लोकतंत्र में, चुनाव एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो लोगों को अपने प्रतिनिधियों को चुनने की अनुमति देती है। भारत में, चुनाव आयोग (ईसीआई) चुनावों के संचालन और निगरानी के लिए जिम्मेदार सर्वोच्च निकाय है। हालाँकि, हाल ही में आरोप लगे हैं कि ईसीआई 2024 के लोकसभा चुनावों में मतदाता मतदान डेटा को जारी करने में पारदर्शिता की कमी बरत रहा है। इससे सवाल उठते हैं कि क्या ईसीआई मतदाता मतदान डेटा को पारदर्शी तरीके से जारी करने के लिए बाध्य है, और यदि नहीं, तो गोपनीयता की चिंताओं को पारदर्शिता की मांगों के विरुद्ध कैसे तौला जाना चाहिए।-ECI’s Voter update
आज हम इसी विवादित विषय पर बात करने वाले है तो बने रहिये हमरे साथ। नमस्कार आप देख रहे है AIRR न्यूज़।
निर्वाचन आयोग ने Supreme Court में एक हलफनामे में कहा है कि चुनावों में मतदाता मतदान डेटा जारी करने का कोई कानूनी दायित्व नहीं है। चुनाव आयोग का तर्क है कि इस तरह का प्रकटीकरण दुरुपयोग के लिए अतिसंवेदनशील हो सकता है।-ECI’s Voter update
हालाँकि, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और कॉमन कॉज नामक गैर सरकारी संगठनों ने Supreme Court में एक याचिका दायर की है जिसमें मांग की गई है कि मतदाता मतदान डेटा तुरंत जारी किया जाए। उनका तर्क है कि यह डेटा पारदर्शी और जवाबदेह चुनाव प्रक्रिया के लिए आवश्यक है।
चुनाव आयोग और याचिकाकर्ताओं के बीच का मामला Supreme Court में लंबित है। अदालत को इस मुद्दे पर फैसला सुनाना है कि क्या चुनाव आयोग मतदाता मतदान डेटा जारी करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है या नहीं।
आपको बता दे कि मतदाता मतदान डेटा जारी करने पर चुनाव आयोग के रुख की कई विशेषज्ञों द्वारा आलोचना की गई है। उनका तर्क है कि चुनाव आयोग मतदान प्रक्रिया में पारदर्शिता को लेकर ईमानदार नहीं है। वे इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि चुनाव आयोग ने बार-बार मतदाता मतदान डेटा जारी करने में देरी की है, और अक्सर अंतिम आंकड़े प्रारंभिक अनुमानों से भिन्न होते हैं।-ECI’s Voter update
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि मतदाता मतदान डेटा जारी करना चुनाव प्रक्रिया में विश्वास बनाए रखने के लिए आवश्यक है। उनका तर्क है कि मतदाताओं को यह जानने का अधिकार है कि उनके वोटों की गिनती कैसे की जा रही है।
चुनाव आयोग ने मतदाता मतदान डेटा जारी करने से इनकार करने के अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि यह गोपनीयता की चिंताओं के कारण किया गया है। चुनाव आयोग का तर्क है कि अगर मतदाता मतदान डेटा जारी किया गया, तो इसका दुरुपयोग हो सकता है। उदाहरण के लिए, कुछ समूह इसका उपयोग मतदाताओं को डराने-धमकाने या उन्हें वोट डालने से रोकने के लिए कर सकते हैं।-ECI’s Voter update
मतदाता मतदान डेटा जारी करने पर चुनाव आयोग के रुख की कई विशेषज्ञों द्वारा आलोचना की गई है। उनका तर्क है कि चुनाव आयोग मतदान प्रक्रिया में पारदर्शिता को लेकर ईमानदार नहीं है। वे इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि चुनाव आयोग ने बार-बार मतदाता मतदान डेटा जारी करने में देरी की है, और अक्सर अंतिम आंकड़े प्रारंभिक अनुमानों से भिन्न होते हैं।
उदाहरण के लिए, 2019 के लोकसभा चुनाव में, चुनाव आयोग ने मतदान के दिन मतदान प्रतिशत की घोषणा की, लेकिन अंतिम मतदान प्रतिशत की घोषणा करने में 11 दिन लग गए। इससे आरोप लगे कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ दल को लाभ पहुंचाने के लिए मतदान के आंकड़ों में हेराफेरी कर रहा था।
हालाँकि मतदाता मतदान डेटा जारी करने का मुद्दा नया नहीं है। कई वर्षों से चुनाव सुधार कार्यकर्ता इस डेटा को जारी करने की मांग कर रहे हैं। 2013 में, सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को मतदान प्रतिशत संबंधी आंकड़ों को जारी करने का निर्देश दिया था। हालाँकि, चुनाव आयोग ने इस आदेश को पूरी तरह से लागू नहीं किया था।
तो इस तरह मतदाता मतदान डेटा जारी करने या न करने का निर्णय एक जटिल निर्णय है जिसमें पारदर्शिता और गोपनीयता दोनों की चिंताओं को तौलना शामिल है। चुनाव आयोग के इस मुद्दे पर अपने रुख पर पुनर्विचार करने की संभावना है, खासकर अगर Supreme Court याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाता है।
नमस्कार आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।
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