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Ajit Pawar और शरद पवार दोनों ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के वरिष्ठ नेता हैं, जिनका पार्टी में और महाराष्ट्र की जनता में बड़ा सम्मान है। शरद पवार एनसीपी के संस्थापक और राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, जबकि Ajit Pawar उनके भतीजे हैं, जिन्होंने अपने राजनीतिक करियर में उनका साथ दिया है। अजित पवार को शरद पवार का उत्तराधिकारी माना जाता है, जो एनसीपी को आगे ले जाएगा।
लेकिन इन दोनों के बीच का रिश्ता हमेशा से ही उतार-चढ़ाव भरा रहा है, जिसमें राजनीतिक मतभेद, व्यक्तिगत रूझान, और परिवार के अन्य सदस्यों का प्रभाव शामिल है। इन दोनों के बीच की टकराव की शुरुआत 1999 में हुई, जब शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी की स्थापना की, और उन्होंने Ajit Pawar को अपने साथ ले लिया। उस समय, शरद पवार का मुद्दा था कि एक विदेशी मूल की महिला, यानी सोनिया गांधी, भारत की प्रधानमंत्री नहीं बन सकती। लेकिन कुछ महीनों बाद, शरद पवार ने फिर से कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया, और अजित पवार को उपमुख्यमंत्री का पद दिया। अजित पवार को लगा कि उनका अपमान हुआ, और उन्होंने अपने चाचा पर सवाल उठाए।
इसके बाद भी, Ajit Pawar ने अपने चाचा का समर्थन किया, और उनके साथ मिलकर एनसीपी को मजबूत बनाया। लेकिन उनके मन में हमेशा से ही एक राजनीतिक असंतोष रहा, जो कई बार सामने आया। उदाहरण के लिए, 2010 में, जब अशोक चव्हाण आदर्श घोटाले के कारण मुख्यमंत्री का पद छोड़ने को मजबूर हुए, तो Ajit Pawar को लगा कि उनका समय आ गया है, और वे मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन शरद पवार ने फिर से कांग्रेस को बाजी मारने दी, और पृथ्वीराज चव्हाण को मुख्यमंत्री बनाया। अजित पवार को फिर से उपमुख्यमंत्री का पद मिला, जो उन्हें पसंद नहीं था।
Ajit Pawar को लगता था कि उनके चाचा ने उन्हें हमेशा से ही अपने साये में रखा है, और उन्हें कभी पूरी तरह से भरोसा नहीं किया है। शरद पवार ने एनसीपी में अन्य नेताओं को भी उभारा है, जैसे कि छगन भुजबल, आरआर पाटिल, जयंत पाटिल, और उनके दूसरे भतीजे रोहित पवार, जिन्हें वे Ajit Pawar के विकल्प के रूप में देखते हैं। अजित पवार को यह बात पसंद नहीं आती, और वे अपने आप को एनसीपी का सच्चा वारिस मानते हैं।
इसी तरह, Ajit Pawar और शरद पवार के बीच इस राजनीतिक और पारिवारिक टकराव ने 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद एक नया मोड़ लिया, जब Ajit Pawar ने अपने चाचा के खिलाफ बागी होकर भाजपा के साथ मिलकर देवेंद्र फडणवीस के सरकार में शामिल हो गए। इसने एनसीपी को बांट दिया, और शरद पवार को अपने पार्टी को एकजुट करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी। अजित पवार का यह कदम उनके चाचा के लिए एक बड़ा झटका था, जिन्होंने उन्हें अपना विश्वासघाती भतीजा कहा। Ajit Pawar ने बाद में अपना इस्तीफा दे दिया, और शिवसेना, एनसीपी, और कांग्रेस के गठजोड़ से जुड़ गए, जिसने उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया। Ajit Pawar को फिर से उपमुख्यमंत्री का पद मिला, लेकिन उनके और उनके चाचा के बीच का रिश्ता अब भी नाजुक ही रहा।
आपको बता दे कि Ajit Pawar के बागी होने के कई कारण बताए गए हैं, जैसे कि उनके बेटे पार्थ पवार का लोकसभा चुनाव में हारना, उनके खिलाफ चल रहे घोटालों की जांच, उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा, और उनके चाचा के दबाव से उबरने की इच्छा। लेकिन इनमें से कोई भी कारण पूरी तरह से संतोषजनक नहीं है, और अजित पवार के मन में क्या चल रहा था, यह अभी भी एक रहस्य है।
इस प्रकार, Ajit Pawar और शरद पवार के बीच की राजनीतिक और पारिवारिक टकराव ने महाराष्ट्र की राजनीति को बदल दिया है, और उनके पार्टी और परिवार को भी प्रभावित किया है। यह एक ऐसा विषय है, जिसे हमें ध्यान से देखना चाहिए, क्योंकि यह हमें राजनीति के अंदर चल रहे शक्ति के खेल, रिश्तों के जटिलता, और व्यक्तिगत रूझानों के बारे में बताता है। नमस्कार आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।
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