क्या आपने कभी सोचा है कि Government vs Central Bank के बीच मतभेद क्यों होते हैं? क्या आपको लगता है कि सरकार को केंद्रीय बैंक के दिशानिर्देशों को मानना चाहिए? हाल ही में जारी एक पुस्तक में, पूर्व आरबीआई गवर्नर दिव्वुरी सुब्बाराव ने कुछ आश्चर्यजनक खुलासे किए हैं जो इन सवालों पर नई रोशनी डालते हैं। नमस्कार, आप देख रहे है AIRR न्यूज़।
पूर्व आरबीआई गवर्नर दिव्वुरी सुब्बाराव ने अपनी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘जस्ट ए मर्सिनरी?: नोट्स फ्रॉम माई लाइफ एंड करियर’ में कुछ सनसनीखेज दावे किए हैं। सुब्बाराव का कहना है कि उन्हें सरकार की इस मांग से अक्सर असहजता और परेशानी होती थी कि आरबीआई को सरकार का समर्थन करना चाहिए।
आगे सुब्बाराव लिखते हैं कि सरकार में केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता के महत्व को लेकर बहुत कम समझ और संवेदनशीलता थी। 2012 में, पी चिदंबरम के गृह मंत्रालय से वित्त मंत्री के रूप में लौटने के तुरंत बाद, उन्होंने प्रणब मुखर्जी शासन की राजकोषीय लापरवाही की भरपाई के लिए एक उदार मौद्रिक शासन पर जोर दिया।
सुब्बाराव के अनुसार, चिदंबरम ने आरबीआई पर ब्याज दर कम करने के लिए दबाव डाला। हालांकि, सुब्बाराव ने ऐसा करने से इंकार कर दिया, जिससे चिदंबरम नाराज हो गए और उन्होंने रिजर्व बैंक की इस कड़ी प्रतिक्रिया की सार्वजनिक रूप से निंदा की।
आपको बता दे कि सुब्बाराव अपनी निर्भीकता के लिए जाने जाते थे। 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान, उन्होंने चुप्पी नहीं साधी जब चिदंबरम ने आरबीआई से परामर्श किए बिना तरलता प्रबंधन पर एक समिति का गठन किया। सुब्बाराव ने इस कदम को “अनुचित” करार दिया और घोषणा की कि आरबीआई समिति का हिस्सा नहीं होगा।
बाकि पूर्व आरबीआई गवर्नर दिव्वुरी सुब्बाराव की पुस्तक ‘जस्ट ए मर्सिनरी?: नोट्स फ्रॉम माई लाइफ एंड करियर’ से पता चलता है कि Government vs Central Bank बैंक के बीच तनाव एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा है।
जिसमे सरकारें अक्सर केंद्रीय बैंकों को अपनी आर्थिक नीतियों का समर्थन करने वाले उपकरण के रूप में देखती हैं। उनका मानना है कि केंद्रीय बैंक आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और रोजगार सृजित करने में मदद कर सकते हैं। इसलिए, वे केंद्रीय बैंकों पर अपनी नीतियों का पालन करने के लिए दबाव डाल सकते हैं, भले ही वे नीतियां केंद्रीय बैंक के स्वतंत्र निर्णय के अनुरूप न हों।
दूसरी ओर, केंद्रीय बैंक अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखना चाहते हैं। उनका मानना है कि आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए सरकार के हस्तक्षेप से मुक्त होना आवश्यक है। वे राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर वस्तुनिष्ठ निर्णय लेने में सक्षम होना चाहते हैं।
हालाँकि Government vs Central Bank के बीच तनाव कई कारकों से उपजा है, जैसे सरकारों की अल्पकालिक राजनीतिक प्राथमिकताएं बनाम केंद्रीय बैंकों की दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता। तथा विभिन्न हितधारकों, जैसे व्यवसायों, उपभोक्ताओं और श्रमिकों की प्रतिस्पर्धी मांगों को संतुलित करने की आवश्यकता और आर्थिक स्थितियों में अनिश्चितता और जटिलता, जो सरकारों और केंद्रीय बैंकों दोनों के लिए चुनौतियां पैदा करती है।
ऐसे में Government vs Central Bank के बीच तनाव को प्रबंधित करना एक कठिन काम है। इसके लिए दोनों पक्षों से समझ, विश्वास और सहयोग की आवश्यकता होती है। सरकारों को केंद्रीय बैंकों की स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए, जबकि केंद्रीय बैंकों को सरकारों की वैध नीतिगत प्राथमिकताओं को समझना चाहिए।
तो इस तरह हमने जाना किGovernment vs Central Bank के बीच तनाव अपरिहार्य है। हालांकि, इस तनाव को रचनात्मक रूप से प्रबंधित किया जा सकता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि दोनों संस्थान अपने-अपने मिशनों को पूरा करें। स्पष्ट संचार, पारस्परिक सम्मान और एक साझा समझ आर्थिक स्थिरता और समृद्धि बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
बाकि इस घटना से पता चलता है कि सरकारें अक्सर केंद्रीय बैंकों की स्वतंत्रता का सम्मान करने से हिचकिचाती हैं। आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में केंद्रीय बैंकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, और स्वतंत्रता उन्हें राजनीतिक दबाव के बिना आवश्यक निर्णय लेने में सक्षम बनाती है। हालाँकि, जैसा कि सुब्बाराव के अनुभव ने दिखाया है, सरकारें अक्सर मानती हैं कि केंद्रीय बैंक उनके आदेशों का पालन करने के लिए हैं।
नमस्कार आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।
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