Working Woman Files Restitution of Conjugal Rights Case Against Husband | Detailed Case Study in Hindi

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Working Woman Files Restitution of Conjugal Rights Case Against Husband | Detailed Case Study in Hindi

Working Woman ने पति के खिलाफ दाम्पत्य अधिकारों की बहाली का मामला दायर किया | विस्तृत केस स्टडी हिंदी में

एक ऐसा केस जो आपकी सोच को बदल सकता है।जिसमे एक Working Woman ने अपने पति के खिलाफ वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर की है। इस केस की विस्तृत जानकारी के लिए बने रहिए हमारे साथ। और हां, अगर आपको हमारा कार्य अच्छा लगे तो इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ शेयर करना ना भूलें। आपके प्रतिक्रिया हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं। धन्यवाद।”

इस केस की शुरुआत तब हुई, जब महिला के पति ने पिछले साल सूरत की पारिवारिक अदालत में अपनी पत्नी को रोजाना उसके साथ रहने का निर्देश देने की मांग की। पति ने अदालत में यह दावा किया कि उसकी पत्नी बेटे के जन्म के बाद भी काम के बहाने अपने माता-पिता के साथ रहती रही है और वह केवल दूसरे और चौथे वीकेंड में उससे मिलने आती है। उसने कहा कि इससे उनके बच्चे के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ा है और उसकी पत्नी अपनी शादी की जिम्मेदारियों को नजरअंदाज कर रही है। उसने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 9 के तहत वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग की थी।

आपको बता दे कि धारा 9 हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत एक पति या पत्नी को अपने जीवनसाथी को अपने साथ रहने और वैवाहिक संबंधों को निभाने के लिए मजबूर करने का अधिकार देता है, यदि वह बिना किसी उचित कारण के उससे अलग हो गया हो। यह एक कानूनी उपाय है, जो विवाह को बचाने और पति-पत्नी के बीच के रिश्ते को मजबूत करने का उद्देश्य रखता है। इस धारा के तहत, एक पति या पत्नी को अपने जीवनसाथी को कानूनी नोटिस भेजकर उसे अपने साथ रहने के लिए प्रस्ताव कर सकता है। यदि वह नोटिस का जवाब नहीं देता है, तो वो पक्ष अदालत में याचिका दायर करके वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग सकता है। यदि अदालत को लगता है कि वह अनुचित रूप से अपने जीवनसाथी से अलग हुआ है, तो वह उसे अपने जीवनसाथी के साथ रहने का आदेश दे सकती है।

बात करते है ताजा घटनाक्रम कि तो पत्नी ने इस आदेश को चुनौती देते हुए गुजरात हाईकोर्ट में अपनी याचिका दायर की और कहा कि वह अपने पति को छोड़ने का इरादा नहीं रखती है और वह अपने वैवाहिक घर जाने में कोई आपत्ति नहीं रखती है। उसने कहा कि वह अपने पति के साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है क्योंकि वह अपने काम को भी निभाना चाहती है। उसने यह भी कहा कि वह हर दूसरे वीकेंड में अपने पति से मिलने जाती है और इससे उनके बीच का रिश्ता बना रहता है।

गुजरात हाईकोर्ट की एक खंडपीठ जस्टिस वीडी नानावटी और जस्टिस वीबी मयानी ने इस मामले की सुनवाई करते हुए पति के पक्ष से पूछा कि अगर वह अपनी पत्नी को अपने साथ आने और रहने के लिए कहता है तो इसमें गलत क्या है? क्या उसे मुकदमा करने का अधिकार नहीं है? उन्होंने कहा कि वैवैवाहिक अधिकारों की बहाली का उद्देश्य विवाह को बचाना और पति-पत्नी के बीच के रिश्ते को मजबूत करना है। यह एक सुरक्षात्मक उपाय है, जो विवाह के विच्छेद को रोकने के लिए उपयोग किया जाता है। इसके लिए, एक पति या पत्नी को अपने जीवनसाथी से अलग होने का एक उचित बहाना बताना होगा, जैसे कि शारीरिक या मानसिक बीमारी, अत्याचार, धर्मांतरण, व्यभिचार, आदि। यदि ऐसा नहीं होता है, तो वह अपने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए मुकदमा हार सकता है।

इस धारा के तहत, एक याचिका एक नागरिक अदालत के साथ दायर की जा सकती है जिसमें उस क्षेत्र पर अधिकार क्षेत्र है जहां विवाह संपन्न हुआ, पति-पत्नी एक समय साथ रहते थे, या पत्नी वर्तमान में रहती है।

इस केस में अब आगे क्या होगा, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन इस केस ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के बारे में एक बहस को जन्म दिया है। क्या एक कामकाजी महिला को अपने पति के साथ रोजाना रहने के लिए मजबूर किया जा सकता है? क्या महीने में दो वीकेंड अपने पति से मिलने जाना उसके वैवाहिक दायित्वों को पूरा करने के बराबर है या नहीं? क्या वैवाहिक अधिकारों की बहाली का मुकदमा विवाह को बचाने का एक सही उपाय है या एक अनुचित दबाव? इन सवालों के जवाब आपको खुद ही ढूंढने होंगे।

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