Haryana Assembly Election 2024: क्या पार्टी में गुटबाजी के बावजूद हरियाणा में भाजपा से सत्ता छीन लेगी कांग्रेस?

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Haryana Assembly Election 2024: हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल 3 नवंबर को समाप्त हो रहा है. इसके लिए निर्वाचन आयोग ने चुनाव की तारीख का ऐलान कर दिया है. राज्य में 1 अक्टूबर को मतदान होगा और 4 अक्टूबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे. फिलहाल सूबे में भाजपा की सरकार है. बीते 10 साल से भाजपा हरियाणा में राज कर रही है. लेकिन इस दौरान राज्य में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिसको लेकर विपक्ष सरकार के खिलाफ बिगुल फूंक चुका है. वहीं, भाजपा के साथ अलायंस में सरकार बनाने वाली जेजेपी भी अलग हो चुकी है. 

पिछली बार भी भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. जेजेपी के सपोर्ट से पांच साल तक सरकार चली. वहीं कांग्रेस सरकार के खिलाफ मुखर होकर आगे आ रही है. राज्य में किसानों का मुद्दा सबसे अहम है. साथ ही कानून व्यवस्था को लेकर राज्य की जनता में बहुत आक्रोश है. इसके अलावा लोगों के मन में यह बात बैठ गई है कि भाजपा जिन-जिन राज्यों में सत्ता में वहां-वहां विकास कार्य बिल्कुल ठप हो गया है. इस पार्टी के नेता केवल झूठ बोलते हैं और विकास से इनका कोई लेना-देना नहीं है. वहीं, राज्य में पहलवानों का मुद्दा भी काफी अहम है. – Haryana Assembly Election 2024

हरियाणा के मेडल जीतने वाले रेसलर्स पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आंदोलन भी कर चुके हैं. आंदोलन के दौरान केंद्र सरकार का रवैया ठीक नहीं था, तो अब राज्य के पहलवानों के लिए मौका आ गया है, जिसका वो काफी दिनों से इंतजार कर रहे थे. अब कांग्रेस इन्हीं मुद्दों को भुनाने की कोशिश करेगी. हालांकि, यह भी सच है कि कांग्रेस राज्य में गुटबाजी की शिकार है.

ऐसे में कांग्रेस किस तरह से रणनीति बनाकर भाजपा को सत्ता से दूर कर पाएगी? यह एक बड़ा सवाल है. कांग्रेस पार्टी इस आस में है कि भाजपा बीते 10 साल से सत्ता में है तो सरकार के खिलाफ एंटीइनकंबेंसी है. साथ ही, किसानों के एमएसपी का मामला अभी तक ठंडा नहीं पड़ा है. मानसून सत्र में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने किसानों के मामले को एक बार फिर से लाइव कर दिया. 

दरअसल, हरियाणा में चार पार्टियों का जोर है. जिसमें भाजपा, कांग्रेस, जेजेपी और आईएनएलडी मुख्य पार्टियां हैं. इसके अलावा हरियाणा में काफी विधायक निर्दल भी चुनाव जीतते रहे हैं. अब मुख्य विपक्षी पार्टी आम लोगों के मुद्दे के साथ मैदान में उतर रही है. वहीं, भाजपा अपने किए गए कार्यों के बल पर चुनाव मैदान में है. 

लोकसभा चुनाव नतीजों से आकलन करें तो दोनों ही दलों को 5-5 सीटों पर जीत मिली थी. इससे इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल है कि राज्य में राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा. लेकिन दोनों ही दल अपने-अपने जोर की आजमाइश कर रहे हैं. 

हरियाणा में कांग्रेस का मुख्य चेहरा भूपेंद्र सिंह हुड्डा हैं, जो जाटों के बड़े नेता हैं. उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा अबकी बार चुनाव जीतने में सफल रहे हैं, जिनके बारे में यह कहा जा रहा है कि अगर कांग्रेस को बहुमत मिलता है तो वही मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं. दीपेंद्र हुड्डा की सक्रियता से भी कुछ इसी तरह के आसार नजर आ रहे हैं. अब ऐसे में सैलजा कुमारी का गुट इस बात को कितना पचा पाएगा. यह देखने वाली बात होगी.

ज्यादातर राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अबकी बार भाजपा को कोई ताकत सत्ता में वापसी नहीं करा सकती है. राज्य में पहलवानों और किसानों का मुद्दा बहुत बड़ा है. राज्य सरकार दोनों ही मुद्दों पर फेल रही है. इसके अलावा बेरोजगारी और कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर भी सरकार कुछ खास नहीं कर पाई. राज्य में कई घटनाएं ऐसी हुई हैं, जिसकी वजह से सरकार बदनाम हुई. 
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