दिल्ली के महरौली में एक 13वीं शताब्दी की Mosque अखुंजी को बुलडोजरों से ध्वस्त कर दिया गया है। इस घटना ने न केवल इतिहास की एक अनमोल विरासत को नष्ट किया है, बल्कि उस समुदाय के लोगों को भी आहत किया है, जिनके लिए यह मस्जिद उनके धर्म, शिक्षा और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। इस विध्वंस के पीछे कौन से तत्व हैं? इसका क्या प्रभाव है? और इसका क्या समाधान है? आइए जानते हैं इस विशेष रिपोर्ट में, जिसका नाम है “विरासत का विनाश: दिल्ली की एक प्राचीन मस्जिद का अंत”. नमस्कार, आप देख रहे हैं AIRR न्यूज।
अखुंजी मस्जिद का निर्माण 13वीं शताब्दी में ख्वाजा अल्ताफ़ हुसैन ने करवाया था, जो एक सूफ़ी संत और शायर थे। इस मस्जिद को उनके उर्दू के शेरों के लिए भी जाना जाता है, जिनमें से कुछ तो आज भी लोगों के दिलों में गूंजते हैं। इस मस्जिद का एक हिस्सा बहरुल उलूम मदरसा के रूप में भी काम करता था, जहां 25 बच्चे से ज्यादा बच्चे जिनमे से ज्यादातर अनाथ है जो यहाँ पे इस्लामी शिक्षा प्राप्त करते थे। इस मस्जिद के पास एक कब्रिस्तान भी था, जहां ख्वाजा अल्ताफ़ हुसैन के साथ-साथ उनके शिष्यों और चाहने वालों की कब्रें थीं।
आपको बता दे की इस मस्जिद को दिल्ली विकास प्राधिकरण ने 2 फरवरी 2024 को तोड़ दिया, जिसका कारण बताया गया कि यह संजय वन के आरक्षित वन क्षेत्र पर एक अवैध निर्माण था। DDA ने कहा कि यह वन क्षेत्र रिज मैनेजमेंट बोर्ड के आदेशों का पालन करते हुए अवैध कब्जे को हटाने का एक हिस्सा था। लेकिन मस्जिद के इमाम ज़ाकिर हुसैन ने इस बात का खंडन किया, और कहा कि उन्हें कोई नोटिस नहीं दिया गया था, और उनका फोन भी छीन लिया गया था। उन्होंने यह भी बताया कि मदरसे के बच्चों को जंगल में भेज दिया गया था, और कब्रिस्तान को भी उखाड़ दिया गया था।
ऐसे में इस घटना ने दिल्ली के मुस्लिम समुदाय में आक्रोश और दुख का माहौल पैदा किया है, जो अपने धार्मिक स्थलों को खतरे में देख रहे हैं। दिल्ली में कम से कम चार और मस्जिदें हैं, जिन पर DDA और नई दिल्ली नगर निगम जैसे विभिन्न प्राधिकरणों का दबाव है, इनके अनुसार ये सब अनाधिकृत हैं, और उन्हें तोड़ दिया जाना चाहिए। इनमें शाही मस्जिद धौला कुआं, बाबा नगरी मस्जिद निजामुद्दीन, नूर मस्जिद जामा मस्जिद और बड़ी मस्जिद चांदनी चौक शामिल हैं।
वैसे इन मस्जिदों के समर्थको ने अपने पक्ष में कई दस्तावेजों को सार्वजानिक किया है, जिनमें उनके पास रजिस्ट्री, लीज, टैक्स रसीद जैसी आवश्यक अनुमतियां भी हैं, जो दिल्ली वक्फ बोर्ड ने अपने वेबसाइट पर अपलोड किए हैं। इनमें से कुछ दस्तावेजों की तारीख 1950, 1960 और 1970 के दशकों में हैं, जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि ये मस्जिदें उस समय से ही मौजूद थीं, जब डीडीए या एनडीएमसी का गठन नहीं हुआ था। वक्फ बोर्ड का कहना है कि ये मस्जिदें उनके अधीन हैं, और उन्हें तोड़ने का किसी को भी कोई अधिकार नहीं है।
वक्फ बोर्ड ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने डीडीए की कार्रवाई को अवैध, अनुचित और अराजकतापूर्ण बताया है। उन्होंने कहा कि उन्हें किसी भी तरह का नोटिस नहीं दिया गया था, और उनके साथ बलप्रयोग किया गया था। उन्होंने यह भी दावा किया है कि अखुंजी मस्जिद को ध्वस्त करने से पहले उसकी फोटो और वीडियो बनाने की कोशिश की गई थी, लेकिन उन्हें रोक दिया गया था। वक्फ बोर्ड ने कोर्ट से अखुंजी मस्जिद को पुनर्निर्माण करने, और अन्य मस्जिदों को बचाने की मांग की है।
आपको बता दे की इस मामले में हाई कोर्ट ने डीडीए को एक हफ्ते का समय दिया है, जिसमें वह अपना जवाब दे सके। कोर्ट ने यह भी कहा है कि वह इस मामले को गंभीरता से लेगा, और इसका निराकरण नहीं करेगा। कोर्ट ने डीडीए से पूछा है कि क्या उसने मस्जिद को तोड़ने से पहले किसी भी धार्मिक समिति से सलाह ली थी, और क्या उसने विरासत विभाग से भी परामर्श किया था। कोर्ट ने यह भी जानना चाहा है कि क्या डीडीए ने अखुंजी मस्जिद के इतिहास और महत्व का मूल्यांकन किया था, और क्या उसने इसे एक विरासत इमारत के रूप में दर्ज करने का प्रयास किया था।
वैसे तो इस मामले में अभी तक कोई निर्णय नहीं आया है, और दोनों पक्षों के बीच विवाद अभी भी जारी है। इस घटना ने न केवल दिल्ली के मुस्लिम समुदाय को आहत किया है, बल्कि उन लोगों को भी चिंतित किया है, जो देश की विरासत और सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित करना चाहते हैं।
इस घटना के बाद, दिल्ली के नागरिकों ने अपनी आवाज़ उठाई है और सरकार से इतिहास और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा की मांग की है। विभाजन के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच हुए धार्मिक स्थलों के आदान-प्रदान के समय, भारत ने अपने धार्मिक स्थलों की सुरक्षा का वादा किया था, और यह घटना उस वादे को चुनौती देती है।
इसके अलावा, यह घटना भारतीय संविधान के धारा 25 और 26 के उल्लंघन का मामला भी उठाती है, जो धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देती है। इसलिए, यह मामला सिर्फ एक धार्मिक स्थल के विनाश का मामला नहीं है, बल्कि यह भारतीय संविधान की आत्मा के खिलाफ भी है।
अब सवाल यह उठता है कि भारत सरकार और न्यायिक प्रणाली इसे कैसे सुलझाएगी? क्या वे धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के लिए नई नीतियां बनाएंगे? क्या वे धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों की रक्षा करेंगे? और सबसे महत्वपूर्ण, क्या वे अखुंजी मस्जिद को पुनर्निर्माण करने की अनुमति देंगे?
यह सब सवाल अभी बेजवाब हैं, और हमें इंतजार करना होगा कि आगे क्या होता है। लेकिन एक बात स्पष्ट है, यह घटना ने भारत के धार्मिक स्वतंत्रता, विरासत और सांस्कृतिक विविधता के मुद्दों को एक नई दिशा दी है। और हमें उम्मीद है कि इसका समाधान भी उत्तरदायित्वपूर्ण और संवेदनशील होगा।
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