Ayodhya’s Ram Mandir: A Deep Dive into the Various Aspects of Religion, History, Politics, and Justice

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एक ऐसा मुद्दा जिसने भारतीय राजनीति और समाज को गहरे तरीके से प्रभावित किया है। वह मुद्दा है अयोध्या के राम मंदिर का। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसमें धर्म, इतिहास, राजनीति और न्याय के विभिन्न पहलू शामिल हैं। आज हम इस मुद्दे को विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे, जिसमें कांग्रेस, भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और सुप्रीम कोर्ट के बीच एक लंबा और जटिल संघर्ष शामिल है। नमस्कार आप देख रहे है AIRR न्यूज़ -Ayodhya’s-” Ram Mandir”

Ayodhya’s Ram Mandir में राम जन्मभूमि के स्थान पर बनाया जा रहा एक हिन्दू मन्दिर है, जहां रामायण के अनुसार, हिन्दू धर्म के भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्री राम का जन्मस्थान है। इस स्थान पर पहले एक मस्जिद थी, जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था, जिसे मुगल शासक बाबर के सेनापति मीर बाकी ने 1528 में एक हिन्दू मन्दिर को तोड़कर बनाया था। इस मुद्दे को लेकर हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बीच एक तनावपूर्ण और अस्थिर रिश्ता बना है, जिसमें धर्म, इतिहास, राजनीति और न्याय के विभिन्न पहलू शामिल हैं। इस विवाद का इतिहास बहुत पुराना है, जब से बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ था। हिन्दुओं का दावा है कि मस्जिद के नीचे एक राम मन्दिर था, जिसे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने तोड़ दिया था। मुस्लिमों का दावा है कि मस्जिद का निर्माण एक खाली स्थान पर हुआ था, और उन्हें उसका अधिकार है। 

इस विवाद को सुलझाने के लिए, कई बार न्यायिक और सामाजिक प्रयास किए गए, लेकिन कोई भी समाधान नहीं निकला। 1949 में, जब अज्ञात लोगों ने मस्जिद के अंदर राम की मूर्तियां रख दीं, तो तब से विवाद तेज हो गया। 1950 में, एक हिन्दू ने अदालत में याचिका दायर की, कि उसे मस्जिद के अंदर पूजा करने की अनुमति दी जाए। 1959 में, सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी अदालत में याचिका दायर की, कि उन्हें मस्जिद का प्रबंधन करने का अधिकार दिया जाए। 1961 में, निर्मोही अखाड़ा ने भी अदालत में याचिका दायर की, कि उन्हें राम जन्मभूमि का पूजारी माना जाए। 1986 में, एक फैजाबाद के जज ने आदेश दिया, कि मस्जिद के दरवाजे खोले जाएं, और हिन्दुओं को पूजा करने की अनुमति दी जाए। इससे मुस्लिमों में आक्रोश फैला, और वे इस आदेश के खिलाफ अपील करने के लिए सुप्रीम कोर्ट गए। 

1989 में, विश्व हिन्दू परिषद ने राम मन्दिर के निर्माण का शुभारंभ किया, और एक शिलान्यास समारोह का आयोजन किया। इसके बाद, भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे को अपना राजनीतिक एजेंडा बनाया, और बीजेपी नेता एल.के. आडवाणी ने एक रथ यात्रा शुरू की, जिसमें वे देश भर में राम मन्दिर के लिए समर्थन मांगते थे। इस यात्रा के दौरान, कई जगहों पर हिन्दू और मुस्लिमों के बीच हिंसा भड़की, जिसमें कई लोग घायल हुए और मारे गए। 1990 में, आडवाणी की यात्रा को बिहार के सामानी में रोक दिया गया, और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इससे भाजपा के समर्थकों में नाराजगी फैली, और उन्होंने देश भर में विरोध प्रदर्शन किए। 

1992 में, विश्व हिन्दू परिषद ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें वे Ram Mandir के लिए शिला पूजन करने का इरादा रखते थे। इस कार्यक्रम में लगभग 1.5 लाख से अधिक कार्यकर्ता शामिल हुए, जो बाबरी मस्जिद के आसपास जुटे। इस दौरान, कुछ कार्यकर्ताओं ने मस्जिद के दरवाजे तोड़े, और अंदर घुस कर मस्जिद को ध्वस्त कर दिया। इस हिंसक कार्य को देखकर, मुस्लिमों में गुस्सा भड़क उठा। मुस्लिमों में गुस्सा फैलने के साथ ही, देश भर में दंगे और हिंसा की लहर उठी। इसमें करीब 2,000 से ज्यादा लोग मारे गए, और हजारों लोग घायल हुए। इस घटना के बाद, केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाया, और विवादित भूमि को अपने अधिकार में ले लिया। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में रोक लगाई, और कहा कि वहां कोई भी निर्माण कार्य नहीं होगा, जब तक कि अदालत का फैसला नहीं आता। 

इस मामले की जांच के लिए, केंद्र सरकार ने लिबरहान आयोग का गठन किया, जिसे 1993 में गठित किया गया था, और जिसे 17 बार बढ़ाया गया था। आयोग ने 2009 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी, जिसमें उन्होंने 68 लोगों को जिम्मेदार ठहराया, जिनमें भाजपा और वीएचपी के कई वरिष्ठ नेता शामिल थे। आयोग ने यह भी कहा कि यह एक पूर्व नियोजित साजिश थी, जिसमें राजनीतिक दलों, संगठनों और व्यक्तियों का हाथ था।

इसके अलावा, इलाहबाद हाई कोर्ट ने भी इस मामले की सुनवाई शुरू की, जिसमें विभिन्न पक्षों ने अपने दावे और सबूत पेश किए। 2010 में, हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया, जिसमें उन्होंने विवादित भूमि को तीन भागों में बांटा, जिनमें से एक भाग राम लल्ला को, एक भाग सुन्नी वक्फ बोर्ड को, और एक भाग निर्मोही अखाड़ा को दिया गया।  इस फैसले से कोई भी पक्ष संतुष्ट नहीं था, और सभी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। 

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में इस मामले की सुनवाई पूरी की, और 9 नवंबर को अपना फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने राम लल्ला को विवादित भूमि का पूरा अधिकार दिया, और सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में किसी अन्य जगह पर 5 एकड़ भूमि देने का आदेश दिया।  सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक गंभीर अपराध था, और उसकी जांच जारी रहेगी।  सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, केंद्र सरकार ने राम मन्दिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट का गठन किया, जिसका नाम श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र है।  इस ट्रस्ट के अध्यक्ष निर्मोही अखाड़ा के महंत नृत्य गोपाल दास हैं, और इसमें कई अन्य सदस्य भी हैं।  इस ट्रस्ट ने 5 अगस्त 2020 को राम मन्दिर के निर्माण का भूमि पूजन किया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी भाग लिया।  इस तरह, इस विवाद को एक न्यायिक और सामाजिक ढंग से समाधान करने का प्रयास किया गया है

राम मन्दिर का निर्माण एक ऐसा मुद्दा है, जिसने भारत के राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक चेहरे को बदल दिया है। इस मुद्दे ने भारत की सेक्युलर और बहुधर्मीय पहचान को चुनौती दी है, और देश के विभिन्न समुदायों के बीच समझौता और सहयोग की आवश्यकता को उभारा है। 

इस मुद्दे ने भारत की राजनीति में भी एक नया दौर शुरू किया है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने अपनी हिन्दुत्व वादी नीति के आधार पर देश की सबसे बड़ी पार्टी बनी है। भाजपा ने राम मन्दिर को अपना प्रमुख मुद्दा बनाकर, अपने वोट बैंक को बढ़ाया है, और अपने विरोधियों को कमजोर किया है। भाजपा ने अपने नेतृत्व में देश की दो सरकारें लगातार बनाई हैं, और अब तीसरी बार भी सत्ता में आने कि तैयारी में है। 

इन सभी का बातों का निष्कर्ष यह है कि भारतीय समाज और राजनीति को एक नयी दिशा देने के लिए सभी पक्षों को साझा भावनाओं और समाधान की ओर काम करने की आवश्यकता है। यह एक नया अध्याय हो सकता है भारत के इतिहास में, जहां हम अपनी भिन्नताओं को मान्यता देते हुए, एकता की ओर कदम बढ़ाते हैं। आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।

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