धार की भोजशाला का ASI सर्वे-High Court orders-Mosque or Saraswati Mandir ?
हाईकोर्ट के आदेश के बाद सर्वे का काम
कमाल मौलाना मस्जिद या Saraswati Mandir ?
भोजशाला परिसर के आसपास सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
भोजशाला ASI द्वारा संरक्षित 11वीं सदी का एक स्मारक है
भोजशाला के विवाद का पूरा इतिहास
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानि ASI की टीम धार स्थित भोजशाला का सर्वे कर रही है… मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश पर यह सर्वे किया जा रहा है. एएसआई की टीम पुरातात्विक और वैज्ञानिक सर्वे के आधार पर इस बात का पता लगाएगी कि भोजशाला में Saraswati Mandir है या कमाल मौलाना मस्जिद. भोजशाला परिसर के आसपास सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. कोर्ट ने 11 मार्च को 6 हफ्तों के भीतर एएसआई को धार की विवादास्पद भोजशाला का वैज्ञानिक सर्वे करने का निर्देश दिया था.-High Court orders-Mosque or Saraswati Mandir ?
आइए जानते हैं कि धार की इस भोजशाला का इतिहास क्या है और ताजा विवाद क्यों खड़ा हुआ है. मध्य प्रदेश के इंदौर संभाग का धार जिला इन दिनों चर्चा में है. वजह है जिले की एक भोजशाला. भोजशाला एएसआई द्वारा संरक्षित 11वीं सदी का एक स्मारक है. हिंदू इसे वाग्देवी यानि देवी सरस्वती का मंदिर मानते हैं और मुसलमान इसे कमाल मौलाना मस्जिद कहते हैं. यूं तो भोजशाला का विवाद दशकों पुराना है लेकिन साल 2022 में इंदौर हाई कोर्ट में दायर एक याचिका ने इसे एक नया मोड़ दे दिया…
याचिका में यहां सरस्वती देवी की प्रतिमा स्थापित करने और पूरे परिसर की फोटोग्राफी-वीडियोग्राफी करवाने की मांग की गई… याचिका में यहां नमाज बंद कराने की भी मांग की गई थी… वहीं इस ममले में सुप्रीम कोर्ट ने दखल से पहले ही इनकार किया है.. 11 मार्च को अदालत ने एएसआई को इस परिसर का वैज्ञानिक सर्वे करने का निर्देश दिया था… इसे लेकर मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था... सर्वोच्च अदालत ने मुस्लिम पक्ष की याचिका पर हाई कोर्ट के आदेश में दखल देने से इनकर कर दिया है…
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस मामले में अभी कोई आदेश जारी नहीं करेंगे. मुस्लिम पक्ष सर्वे पर तत्काल रोक लगाने की मांग कर रहा था. .. आपको बता दें कि यहां हिंदू पूजा करते हैं तो मुस्लिम पढ़ते हैं नमाज… हर साल बसंत पंचमी आते ही भोजशाला का विवाद चर्चा में आ जाता है. धार की भोजशाला में मंगलवार को सूर्योदय से सूर्यास्त तक हिंदुओं के लिए प्रवेश की अनुमति होती है. इसके अलावा, शुक्रवार दोपहर एक बजे से 3 बजे तक केवल नमाजियों को अंदर घुसने की इजाजत होती है. हफ्ते के बाकी दिन सभी दर्शकों के लिए सूर्यादय से सूर्यास्त तक भोजशाला खुली रहती है. इसके लिए एक रुपए एंट्री फीस चुकानी होती है..
अब आपको धार की इस भोजशाला के इतिहास के बारे में भी बता देते हैं… दरअसल हजारों साल पहले यहां परमार वंश का राज था. 1000 से 1055 ईस्वी तक राजा भोज ने यहां शासन किया. वो देवी सरस्वती के अनन्य भक्त थे. 1034 ईस्वी में उन्होंने एक महाविद्यालय की स्थापना की थी जिसे आगे चलकर उनके नाम पर ही ‘भोजशाला’ नाम मिला… कहा जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने 1305 ईस्वी में भोजशाला को ध्वस्त कर दिया था. फिर 1401 ईस्वी में दिलावर खान गौरी ने इसके एक हिस्से में मस्जिद बनवा दी. महमूद शाह खिलजी ने 1514 ईस्वी में इसके दूसरे हिस्से में भी मस्जिद बनवा दी...
आपको अब हिंदू और मुस्लिम पक्ष के दावे के बारे में भी बताते हैं..बताया जाता है कि 1875 में यहां खुदाई की गई जिसमें सरस्वती देवी की प्रतिमा निकली, जिसे मेजर किनकेड नामक अंग्रेज लंदन ले गया… फिलहाल यह प्रतिमा लंदन के एक म्यूजियम में है. इंदौर हाई कोर्ट में दायर याचिका में एक मांग इस प्रतिमा को लंदन से वापस लाने की भी थी. भोजशाला का विवाद कई साल पुराना है जिसे लेकर कई बार हिंदू और मुस्लिम पक्ष के बीच तनाव भी पैदा हो चुका है… वहीं हिंदू संगठन इसे राजा भोज के काल का Saraswati Mandir बताते हैं…
उनका तर्क है कि राजवंश काल में कुछ समय के लिए मुस्लिमों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई थी… वहीं मुस्लिम पक्ष का दावा है कि वे कई साल से यहां नमाज पढ़ते आ रहे हैं. वे इस जगह को भोजशाला-कमाल मौलाना मस्जिद कहते हैं…पूजा और नमाज की इजाजत कब दी गई अब इस बारे में बताते हैं… ये समझना जरूरी है कि आखिर यहां पूजा और नमाज की अनुमति एक साथ कब मिली…
साल 1909 में धार रियासत ने भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया था. आगे चलकर इसे पुरातत्व विभाग को सौंप दिया गया. 1935 में धार रियासत ने शुक्रवार को यहां नमाज पढ़ने की अनुमति दी थी. पहले यह परिसर शुक्रवार को ही खुलता था. 1995 में यहां विवाद हो गया जिसके बाद यहां मंगलवार को पूजा और शुक्रवार को नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी गई.. दो साल बाद 12 मई 1997 को कलेक्टर ने भोजशाला में आम लोगों की एंट्री बैन कर दी और मंगलवार को होने वाली पूजा भी रोक दी. सिर्फ बसंत पंचमी के दिन पूजा और शुक्रवार को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई. हालांकि सिर्फ दो महीने बाद ही यह प्रतिबंध हटा दिया गया. 6 फरवरी 1998 को पुरातत्व विभाग ने फिर यहां प्रवेश पर रोक लगा दी और मंगलवार की पूजा भी बंद हो गई. 2003 में आखिरकार सभी प्रतिबंध हटा लिए गए और पर्यटकों की एंट्री के साथ पूजा की भी अनुमति दे दी गई…
भोजशाला का माहौल कब बिगड़ना शुरू हुआ इसे लेकर भी आपको बताते हैं.. सब कुछ ठीक चल रहा था फिर 2013 में बसंत पंचमी शुक्रवार यानी जुमे के दिन पड़ गई और इलाके का माहौल बिगड़ गया. स्थिति नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. 2016 में फिर ऐसा संयोग पड़ा कि बसंत पंचमी शुक्रवार को पड़ी और फिर माहौल बिगड़ गया. हिंदू भोजशाला में सरस्वती देवी की फोटो रखकर पूजा करते हैं. फिलहाल अदालत के आदेश पर 22 मार्च यानी शुक्रवार को एएसआई ने कड़ी सुरक्षा के बीच भोजशाला का सर्वे शुरू कर दिया है.. -High Court orders-Mosque or Saraswati Mandir ?
हालांकि धार शहर के काजी वकार सादिक व जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी के जुल्फिकार अहमद ने कहा कि वे हाईकोर्ट के निर्णय का सम्मान करते हैं लेकिन सर्वे की हमें कोई सूचना नहीं दी गई है.. शहर काजी भोजशाला के सर्वे के दौरान शामिल नहीं हुए हैं.. ऐसी ही और खबरों की जानकारी के लिए देखते रहिए AIRR NEWS…