या ज़रूर जाऊंगा, लेकिन अपनी शर्तों पर,” उन्होंने कहा।
आगे उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने पहले भी कहा है कि हर हिंदू भले ही अयोध्या में राम मंदिर चाहता हो, लेकिन “मैंने हमेशा इस बात पर ज़ोर दिया है कि इसे बनाने के लिए मस्जिद को गिराने की ज़रूरत नहीं थी।”
ऐसे में इस घटना ने एक बार फिर धर्म और राजनीति के रिश्ते को गरमाया है। श्री थरूर का सोशल मीडिया पोस्ट भले ही व्यक्तिगत प्रतीत हो, लेकिन इसने धार्मिक ध्रुवीकरण के अहम मुद्दे को छेड़ दिया है। क्या विपक्षी पार्टियां राम भक्तों का समर्थन खो रही हैं? क्या बीजेपी धार्मिक भावनाओं के ज़रिए राजनीतिक बढ़त बना रही है? ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब तलाशना जरुरी है।
साथ ही शशि थरूर के सोशल मीडिया पोस्ट ने एक बार फिर धर्म और राजनीति के बीच के रिश्ते को उजागर किया है। इस पोस्ट ने विपक्षी पार्टियों और बीजेपी दोनों को चुनौती दी है।
विपक्षी पार्टियों के लिए, यह एक चुनौती है कि वे कैसे राम मंदिर के मुद्दे को अपने हित में इस्तेमाल करें। अगर वे इस मुद्दे को नजरअंदाज करें तो उन्हें हिंदू वोटर्स को खोने का खतरा हो सकता है। लेकिन अगर वे इस मुद्दे पर सीधे बीजेपी से भिड़ें तो उन्हें धार्मिक ध्रुवीकरण का सामना करना पड़ सकता है।-Historic Day in Ayodhya
बीजेपी के लिए, यह एक चुनौती है कि वे कैसे धार्मिक ध्रुवीकरण को जारी रखें। अगर वे इस मुद्दे को ज़्यादा खींचे तो उन्हें विपक्षी पार्टियों से हमले का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन अगर वे इस मुद्दे को छोड़ दें तो उन्हें हिंदू वोटर्स का समर्थन खोने का खतरा हो सकता है।
आखिरकार, यह देखना बाकी है कि विपक्षी पार्टियां और बीजेपी इस मुद्दे को कैसे संभालती हैं। लेकिन एक बात तो तय है कि यह मुद्दा आने वाले दिनों में भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला है।
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