The Abrogation of Article 370: A New Dawn for Jammu-Kashmir
Article 370 का निरस्तीकरण: जम्मू-कश्मीर के लिए एक नई सुबह
भारतीय संविधान के Article 370 के निरस्तीकरण का मुद्दा भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण बिंदु बन गया है। यह अनुच्छेद जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करता था, जिसने इस राज्य को अपना संविधान बनाने की अनुमति दी थी। इसने जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा को भारतीय संविधान के उन अनुच्छेदों पर निर्णय लेने का अधिकार दिया जो जम्मू और कश्मीर राज्य में लागू होंगे।
Article 370 के तहत, जम्मू और कश्मीर की स्वायत्तता में अद्वितीय स्थिति और राज्य के स्थायी नागरिकों के लिए कानून बनाने की शक्ति को मान्यता दी गई थी। अगस्त, 2019 में राष्ट्रपति के आदेश से, Article 370 के तहत जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया गया।
इसके बाद जम्मू–कश्मीर में कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए। जम्मू–कश्मीर से दोहरी नागरिकता को समाप्त कर दिया गया। जहां पहले जम्मू–कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता था, वहीं अब उसे 5 साल कर दिया गया। प्रदेश से विधान परिषद को भी समाप्त कर दिया गया। जम्मू–कश्मीर में 7 विधानसभा सीटों को बढ़ाया गया है, जिसमें से 6 सीटें जम्मू और एक सीट कश्मीर में बढ़ाई गई है। जम्मू और कश्मीर विधानसभा में कुल 90 सीटें हो गई हैं। यह सीटें पाक अधिकृत कश्मीर को हटाकर हैं। पीओके के लिए 24 सीट पहले से तय है, जिस पर चुनाव नहीं होते हैं।
आपको बता दे कि जम्मू-कश्मीर के विस्थापित कश्मीरी पंडित परिवारो ने Article 370 के निरस्तीकरण के बाद अपनी ‘घर वापसी’ का सपना सच होता हुआ लगा था। उन्हें ऐसा लगने लगा था जैसे वो कश्मीर घाटी के दरवाज़े तक पहुंच ही गए हैं और खिड़की से उन्हें अपने सपनों का कश्मीर भी नज़र आने लगा था। लेकिन अब 4 साल का लम्बा समय बीत जाने के बाद वो भी खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। उन्हें अब लगने लगा है कि वो लोग उसी खिड़की के पास खड़े हो कर सिर्फ़ क़दमताल कर पा रहे हैं और उन्होंने अपने मन में मंजिल की ओर चलने का सिर्फ़ भ्रम ही पाल रखा था।
बाकि हाल ही में आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला, जो संविधान के Article 370 के निरस्तीकरण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आधारित है, जो कि भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन के रूप में दर्ज हुआ है। यह फैसला न केवल भारत के संविधान की मजबूती को पुनः स्थापित करता है, बल्कि यह भारत के संविधान सभा के निर्णय को भी मान्यता देता है, जिसने 5 अगस्त 2019 को Article 370 को निरस्त किया था।
आपको बता दे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस निर्णय को “आशा, प्रगति और एकता की गूंज” कहा, जो “हमारी बहनों और भाइयों के लिए जम्मू, कश्मीर और लद्दाख” के लिए है। उन्होंने कहा, “अदालत ने अपनी गहरी बुद्धि में, हम, भारतीयों के द्वारा प्यारे और सबसे अधिक सम्मानित एकता की वास्तविकता को मजबूत किया है।”
उन्होंने आगे कहा, “मैं जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के सशक्त लोगों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि हमारी, आपके सपनों को पूरा करने की प्रतिबद्धता के लिए अडिग है। हम ये सुनिश्चित करने के लिए भी संकल्पित हैं कि प्रगति के फल न केवल आप तक पहुंचें, बल्कि उनका लाभ समाज के सबसे संवेदनशील और हाशिये पर रहने वाले वर्गों तक भी बढ़े, जिन्होंने Article 370 के कारण पीड़ा झेली है।”
इसके विपरीत, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निराशाजनक बताया। उन्होंने कहा कि “हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले से निराश हैं। कोर्ट का फैसला दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। जम्मू-कश्मीर के लोग इससे खुश नहीं हैं लेकिन हमें इसे स्वीकार करना होगा।”
इन सभी घटनाओं को ध्यान में रखते हुए, हम समझ सकते हैं कि Article 370 के निरस्तीकरण का मुद्दा भारत के राजनीतिक दृष्टिकोण के लिए महत्वपूर्ण है। यह न केवल भारत के संविधान की मजबूती को पुनः स्थापित करता है, बल्कि यह भारत के संविधान सभा के निर्णय को भी मान्यता देता है, जिसने 5 अगस्त 2019 को Article 370 को निरस्त किया था।
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