आज के इस वीडियो में हम बात करेंगे Bombay हाईकोर्ट के एक फैसले के बारे में, जिसमें आईटी नियमों में संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दो जजों ने अलग-अलग राय दी हैं। इस फैसले का क्या मतलब है? इसका आम जनता और सोशल मीडिया पर सामग्री प्रकाशित करने वालों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? और इस मामले का आगे क्या होगा? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए बने रहिए हमारे साथ। नमस्कार, आप देख रहे हैं AIRR न्यूज़।
आईटी नियमों में संशोधन का मुद्दा पिछले साल उभरा था, जब केंद्र सरकार ने आईटी अधिनियम 2000 के तहत नए नियम बनाए, जिनमें एक तथ्य-जांच इकाई (एफसीयू) की स्थापना की बात थी। इस इकाई का काम होगा कि वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर सरकार के व्यवसाय से संबंधित किसी भी “फर्जी, गलत या भ्रामक” जानकारी को पहचाने और उसे फ्लैग करे। इसके बाद, उस सामग्री को हटाने या उस पर एक अस्वीकरण जोड़ने के लिए सोशल मीडिया मध्यस्थों को आदेश दिए जाएंगे।
इस नियम को चुनौती देने के लिए, कुछ पत्रकार, संपादक, डिजिटल मीडिया एसोसिएशन और राजनीतिक व्यंग्यकार कुणाल कामरा ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उन्होंने दावा किया कि यह नियम उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, जैसे कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (ए) और 19 (1) (जी) के तहत बोलने और व्यवसाय करने की स्वतंत्रता। उन्होंने यह भी कहा कि यह नियम आईटी अधिनियम की धारा 79 और 87 के खिलाफ है, जो मध्यस्थों को तीसरे पक्ष की सामग्री से संबंधित कानूनी कार्रवाई से बचाते हैं।
इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, बॉम्बे हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने 31 जनवरी को एक विभाजित फैसला सुनाया। जस्टिस गौतम पटेल ने याचिकाकर्ताओं का पक्ष लेते हुए नियम को अवैध घोषित कर दिया, जबकि जस्टिस नीला गोखले ने सरकार का पक्ष लेते हुए नियम को वैध माना। जस्टिस पटेल ने कहा कि यह नियम सेंसरशिप के समान है, जो सोशल मीडिया पर सामग्री प्रकाशित करने वालों के लिए एक “डर का प्रभाव” पैदा करता है। उन्होंने यह भी कहा है कि यह नियम सरकार को अनुचित रूप से अधिकार देता है, जो उसके विरोधी या आलोचकों को चुप कराने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। जस्टिस गोखले ने इसके उलट कहा कि यह नियम फर्जी या भ्रामक जानकारी को रोकने के लिए एक उचित उपाय है, जो सामाजिक शांति और सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है।
यह नियम बोलने की स्वतंत्रता के इस फैसले के बाद, यह मामला अब तीसरे जज के सामने रखा जाएगा, जो इन दोनों रायों को देखकर अंतिम निर्णय लेंगे। इसके लिए कोई तारीख निर्धारित नहीं की गई है। इस बीच, सरकार ने अदालत को आश्वासन दिया है कि वह अगले 10 दिनों तक अपनी फैक्ट-चेक यूनिट को अधिसूचित नहीं करेगी। याचिकाकर्ताओं को भी अपनी सुरक्षा के लिए उचित मंच पर आवेदन करने की अनुमति दी गई है।
यह फैसला आईटी नियमों के विरोध में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसका आम जनता और सोशल मीडिया पर सामग्री प्रकाशित करने वालों पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। यदि तीसरे जज ने भी याचिकाकर्ताओं का पक्ष लिया, तो यह नियम अवैध घोषित हो जाएंगे और सरकार को उन्हें वापस लेना होगा। यदि तीसरे जज ने सरकार का पक्ष लिया, तो यह नियम लागू हो जाएंगे और सोशल मीडिया पर सामग्री प्रकाशित करने वालों को उनके अनुसार चलना होगा। इससे उनकी बोलने और लिखने की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लग सकता है।
यह एक गंभीर मुद्दा है, जिसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। इसलिए, हम आपको इस मामले की हर अपडेट देते रहेंगे। आप भी अपनी राय हमें कमेंट बॉक्स में बताएं। इस वीडियो को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करना न भूलें। नमस्कार आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।
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