हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने जातिगत समीकरणों का सहारा लेते हुए 36 सीटों पर एक ही जाति के उम्मीदवारों को उतारा है। इनमें 14 सीटों पर जाट बनाम जाट और 15 सीटों पर ओबीसी बनाम ओबीसी मुकाबला होगा। हरियाणा में ओबीसी (33 प्रतिशत), जाट (25 प्रतिशत) और दलित (21 प्रतिशत) मतदाता चुनावी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दोनों पार्टियों को असंतुष्ट नेताओं की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जो निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा में रणजीत सिंह चौटाला और कांग्रेस में चित्रा सरवारा जैसे नेता शामिल हैं। सावित्री जिंदल, जो एशिया की सबसे अमीर महिला हैं, भी निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं। असंतुष्ट नेताओं का बढ़ता प्रभाव चुनावी परिणामों पर गहरा असर डाल सकता है।
हरियाणा विधानसभा चुनाव में BJP और कांग्रेस ने जातिगत समीकरणों का सहारा लेते हुए 36 सीटों पर एक ही जाति के उम्मीदवारों को आमने-सामने उतारा है। इनमें 14 सीटों पर जाट बनाम जाट और 15 सीटों पर ओबीसी बनाम ओबीसी मुकाबला होगा। वोटिंग 5 अक्टूबर को होगी और परिणाम 8 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे। इस चुनाव में जातिगत समीकरण और उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
हरियाणा में ओबीसी (33 प्रतिशत), जाट (25 प्रतिशत) और दलित (21 प्रतिशत) मतदाताओं की भूमिका चुनावी जीत में महत्वपूर्ण मानी जाती है। जाट समुदाय हमेशा से हरियाणा की राजनीति में एक प्रभावशाली शक्ति रहा है। कांग्रेस ने 28 जाट उम्मीदवार और BJP ने 16 जाट उम्मीदवार उतारे हैं। यह संख्या यह दर्शाती है कि दोनों दल जाट वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए कितनी गंभीरता से प्रयास कर रहे हैं।
ओबीसी उम्मीदवारों की स्थिति
ओबीसी मतदाता भी हरियाणा की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। BJP ने 22 ओबीसी उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि कांग्रेस ने 20 ओबीसी उम्मीदवार खड़े किए हैं। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि दोनों पार्टियां ओबीसी वोटों को अपनी ओर खींचने के लिए संघर्ष कर रही हैं। अनुसूचित जातियों के लिए 17 सीटें आरक्षित हैं, लेकिन सामान्य सीटों पर दलित समुदाय के लिए संभावनाएं भी खुली हैं, जो उनकी राजनीतिक भागीदारी को बढ़ा सकती हैं।
असंतुष्ट नेताओं का संकट
हरियाणा विधानसभा चुनाव में BJP और कांग्रेस दोनों दलों को असंतुष्ट नेताओं की बढ़ती संख्या से बड़ी चुनौती मिल रही है। जिन उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिला, वे निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे हैं, जिससे दोनों पार्टियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
BJP में असंतोष
BJP के लिए स्थिति गंभीर है। कई नेता, जैसे पूर्व विद्युत मंत्री रणजीत सिंह चौटाला, टिकट न मिलने के बाद निर्दलीय चुनाव लड़ने का निर्णय ले चुके हैं। चौटाला ने मंत्री पद से इस्तीफा देकर निर्दलीय चुनाव में उतरने का निर्णय लिया है। इसके अलावा, देवेंद्र कादियान, राम शर्मा, दीपक डागर, कहर सिंह रावत, जसबीर देसवाल और कल्याण चौहान जैसे अन्य नेता भी पार्टी के लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं। इन असंतुष्ट नेताओं की संख्या में वृद्धि BJP के लिए चुनावी समीकरण को चुनौती देने का काम कर सकती है।
कांग्रेस की कठिनाइयां
कांग्रेस की स्थिति भी उतनी ही चुनौतीपूर्ण है। पार्टी में असंतुष्ट नेताओं की संख्या काफी अधिक है। हरियाणा के 20 निर्वाचन क्षेत्रों में 29 असंतुष्ट उम्मीदवार कांग्रेस प्रत्याशियों के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें से प्रमुख चेहरे निर्मल सिंह की बेटी चित्रा सरवारा हैं, जो अंबाला छावनी से निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं। उनका मुकाबला BJP के अनिल विज और कांग्रेस के परविंदर सिंह परी जैसे अनुभवी नेताओं से होगा। यह स्थिति कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ा सकती है, खासकर जब असंतुष्ट नेता पार्टी के भीतर से ही चुनौती दे रहे हों।
सावित्री जिंदल की राजनीति
हरियाणा की राजनीति में सावित्री जिंदल का नाम भी विशेष महत्व रखता है। वे एशिया की सबसे अमीर महिला और ओपी जिंदल समूह की अध्यक्ष हैं। वे हिसार से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रही हैं। जिंदल ने कहा है कि यह उनका अंतिम चुनाव है और वे जनता की सेवा के लिए पूरी तरह समर्पित हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे कभी BJP में शामिल नहीं हुईं, भले ही वे BJP के सांसद के बेटे की मां हों। उनका निर्दलीय चुनाव लड़ना हरियाणा की राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है।
BJP और कांग्रेस की रणनीतियां
BJP और कांग्रेस दोनों ही असंतुष्ट नेताओं को मनाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन इसके बावजूद कई नेता पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए मजबूर हैं। BJP के व्यापार प्रकोष्ठ के पूर्व संयोजक नवीन गोयल ने भी पार्टी छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया है। उनका कहना है कि पार्टी के कुछ नेता टिकट न मिलने के कारण नाराज हैं, जो चुनाव में BJP की स्थिति पर असर डाल सकता है।
चुनावी नतीजों का संभावित प्रभाव
Haryana Assembly Elections में असंतुष्ट नेताओं का बढ़ता प्रभाव दोनों प्रमुख पार्टियों के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया है। निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि से चुनावी परिणामों पर गहरा असर पड़ सकता है। इस बार चुनावी माहौल में जातिगत समीकरण और असंतोष दोनों ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं।
यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या BJP और कांग्रेस इन चुनौतियों का सामना कर पाएंगी या ये असंतुष्ट नेता चुनावी खेल को बदल देंगे। हरियाणा की राजनीति में यह चुनाव एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, जिससे भविष्य की दिशा तय होगी। जातिगत समीकरणों और असंतोष के बीच, इस चुनाव में राजनीतिक रणनीतियों की सफलता का स्तर ही निर्णायक साबित होगा
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