क्या Electoral Bonds वास्तव में राजनीतिक दलों को सहायता प्रदान करते हैं, या ये एक ऐसा उपकरण है जिसका इस्तेमाल दबाव और ब्लैकमेल के लिए किया जा रहा है? क्या इन बॉन्ड्स के पीछे की सच्चाई वाकई में चिंताजनक है? आज की इस खास प्रस्तुति में हम इन्हीं सवालों की तह तक जाएंगे। नमस्कार, आप देख रहे हैं AIRR न्यूज़।-Electoral Bonds Political news
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने हाल ही में भाजपा पर आरोप लगाया कि उसने केंद्रीय एजेंसियों जैसे कि प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई का दुरुपयोग करके Electoral Bonds के माध्यम से 400 करोड़ रुपये जुटाए हैं। खड़गे ने मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा कि ताजा जांच से पता चला है कि 45 कंपनियों ने उन पर पड़े छापे के बाद भाजपा को Electoral Bonds के जरिए दान दिया है और यदि भाजपा लोकतंत्र की परवाह करती है, तो उसे अपनी वित्तीय स्थिति पर एक श्वेत पत्र जारी करना चाहिए।
खड़गे ने आरोप लगाया कि “क्या यह ब्लैकमेल, उगाही, लूट और दबाव था जिससे अधिक दान प्राप्त किया जा सके? एक ताजा जांच से पता चलता है कि 15 और कंपनियों ने, ईडी, सीबीआई, आईटी छापों के बाद, भाजपा को दान दिया, जिससे कुल 45 कंपनियों ने भाजपा को लगभग 400 करोड़ रुपये दिए।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि “रिपोर्ट्स के अनुसार, 4 शेल कंपनियों ने भी भाजपा को फंड किया। तानाशाही मोदी सरकार ने कांग्रेस पार्टी के बैंक खातों को सील कर दिया है, जबकि वह केंद्रीय एजेंसियों का उपयोग करके अपने लिए पैसे निकाल रही है।”
कांग्रेस प्रमुख ने दावा किया कि भाजपा ने “असंवैधानिक और अवैध Electoral Bonds का उपयोग अपने चुनावी फंड को भरने के लिए किया है, और इसने चुनावी ट्रस्टों को ‘दान लूट’ को 10 गुना बढ़ाने के लिए ‘हेरफेर’ भी किया है।
खड़गे का यह हमला उस समय आया जब मुख्य चुनाव आयुक्त ने बुधवार को Electoral Bonds के विवरण “समय पर” साझा करने की घोषणा की और आयोग ने पूर्ण पारदर्शिता में विश्वास करने की बात कही। यह उल्लेखनीय है कि भारतीय स्टेट बैंक ने मंगलवार को शीर्ष अदालत को बताया कि 1 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी इस वर्ष तक कुल 22,217 Electoral Bonds दानकर्ताओं द्वारा खरीदे गए थे, जिनमें से 22,030 को राजनीतिक दलों द्वारा भुनाया गया था।
Electoral Bonds का मुद्दा न केवल राजनीतिक दलों के वित्तपोषण का प्रश्न है, बल्कि यह लोकतंत्र की पारदर्शिता और नैतिकता की भी परीक्षा है। जहां एक ओर इसे राजनीतिक दलों के लिए धन जुटाने का एक सुगम माध्यम माना जा सकता है, वहीं इसके दुरुपयोग की संभावनाएं भी उतनी ही बढ़ जाती हैं। इस प्रक्रिया में गुप्त दानकर्ताओं की भूमिका और उनके इरादों पर प्रश्न उठते हैं।
Electoral Bonds की शुरुआत 2019 में हुई थी, जिसका उद्देश्य राजनीतिक चंदे को और अधिक पारदर्शी बनाना था। हालांकि, इसके क्रियान्वयन में कई विवाद सामने आए हैं। खड़गे के आरोपों से यह स्पष्ट होता है कि Electoral Bonds का इस्तेमाल राजनीतिक दलों के लिए अवैध धन जुटाने के एक साधन के रूप में हो सकता है।
यदि Electoral Bonds के इस्तेमाल में पारदर्शिता और नियमन की कमी रहती है, तो इससे राजनीतिक दलों के बीच असमानता और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है। इसके अलावा, इससे नागरिकों का राजनीतिक प्रक्रिया में विश्वास कम हो सकता है।
Electoral Bonds के माध्यम से राजनीतिक चंदा एक ऐसा मुद्दा है जिस पर गहन विचार-विमर्श और सुधार की आवश्यकता है। इसके लिए न केवल सरकारी नीतियों में परिवर्तन की जरूरत है, बल्कि नागरिकों की जागरूकता और सक्रिय भागीदारी भी अनिवार्य है।
हमारी अगली वीडियो में हम Electoral Bonds के विकल्पों और राजनीतिक चंदे के अन्य सुरक्षित तरीकों पर चर्चा करेंगे। क्या इसके लिए कोई बेहतर प्रणाली संभव है? इस पर गहराई से जानने के लिए बने रहिए हमारे साथ। नमस्कार, आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।
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