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25 student suicides in kota

कोटा में 25 student suicides

छोटी आँखों में बड़े सपने लिए आज के होनहार युवा एजुकेशन का हब कहे जाने वाले शहर कोटा पहुंचते है लेकिन जब उनको अपने सपने धूल में  मिलते नज़र आते है तब उनके सामने कुछ ऐसा नज़ारा होता है कि तब अपनी ज़िन्दगी बिखरती नज़र आती है। एक बार फिर एक ऐसा मामला सामने आया.आपको बता दें की लगातार जनवरी से अब तक कोटा से 25 student suicide करने का मामला सामने  आ चूका है कोटा में बहुत दर्दनाक स्थ‍ित‍ि बानी हुई है.और तत्काल ये सिलसिला अब रोका जाना चाहिए।पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के रहने वाले फौरीद हुसैन ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली फौरीद हुसैन नीट मेडिकल की तैयारी कर रहे थे कोटा में सिर्फ मई और जून में 9 छात्रों ने आत्महत्या की. वहीं इस साल जनवरी से अब तक की संख्या देखें तो यह अब 25 पहुंच गई है. अब सवाल यह उठता है कि इतनी दुखद घटनाओं का यह सिलसिला आख‍िर थम क्यों नहीं रहा है. अभी से कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश के जौनपुर के 17 वर्षीय छात्र आदित्य सेठ कोटा आया था. मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट की तैयारी के लिए उसने विद्यापीठ कोचिंग संस्थान में एडमिशन लिया था. फिर 27 जून को आद‍ित्य ने आत्महत्या कर ली  और अपने पीछे एक सुसाइड नोट छोड़ा,जिसमे लिखा था की वो अपनी ईच्छा से ऐसा कदम उठा रहे है.ज़ाहिर है पढ़ाई का प्रेशर ही रहा होगा।

बहरहाल कोटा में मेडिकल-इंजीनियरिंग सहित कई प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में देश भर से दो लाख से ज्यादा छात्र-छात्राएं आते हैं. एक कोचिंग की सालाना फीस 2 से 3 लाख रुपए है. इसके अलावा कमरा, पीजी आदि सब कुछ भी महंगा है. ऊपर से इतनी भीड़ और पढ़ाई का तनाव है. आमिर खान ने थ्री इडियट्स मूवी में सही कहा था दिल का प्रेशर नापने की मशीन है ? लेकिन सिर के ऊपर के दबाव को कौन नापेगा. 

विद्यार्थियों पर पड़ने वाला  दबाव उन्हें आत्महत्या की तरफ ले जा रहा है। अगर सफल नहीं हुए तो मित्र मंडली क्या कहेगी, अभिभावक क्या सोचेंगे और करियर तो बीच में ही रह गया। इस बात से पैदा होने वाला तनाव रोजाना औसतन 26 विद्यार्थियों की जान ले रहा है। अधिकांश राज्यों में ऐसे मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। साल 2016 की बात करें तो 365 दिन में 9,474 छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या कर ली थी। उसके बाद भी यह संख्या कम नहीं हुई, बल्कि बढ़ती ही जा रही है। पिछले साल भी देश में करीब 10 हजार विद्यार्थी पढ़ाई का दबाव और डिप्रेशन के चलते दुनिया को अलविदा कह गए।आत्महत्या की ऐसी कहानियाँ बेरोज़गारी की बढ़ती समस्या का इशारा दे रही हैं. हर चुनाव के पहले नेताओ द्वारा रोज़गार लाने  के वादे जो महज़ वादे बनकर रह जाते है आम जनता को इसका मुआवज़ा कुछ इस प्रकार चुकाना पड़ता है।हम मानते है की अगर कोई पत्थर चेनी हथोड़ी की मार से डर जाये तोह वो मूर्त नहीं बन सकता लेकिन अगर वो मार अत्यंत कठोर हो तोह पत्थर को तोड़ देता है और  फिर पत्थर किसी काम का नहीं बचता है।  उस पत्थर की वजूद मिट जाती है।  इसी प्रकार विद्याथिओ पे बनाये जाने वाला पढाई का प्रेशर भी सिमित होना चाहिए।  

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