RSS की सलाह ना मानना बीजेपी को पड़ा महंगा-bjp rss latest news
240 सीटों पर सिमट गई बीजेपी
कई अहम सलाह को बीजेपी ने किया दरकिनार
नड्डा ने कहा था- बीजेपी सक्षम, RSS की जरूरत नहीं
पिछले कई सालों से BJP-RSS में खींचतान चल रही है
बीजेपी चुनाव में RSS आइडियोलॉजी के साथ नहीं थी
राम मंदिर समेत कई मुद्दों पर RSS की सलाह दरकिनार
लोकसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए संतोषजनक नहीं रहे हैं.. 400 पार का नारा देने वाली बीजेपी 240 सीटों पर सिमट गई.. इस बार अगर गौर करें तो भारतीय जनता पार्टी ने RSS को दरकिनार किया.. तो क्या यही वजह है कि बीजेपी इस पर उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाई.. आज के इस वीडियो में हम इसी मुद्दे का विश्लेषण करेंगे.. नमस्कार आप देख रहे हैं AIRR NEWS…. -bjp rss latest news
आपको याद होगा लोकासभा चुनाव के चौथे राउंड के बाद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक बयान दिया था.. जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘शुरुआत में हम कम सक्षम थे। तब हमें RSS की जरूरत पड़ती थी। अब हम सक्षम हैं। आज BJP खुद अपने आप को चलाती है।‘… ये बयान अचानक नहीं था..ये उस खींचतान का नतीजा था, जो BJP और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, यानी RSS के बीच 3-4 साल से चल रही है… तो क्या RSS चुनाव में BJP के साथ नहीं था? जवाब में संघ के प्रांतीय स्तर के एक पदाधिकारी कहते हैं- ‘BJP चुनाव में RSS आइडियोलॉजी के साथ नहीं थी। और RSS किसी के साथ नहीं होता, सिर्फ आइडियोलॉजी के साथ होता है। BJP पीछे हटी, RSS नहीं।’.. -bjp rss latest news
अब आपको वो मुद्दे बताते हैं जिनकी वजहों से RSS और BJP के बीच खाई पैदा होती गई.. सबसे पहले बात राम मंदिर की करते हैं . बीजेपी को इस मुद्दे पर RSS की सलाह दरकिनार करना भारी पड़ गया.. RSS के एक वरिष्ठ पदाधिकारी बताते हैं, कि राम मंदिर के मामले में BJP ने RSS की बात सुननी बंद कर दी थी.. शुरुआत चंपत राय पर वित्तीय गड़बड़ी के आरोप से हुई थी। RSS ने चंपत राय को चित्रकूट की प्रतिनिधि सभा में बुलाया और सख्त चेतावनी भी दी.. इसके बाद BJP ने राम मंदिर का मसला सीधा अपने हाथ में ले लिया.. RSS की सलाह पर ध्यान देना भी जरूरी नहीं समझा।’.. इसके अलावा राम मंदिर निर्माण समिति का अध्यक्ष PM मोदी के करीबी नृपेंद्र मिश्र को बनाया गया..
नृपेंद्र मिश्र 2014 और 2019 में PMO के सबसे खास अधिकारी थे.. राम मंदिर आंदोलन के वक्त जब कारसेवकों पर गोलियां चली थीं, तब नृपेंद्र मिश्र यूपी सरकार में प्रमुख सचिव थे.. नृपेंद्र मिश्रा को राम मंदिर निर्माण समिति का अध्यक्ष बनाया जाना, RSS के कई पदाधिकारियों को पसंद नहीं आया.. RSS ने इस पर BJP से बात भी की, लेकिन BJP ने फैसला नहीं बदला.. ये RSS और BJP के बीच खाई बनने की सबसे पहली ठोस वजह थी… रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर RSS का कहना था कि इसे राजनीतिक नहीं बल्कि राष्ट्रीय आंदोलन बनाना था.. इस मसले पर RSS ने BJP से सीधे बात की थी।
उसका मानना था कि राम मंदिर राजनीतिक आंदोलन नहीं है। इस पर राजनीति से बचना चाहिए। ये हिंदुत्व का मुद्दा है। लोगों की आस्था है। अगर जनता को लगा कि राम मंदिर पर राजनीति हो रही है, तो वो BJP से दूर हो जाएगी। RSS की इस सलाह को भी नहीं माना गया। इसका असर ये हुआ कि BJP अयोध्या की सीट भी नहीं बचा पाई… वहीं RSS की तरफ से कहा गया था कि अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा चुनाव के ठीक बाद हो.. मशविरा दिया गया था कि मंदिर का काम तो चल ही रहा है, अगर प्राण प्रतिष्ठा पहले हुई, तो लोग चुनाव आते-आते इस मुद्दे को भूल जाएंगे..प्राण प्रतिष्ठा बाद में हुई, तो लोग मंदिर का मुद्दा याद रखेंगे। चुनाव के दौरान उनके दिमाग में ये बना रहेगा। राम मंदिर बनने की आशा को बचाए रखना था, ये तभी होता जब प्राण प्रतिष्ठा चुनाव के बाद होती, लेकिन BJP को जल्दी थी। इसका नतीजा ये हुआ कि कई धर्मगुरु भी BJP के फैसले के विरोध में आ गए…
इतना ही नहीं मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के मामले में भी RSS, BJP से बहुत नाराज था.. RSS चाहता था कि सभी शंकराचार्य और धर्मगुरु आयोजन में शामिल हों. उन्हें तवज्जो दी जाए. BJP ने हड़बड़ी में किसी को मनाने की जरूरत नहीं समझी, जो नाराज थे, उन्हें नाराज ही रहने दिया। BJP ने अपने गेस्ट बुलाए, जो ग्लैमर और बिजनेस की दुनिया से थे.. प्राण प्रतिष्ठा के लिए कई बॉलीवुड स्टार्स को ऑफिशियल निमंत्रण दिया गया। RSS चाहता था कि इस आयोजन में ग्लैमर का तड़का न लगे। जिन्हें आना है, वे खुद आएं, जैसे आम लोग आते हैं। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को पवित्र मौका बनाया जाए, लेकिन ये मौका पवित्र की जगह ग्लैमरस ज्यादा दिखा.. वहीं प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर PM मोदी ने खुद पूजा करने का फैसला लिया.. RSS नहीं चाहता था कि कोई राजनीतिक व्यक्ति ये जिम्मेदारी ले। RSS चाहता था कि ये जिम्मेदारी किसी बड़े धर्मगुरु, संत या फिर लालकृष्ण आडवाणी को दी जाए, जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन की अगुआई की थी.
ये भी नहीं हुआ। और तो और आंदोलन को आगे बढ़ाने वाले आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं को किनारे करने की कोशिश हुई. अब बाद दूसरे मुद्दे की करते हैं.. RSS लगातार ये बात BJP तक पहुंचा रहा था कि चुनाव में ED-CBI का इस्तेमाल न करें.. इससे एक तबका विपक्ष को विक्टिम मान रहा है.. BJP की छवि प्रताड़ित करने वाले तानाशाह की बन रही है..विपक्ष को इसका फायदा मिलेगा..ग्राउंड पर हमारे कार्यकर्ता इस बात का जवाब नहीं दे पा रहे हैं.. वे डिफेंसिव हो रहे हैं.. BJP ने इस चेतावनी को भी इग्नोर किया.. वहीं RSS ने BJP की वाशिंग मशीन वाली छवि पर भी चेतावनी दी थी। पार्टी ऐसे नेताओं को शामिल कर रही थी, जिन पर करप्शन के आरोप थे। RSS ने बताया था कि ग्राउंड पर ये मुद्दा BJP को नुकसान पहुंचा रहा है। विपक्ष की छवि विक्टिम की बन रही है। राहुल गांधी लगातार BJP के सताए नेता के तौर पर सामने आ रहे हैं…हालांकि, एक बार फिर BJP अड़ी रही..RSS की सलाह ठंडे बस्ते में डाल दी गई..
अब आगामी लोकसभा चुनाव जो कि 2029 में है उसे लेकर RSS चिंतित है… एक पदाधिकारी का कहना है कि ‘लग तो रहा है कि अब BJP रिव्यू करेगी.. अगर नहीं किया, तो 2029 का चुनाव भी हाथ से निकल जाएगा.. अब समझना होगा कि गठबंधन की सरकार चलाने के लिए लचीला होना होगा.. ये मोदी की सरकार नहीं, गठबंधन की सरकार है..पहले भी BJP की सरकार थी। सोर्स के मुताबिक, इस बार सरकार में RSS के पसंदीदा चेहरों की संख्या और रुतबा बढ़ा दिखेगा.. बहरहाल इस चुनावी नतीजों ने ये साफ किया है कि RSS से थोड़ी सी दूरी बीजेपी के लिए कितना नुकसान दायक साबित हो सकता है.. ऐसी ही सियासी खबरों के लिए आप जुड़ रहिए AIRR NEWS के साथ..
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