BJP ने लोकसभा चुनावों के लिए अपने गठबंधन को मजबूत करने के लिए अपने पूर्व साथियों टीडीपी, अकाली दल और आरएलडी के साथ बातचीत शुरू कर दी है। वही बिहार में नीतीश कुमार की नई एनडीए सरकार को 12 फरवरी को विश्वास मत का सामना करना होगा। इन सभी पार्टियों के साथ भाजपा का रिश्ता काफी पुराना और मजबूत रहा है। लेकिन अब लगता है कि भाजपा ने इन पार्टियों के साथ अपने रिश्ते को फिर से सुधारने का फैसला किया है।
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टीडीपी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू बुधवार को दिल्ली पहुंचे और रात के अंधेरे में भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ मिलने के बाद गृह मंत्री अमित शाह के घर गए। सूत्रों का कहना है कि इन दोनों नेताओं ने भाजपा और टीडीपी के बीच गठबंधन की संभावना पर चर्चा की। आपको बता दें कि टीडीपी ने 2019 में एनडीए से अलग होकर आंध्र प्रदेश में भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा था। लेकिन इस चुनाव में टीडीपी को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी की यूआरपी की सरकार बनी और वह भाजपा का समर्थन करने लगी। इससे भाजपा को टीडीपी की जरूरत नहीं रही। लेकिन अब लगता है कि भाजपा ने टीडीपी के साथ अपने रिश्ते को फिर से सुधारने का फैसला किया है।
इसी तरह, भाजपा ने अकाली दल के साथ भी बातचीत शुरू कर दी है। सूत्रों का कहना है कि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के साथ पंजाब में गठबंधन के लिए प्रारंभिक बातचीत की है। अकाली दल ने पिछले साल फार्म बिलों के विरोध में एनडीए से अलग होकर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा था। लेकिन इस चुनाव में अकाली दल को भी निराशा ही हाथ लगी। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी और भाजपा और अकाली दल दोनों को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। इससे भाजपा और अकाली दल के बीच दूरियां बढ़ गईं। लेकिन अब लगता है कि भाजपा ने अकाली दल के साथ अपने रिश्ते को फिर से सुधारने का फैसला किया है।
ऐसे में सवाल वाजिब है कि भाजपा के इन कदमों का क्या मतलब है? यह सवाल कई लोगों के मन में उठ रहा है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा ने अपने पूर्व साथियों के साथ बातचीत करके अपने गठबंधन को मजबूत करने का प्रयास किया है। भाजपा को पता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में वह अकेले नहीं लड़ सकती है। इसलिए वह अपने पुराने और नए साथियों को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही है। भाजपा को यह भी पता है कि विपक्षी दलों का गठबंधन ‘इंडिया’ उसके लिए एक बड़ी चुनौती है। इसलिए वह अपने गठबंधन को जितना हो सके विस्तृत और विविध बनाना चाहती है।
कुछ लोगों का यह भी मतलब है कि भाजपा ने अपने पूर्व साथियों के साथ बातचीत करके उनके आपत्तिजनक मुद्दों को हल करने का रास्ता ढूंढने की कोशिश की है। भाजपा को यह भी पता है कि टीडीपी और अकाली दल दोनों ही अपने क्षेत्रों में मजबूत हैं। टीडीपी का आंध्र प्रदेश में एक बड़ा वोट बैंक है। अकाली दल का पंजाब में एक बड़ा प्रभाव है। इन दोनों पार्टियों के साथ भाजपा को अपने गठबंधन को और अधिक आकर्षक बनाने में मदद मिल सकती है। भाजपा को यह भी पता है कि इन पार्टियों के साथ अपने रिश्ते को फिर से सुधारने के लिए उसे कुछ समझौते करने होंगे जिसके लिए वो अब तैयार है।
इसलिए, भाजपा के इन कदमों का मतलब यह है कि वह अपने गठबंधन को मजबूत और व्यापक बनाने के लिए तैयार है। वह अपने पूर्व साथियों के साथ अपने मतभेदों को कम करने के लिए बातचीत कर रही है। वह अपने विरोधियों के गठबंधन को तोड़ने के लिए भी प्रयास कर रही है। वह अपने जनाधार को बढ़ाने के लिए भी काम कर रही है। वह 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए अपनी रणनीति को बदल रही है।
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