इस बार अरुणाचल प्रदेश में 12 जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण को लेकर भारत और चीन के बीच एक बार फिर से तनाव बढ़ गया है। भारत ने इन परियोजनाओं के लिए $1 बिलियन खर्च करने की योजना बनाई है, जिसे चीन ने अवैध घोषित कर दिया है। चीन का कहना है कि भारत को इस क्षेत्र में कोई विकास कार्य करने का अधिकार नहीं है। जबकि भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में इन परियोजनाओं के लिए 7.5 अरब रुपये की वित्तीय सहायता को मंजूरी दी है। यह विवाद भारत-चीन संबंधों को और अधिक जटिल बना रहा है। लेकिन क्या आप जानते है कि भारत और चीन के बीच इस विवाद का प्रमुख कारण क्या है? इन जलविद्युत परियोजनाओं के आर्थिक और सामरिक महत्व क्या हैं? और भारत की ‘पड़ोस पहले’ और ‘सागर’ नीतियों का इस विवाद पर क्या प्रभाव पड़ेगा? नमस्कार, आप देख रहे हैं AIRR न्यूज़।-China – Hydropower Projects
अरुणाचल प्रदेश में 12 जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण के लिए भारत ने $1 बिलियन खर्च करने की योजना बनाई है। इन परियोजनाओं के लिए भारत सरकार ने 7.5 अरब रुपये की वित्तीय सहायता मंजूर की है। चीन ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है और कहा है कि भारत को इस क्षेत्र में कोई विकास कार्य करने का अधिकार नहीं है।-China – Hydropower Projects
इस विवाद के पीछे का मुख्य कारण भारत और चीन के बीच 2,500 किमी की अर्ध-निर्धारित सीमा है, जिसे लेकर दोनों देशों के बीच 1962 में युद्ध भी हो चुका है। दोनों देशों ने अपने सीमा क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को सुधारने के प्रयास किए हैं, खासकर 2020 में पश्चिमी हिमालय में हुई झड़प के बाद।-China – Hydropower Projects
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद के चलते दोनों देशों के बीच तनाव बना रहता है। इस विवाद का एक बड़ा कारण ब्रह्मपुत्र नदी है, जिसे चीन में यारलुंग त्संगपो के नाम से जाना जाता है। भारत चिंतित है कि चीन इस नदी पर बांध बनाकर जल संकट या बाढ़ की स्थिति पैदा कर सकता है।
आपको बता दे कि अरुणाचल प्रदेश में जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण भारत की संप्रभुता और आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है। ये परियोजनाएँ न केवल राज्य के विकास को बढ़ावा देंगी, बल्कि पूर्वोत्तर क्षेत्र की ऊर्जा जरूरतों को भी पूरा करेंगी। भारत ने पिछले 20 वर्षों में 15 गीगावाट से कम जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण किया है, जबकि इसी अवधि में कोयला और अन्य नवीकरणीय स्रोतों की स्थापना लगभग 10 गुना अधिक हुई है।
बाकि चीन का यह दावा कि भारत को इस क्षेत्र में विकास कार्य करने का अधिकार नहीं है, भारत की संप्रभुता पर सवाल उठाता है। चीन का यह रवैया न केवल भारत की संप्रभुता का अपमान है, बल्कि यह क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी खतरा है।
वैसे भारत की ‘पड़ोस पहले’ और ‘सागर’ नीतियाँ इस विवाद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ‘पड़ोस पहले’ नीति के तहत भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने पर जोर देता है। ‘सागर’ दृष्टिकोण, जिसका अर्थ है ‘क्षेत्र में सभी की सुरक्षा और विकास’, भारत की समुद्री नीति को दर्शाता है।
इस संदर्भ में, भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी जलविद्युत परियोजनाओं को जारी रखे और चीन के विरोध का सामना करते हुए अपनी संप्रभुता की रक्षा करे।
हालाँकि भारत-चीन सीमा विवाद कई दशकों से चला आ रहा है और इसने कई बार दोनों देशों के बीच तनाव पैदा किया है। 1962 के युद्ध के बाद से, दोनों देशों के बीच सीमा विवाद ने कई बार गंभीर मोड़ लिया है। 2020 में पश्चिमी हिमालय में हुई झड़प में 20 भारतीय और कम से कम 4 चीनी सैनिकों की मौत हुई थी। इस घटना ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया था।
इसके अलावा, ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रबंधन को लेकर भी दोनों देशों के बीच विवाद बना हुआ है। चीन की योजना है कि वह इस नदी पर कई बांध बनाएगा, जिससे भारत में जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
नमस्कार, आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।
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