जेनेरिकऔरब्रांडेडदवाओंमेंक्याअंतरहोताहै? 

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जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं में क्या अंतर होता है? 

केंद्र की मोदी सरकार गरीबों के कल्याण के लिए वो तमाम योजनाएं लागू करती है जिससे देश के गरीबों का फायदा हो और उन्हें अपना जीवन स्तर सुधारने में मदद मिल सके। प्रधानमंत्री जन औषधि योजना भी उनमें से एक है जिससे देश के एक बड़े तबके को स्वस्थ जीवन मिलता है। जेनेरिक दवा ब्रांडेड दवा के बराबर ही असर करती है लेकिन इसकी कीमत ब्रांडेड दवा से बहुत कम होती है…कई मामलों में तो जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड के मुकाबले 90 फीसदी तक सस्ती होती हैं…अब बात आती है कि जब किसी बीमारी के इलाज में दोनों का असर एक समान होता है तो दाम में इतना अंतर क्यों…आज अपने इस वीडियो में इसी बात को आपके सामने विस्तार से रखेंगे कि ब्रांडेड दवाएं जेनेरिक दवाओं से इतनी महंगी क्यों होती है?

जब भी हम जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं की बात करते हैं तो हम सबके दिमाग में यही बात आती है कि जब जेनेरिक दवाओं में भी ब्रांडेड दवाओं का ही सॉल्ट और फॉर्मूला होता है फिर भी ये ब्रांडेड दवाओं से सस्ती क्यों मिलती हैं? दरअसल जब ब्रांडेड दवाओं के सॉल्ट मिश्रण के फार्मूले और उसके प्रोडक्शन के लिए मिले एकाधिकार की अवधि समाप्त हो जाती है तब वह फॉर्मूला सार्वजनिक हो जाता है….फिर उसी फॉर्मूले और सॉल्ट के उपयोग से जेनरिक दवाईयां बननी शुरू हो जाती हैं। अगर इनका निर्माण उसी स्टैंडर्ड से हुआ है तो क्वालिटी में ये कहीं भी ब्रांडेड दवाओं से कमतर नहीं होती। 

जानकारों का कहना है कि जेनेरिक दवाओं के सस्ती होने के कई कारण हैं…एक तो इसके रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए कंपनी ने कोई खर्च नहीं किया है…किसी भी दवा को बनाने में सबसे बड़ा खर्च R&D यानि रिसर्च और डेवेलपमेंट का ही होता है…यह काम दवा को खोजने वाली कंपनी कर चुकी है…इसके प्रचार प्रसार के लिए भी कोई खर्च नहीं करना होता है…इन दवाओं की पैकेजिंग पर कोई खास खर्च नहीं किया जाता है… इसका प्रोडक्शन भी भारी पैमाने पर होता है…इसलिए मास प्रोडक्शन का लाभ मिलता है और ये दवाएं ब्रांडेड दवाओं से सस्ती होती हैं। 

जेनेरिक दवाएं, पेटेंटेड या ब्रांडेड दवाओं की तरह ही होती हैं…कई मामलों में देखा गया है कि ब्रांडेड कंपनियों का भी API या रॉ मैटेरियल वहीं से आया है जहां से जेनेरिक दवाओं का…जेनेरिक दवाओं को अगर मूल दवाओं की तरह ही एक समान खुराक में, उतनी ही मात्रा और समान तरीके से लिया जाए तो उनका असर भी पेटेंट या ब्रांडेड दवा की तरह ही होगा। जेनरिक और ब्रांड नेम वाली दवाईयों में मुख्य रूप से ब्रांडिंग, पैकेजिंग, स्वाद और रंगों का अंतर होता है…इनकी मार्केटिंग स्ट्रेटजी में भी अंतर है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन दवाईयों की कीमतों में भी बहुत अंतर होता है…आखिर ब्रांड की तो कीमत चुकानी ही होगी…

प्रधानमंत्री जन औषधि योजना की दवाएं जेनेरिक ही होती हैं…उसकी पैकिंग साधारण होती है…इसके प्रचार प्रसार पर भी ज्यादा खर्च नहीं होता है…सबसे बड़ी बात कि इस योजना से जुड़े दुकानदारों को दवाओं की बिक्री पर मार्जिन भी कम होती है…इसलिए ग्राहकों के लिए जन औषधि स्टोर की दवाएं सस्ती मिलती हैं

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