असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा की आरक्षण पर अपनी टिप्पणियों को लेकर Bihar Congress अध्यक्ष डॉ अखिलेश प्रसाद सिंह ने आलोचना की है। सिंह ने कहा कि सरमा अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी खोने से डरे हुए हैं।-Himanta Biswa Sarma news
आखिर क्या है उनके इस कथन का अभिप्राय ? आइये समझते है आज की इस खास वीडियो में।
नमस्कार, आप देख रहे हैं AIRR न्यूज़।-Himanta Biswa Sarma news
कांग्रेस नेता ने कहा कि जब सरमा ने राजनीति में प्रवेश किया था तो वह कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे और वर्तमान में वह प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ जाने से डरते हैं क्योंकि इससे उनकी कुर्सी जा सकती है।
उन्होंने कहा, “जब उन्होंने राजनीति शुरू की तो वह कांग्रेस पार्टी में थे। वह इस तरह के बयान इसलिए दे रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा देंगे…”-Himanta Biswa Sarma news
आपको बता दे कि इससे पहले, राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने सरमा के बयानों को लेकर उनकी आलोचना की थी। उन्होंने कहा कि सरमा को इस बारे में पढ़ना चाहिए कि गैर-हिंदू समुदाय को किस आधार पर आरक्षण का दर्जा दिया गया है।
उन्होंने कहा, “उन्होंने किस आधार पर आरक्षण का काम किया है? अगर हिमंत बिस्व सरमा को नहीं पता तो मैं उन्हें बता दूं…पढ़ें कि किस आधार पर गैर-हिंदू समुदाय को आरक्षण दिया गया है – सामाजिक और आर्थिक पिछड़ापन। यह मंडल आयोग की रिपोर्ट है और वे लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।”-Himanta Biswa Sarma news
इसके अलावा, राजद नेता ने सरमा से सवाल किया, “मुझे बताओ, तुमने आरक्षण कैसे खत्म नहीं किया? आपके 10 साल के कार्यकाल में रोजगार दर कितनी थी?”
आपको बता दे कि हिमंत बिस्व सरमा ने हाल ही में एक बयान दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि गैर-हिंदू समुदायों को आरक्षण देने की कोई जरूरत नहीं है। उनके इस बयान की विपक्षी पार्टियों और विशेषज्ञों ने आलोचना की है।
कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि सरमा अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए इस तरह के बयान दे रहे हैं। RJD ने भी सरमा के बयान की आलोचना करते हुए कहा है कि गैर-हिंदू समुदायों को आरक्षण सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया गया है।
इस मामले पर अभी भी राजनीतिक विवाद जारी है। यह देखना बाकी है कि सरमा अपने बयान पर कायम रहते हैं या फिर उन्हें वापस लेते हैं।
तो इस तरह असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा के गैर-हिंदू समुदायों को आरक्षण देने की कोई जरूरत नहीं है, के बयान ने विवाद खड़ा कर दिया है। कांग्रेस और राजद समेत विपक्षी पार्टियों ने सरमा के बयान की आलोचना की है।
लेकिन सरमा का बयान तथ्यों पर आधारित नहीं है। क्योंकि गैर-हिंदू समुदाय सदियों से सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। वैसे भी भारत के संविधान में गैर-हिंदू समुदायों को आरक्षण देने का प्रावधान है। यह प्रावधान इन समुदायों को सामाजिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़ने में मदद करने के लिए बनाया गया है।
क्योंकि आरक्षण की नीति कई अध्ययनों द्वारा समर्थित है जो बताते हैं कि इससे पिछड़े समुदायों के जीवन में सुधार हुआ है।
बाकि गैर-हिंदू समुदायों को आरक्षण देने पर बहस कोई नई बात नहीं है। यह मुद्दा अतीत में भी कई बार उठाया गया है।
2006 में, तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने मुसलमानों को आरक्षण देने की सिफारिश की थी। हालाँकि, इस प्रस्ताव को उस समय भाजपा और अन्य विपक्षी दलों ने खारिज कर दिया था।
2014 में, भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में गैर-हिंदू समुदायों को आरक्षण देने का वादा किया था। हालाँकि, पार्टी इस वादे को पूरा करने में विफल रही है।
तो इस तरह हमने जाना कि असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने गैर-हिंदू समुदायों को आरक्षण देने की कोई जरूरत नहीं है, कहकर विवादित बयान दिया है। कांग्रेस और राजद समेत विपक्षी पार्टियों ने सरमा के बयान की आलोचना की है। सरमा का बयान गैर-ज़िम्मेदाराना और उकसाने वाला है। इससे नफरत और हिंसा को बढ़ावा मिल सकता है और यह लोगों को गुमराह करने का प्रयास है। आज के लिए इतना ही। बाकि खबरों के लिए जुड़े रहिये हमारे साथ ,नमस्कार, आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।
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