Bhopal Gas Tragedy: An Unfinished Tale of Justice
Bhopal Gas Tragedy: न्याय की एक अधूरी कहानी
“3 दिसंबर, 1984 की उस भयानक रात को कोई भूला नहीं सकता जब यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड की पेस्टिसाइड के कारखाने से मौत का धुंआं निकला और एक साथ हजारों लोगों की जान ले गया।”
जी हां, हम बात कर रहे हैं 1984 की भोपाल गैस त्रासदी की।
Bhopal शहर के एक हिस्से में यूनियन कार्बाइड के कारखाने से मिथाइल आइसोसाइनेट नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ, और 03 दिसंबर 1984 की रात भोपाल के लोगों के लिए आयी एक अचानक और भयानक मौत का कारण बनी। इस दुर्घटना से सैकड़ों-हजारों लोग मारे गए जब अचानक लोगों का दम घुटने लगा, सांस रुकने लगी। खुली हवा में साँस लेने के लिए जब लोग बाहर निकले तो , तो अगली सुबह, शहर की सड़कों पर जगह-जगह लाशें ही लाशे इधर उधर पड़ी हुईं मिली।
02 और 03 दिसंबर की मध्य रात्रि में ,पुराने भोपाल के सघन इलाके छोला में स्थित यूनियन कार्बाइड के कारखाने से मिथाइल आइसोसाइनेट जैसी जहरीली गैस के रिसाव से हुई मौतों से ,आने वाले दिनों में तमाम समाचार पत्रों में यही त्रासदी की कहानी छाई रही। भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को इस रासायनिक त्रासदी ने हिला कर रखा दिया था।
दिसम्बर में हुई इस घटना की तीन साल तक जांच करने के बाद सीबीआई ने वारेन एंडरसन सहित यूनियन कार्बाइड के 11 अधिकारियों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल की थी। अफ़सोस की एंडरसन को कभी भी भारत नहीं लाया जा सका, लेकिन उसकी अनुपस्थिति में ही पूरा केस चला। जून 2010 में इस मामले में कोर्ट ने अपना जो फैसला सुनाया उसमे कार्बाइड के अधिकारियों को जेल और जुर्माने की सजा सुनाई गयी । इसके बाद अधिकारियों ने जुर्माना भरा और सेशन कोर्ट में जमानत की अपील दायर कर दी। आपको बता दे की इस पूरे हादसे का अहम गुनहगार और गवाह शकील अहमद कुरेशी था। शकील अहमद को भी कोर्ट ने दो साल की सजा सुनाई थी। बाकि ये अब भी रहस्य है की शकील अहमद कौन है, कैसा दिखता है, ये कोई नहीं जानता है। शकील अहमद को 36 साल बाद भी सीबीआई तलाश नहीं कर पाई। उसकी फोटो भी सीबीआई के पास नहीं है। एक तरह से देखा जाए तो विश्व की इस भीषण गैस त्रासदी के गुनाहगारों के जेल जाने की संभावनाएं लगभग समाप्त हो चुकी हैं।
इस मामले में मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन की मौत सालो पहले ही हो चुकी है।एक चर्चा ये भी रही है कि इस गैस कांड के मुख्य आरोपी वारेन को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के इशारे पर राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने सुरक्षित निकाल दिया। अब बात करते है शकील अहमद कुरेशी की जो एमआईसी प्रोडक्शन यूनिट में ऑपरेटर था , लेकिन उसके इस केस में सामने ना आने पर उस रात क्या हुआ इस बारे में खुलासा कभी नहीं हो पाया । इस घटना के बाद भी, भारत में और विश्व भर में उद्योगिक सुरक्षा मानदंडों को लेकर सख्ती से काम किया गया है। लेकिन, भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए न्याय की मांग अब भी जारी है। उनकी पीड़ा और संघर्ष आज भी जारी है, और उनकी कहानियाँ हमें याद दिलाती हैं कि हमें उद्योगिक सुरक्षा और न्याय के प्रति हमारी जिम्मेदारी को कभी नहीं भूलना चाहिए।
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