क्या महाराष्ट्र में BJP और शिवसेना बनाना चाहते हैं NCP से दूरी, यहां जानिए शिवसेना के नेताओं के बयान किस ओर कर रहे इशारा?

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आने वाले समय में जल्द ही महाराष्ट्र में चुनाव की तारीखों का ऐलान हो सकता है. इसके पूर् सभी राजनीतिक दल अपनी स्थिति को मजबूत करने में लगे हुए हैं. लेकिन, महायुति के सहयोगियों में आपसी मतभेद खुलकर उभर रहे हैं, जिससे इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि गठबंधन में सबकुछ सही नहीं चल रहा है.

महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारियां जोरों पर हैं. अभी चुनाव आयोग ने तारीखों का ऐलान नहीं किया है, लेकिन सभी दल अपनी स्थिति को मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. वहीं, सत्तारूढ़ अलायंस के भीतर दरार बढ़ती जा रही है. भाजपा, शिवसेना और NCP के अजित पवार के गुट, जो कभी महायुति के बैनर तले एकजुट थे, अब उनमें गहरे आंतरिक कलह के संकेत मिल रहे हैं. यह बढ़ती बेचैनी अलायंस के नेताओं के हालिया बयानों में झलकती है, जो संकेत देते हैं कि अलायंस के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है.

आइए, यहां पर यह समझने की कोशिश करते हैं कि अलायंस के नेता क्यों ऐसे बयान दे रहे हैं, अलायंस के सहयोगियों में मतभेद खुलकर सामने आ रहे हैं? क्या सीटों के बंटवारे से पहले का यह एक तरीके का दबाव या कुछ और?

NCP के एकतरफा विरोध ने तनाव पैदा किया

सिंधुदुर्ग जिले के मालवन तालुका के राजकोट में शिवाजी की मूर्ति के ढहने को लेकर हाल ही में हुए विवाद ने अलायंस के भीतर काफी अशांति पैदा कर दी है. राज्य सरकार का हिस्सा होने के बावजूद NCP ने इस घटना के खिलाफ एकतरफा विरोध करने का फैसला किया. इस कदम ने न केवल सरकार को हैरान किया है, बल्कि खासकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस को शर्मिंदा भी किया है.

NCP की राज्य इकाई के अध्यक्ष सुनील तटकरे ने विरोध को उचित ठहराते हुए आग में घी डालने का काम किया. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में हर किसी को विरोध करने का अधिकार है. उन्होंने कहा कि शिवाजी की प्रतिमा के ढहने से लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं और इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए. NCP के इस रुख ने कई लोगों को अलायंस की एकजुटता पर सवाल उठाने पर मजबूर कर दिया है. इससे यह संकेत मिलता है कि NCP की राजनीति अपने मौजूदा सहयोगियों से दूर जा रही है.

शिवसेना हो रही है असहज

NCP के साथ शिवसेना की असहजता लगातार स्पष्ट होती जा रही है. हाल ही में शिवसेना नेता तानाजी सावंत ने एक सख्त बयान देते हुए कहा कि NCP मंत्रियों के साथ कैबिनेट मीटिंग में साथ बैठने के बाद जब बाहर निकलते हैं तो उन्हें उल्टियां आने लगती हैं और वे इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते. अलायंस की राजनीति में इस तरह की तीखी टिप्पणियां दुर्लभ हैं और दोनों दलों के बीच अंतर्निहित तनाव को उजागर करती हैं. इस बयान से उपजे तनाव को संभालने के प्रयास में, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को कथित तौर पर सावंत को अपनी टिप्पणी स्पष्ट करने के लिए बुलाना पड़ा.

यह घटना शिवसेना के भीतर एक गहरी रणनीति का संकेत देती है. राजनीति के जानकारों का मानना ​​है कि विधानसभा चुनाव से पहले शिवसेना द्वारा NCP से दूरी बनाने की यह कोशिश हो सकती है. सीट बंटवारे पर बातचीत के दौरान शिवसेना NCP को दरकिनार करके सीटों के अधिक अनुकूल वितरण पर बातचीत करने की कोशिश कर सकती है.

अलायंस के साथ भाजपा का संघर्ष

भाजपा भी इस अलायंस के भीतर चुनौतियों का सामना कर रही है. पुणे में हाल ही में एक बैठक के दौरान, भाजपा नेता अमित शाह ने शरद पवार को भ्रष्टाचार का सरदार कहा, इस बयान ने काफी विवाद पैदा किया. NCP के अजित पवार गुट ने शाह की टिप्पणियों से तुरंत खुद को अलग कर लिया, जिससे अलायंस की नाजुक प्रकृति और भी उजागर हो गई.

इसके अलावा, भाजपा नेताओं ने अलायंस से असंतोष व्यक्त किया है, निजी तौर पर स्वीकार किया है कि उन्हें NCP के शामिल होने से महत्वपूर्ण लाभ नहीं मिला है. भाजपा के वरिष्ठ नेता सहयोग की कमी और खासकरके, राज्य में शरद पवार के प्रभाव को कम करने में असफल रहने से निराश हैं. यह निराशा इस तथ्य से और भी बढ़ जाती है कि NCP के मतदाता आधार ने भाजपा को अपना समर्थन प्रभावी रूप से ट्रांसफर नहीं किया है, जो अलायंस का एक प्रमुख मकसद था.

सीट शेयरिंग और अलायंस का भविष्य

राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी के दौरान, तीनों दलों- भाजपा, शिवसेना और NCP के बीच सीटों का वितरण एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है. NCP, अपने आंतरिक विभाजन के बावजूद, सीटों का पर्याप्त हिस्सा मांग सकती है, जिससे अलायंस में और तनाव आ सकता है. भाजपा और शिवसेना, दोनों ने ही लोकसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन किया था, वे NCP को बहुत अधिक जमीन देने के लिए अनिच्छुक हो सकते हैं.

राजनीतिक विश्लेषकों का सुझाव है कि शिवसेना की हालिया कार्रवाइयां और बयान अलायंस के भीतर NCP के प्रभाव को सीमित करने के लिए एक रणनीतिक कदम हो सकते हैं. अपने और NCP के बीच दूरी बनाकर, शिवसेना सीट-शेयरिंग के मामले में अपनी खुद की बातचीत की स्थिति को मजबूत करने का लक्ष्य बना सकती है.

गौरतलब है कि भाजपा का आधिकारिक रुख यह है कि महायुति अलायंस बरकरार है, अलायंस के भीतर बढ़ती दरार को नजरअंदाज करना मुश्किल है. आगामी विधानसभा चुनाव भाजपा, शिवसेना और NCP के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा होगी, क्योंकि उन्हें इन आंतरिक मतभेदों से निपटना होगा. आने वाले महीनों में ये तनाव किस तरह सामने आते हैं, इसका महाराष्ट्र के राजनीतिक भविष्य पर महत्वपूर्ण असर पड़ सकता है.

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