Internal Discord in Shiv Sena: Newly Elected MPs in Contact with Eknath Shinde | AIRR News”-maharashtra political update

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भारतीय राजनीति के रंगमंच पर शिवसेना का नाम एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह पार्टी पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न राजनीतिक घटनाक्रमों और विवादों के कारण चर्चा में रही है। हाल ही में, शिवसेना के दो नवनिर्वाचित लोकसभा सदस्यों के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के संपर्क में होने की खबर ने फिर से राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। शिवसेना प्रवक्ता नरेश म्हासके ने इस खबर की पुष्टि करते हुए कहा कि चार और सांसद जल्द ही शिंदे की पार्टी में शामिल हो सकते हैं। इस घटनाक्रम ने कई सवाल खड़े किए हैं: क्या शिवसेना में अंदरूनी मतभेद बढ़ रहे हैं? क्या यह कदम पार्टी के नेतृत्व के प्रति असंतोष का संकेत है? और सबसे महत्वपूर्ण, इससे महाराष्ट्र की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा?-maharashtra political update

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आज हम चर्चा करेंगे शिवसेना के दो नवनिर्वाचित लोकसभा सदस्यों के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के संपर्क में होने के मामले पर, और इस घटनाक्रम के संभावित राजनीतिक प्रभावों पर।-maharashtra political update

शिवसेना प्रवक्ता नरेश म्हासके ने शनिवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुलासा किया कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना के दो नवनिर्वाचित लोकसभा सदस्य मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के संपर्क में हैं। म्हासके ने उन सदस्यों के नामों का खुलासा नहीं किया, यह कहते हुए कि ऐसा करना दल-बदल कानून के तहत कानूनी जटिलताएँ उत्पन्न कर सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि चार और सांसद जल्द ही इन दो सदस्यों के साथ शिंदे की पार्टी में शामिल हो सकते हैं।

आगे म्हासके ने कहा कि ये सदस्य उस तरीके से खुश नहीं थे जिस तरीके से उद्धव ठाकरे ने विशेष समुदाय से वोट मांगे थे। यह भी दावा किया गया कि ये सदस्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन करेंगे। इस बयान के बाद शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे के नेता संजय राउत ने दावा किया कि शिंदे गुट के विधायकों और सांसदों ने फिर से ठाकरे की पार्टी में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की थी।

आपको बता दे की शिंदे गुट ने सात लोकसभा सीटें जीती हैं, जबकि ठाकरे गुट ने नौ सीटें हासिल की हैं। इस राजनीतिक विभाजन ने महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ा है, जिसमें सत्ता की लड़ाई और वफादारी का परीक्षण हो रहा है।

शिवसेना, जिसका गठन 1966 में बाल ठाकरे ने किया था। इस पार्टी ने मराठी मानुष के अधिकारों और मराठी संस्कृति के संरक्षण के उद्देश्य से शुरुआत की थी। 2019 में, जब शिवसेना ने भारतीय जनता पार्टी के साथ अपने लंबे समय से चल रहे गठबंधन को तोड़ दिया और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई, तब से पार्टी में असंतोष के बीज बोए गए।

इसके बाद 2022 में, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में कई शिवसेना विधायकों ने पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बगावत कर दी और भाजपा के समर्थन से महाराष्ट्र की सरकार बनाई। इस बगावत ने शिवसेना को दो भागों में विभाजित कर दिया: एक गुट उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में और दूसरा शिंदे के नेतृत्व में।

ऐसे में उद्धव ठाकरे ने शिवसेना की कमान संभालने के बाद पार्टी को नई दिशा दी, लेकिन उनकी नेतृत्व शैली से सभी संतुष्ट नहीं थे। एकनाथ शिंदे, जो लंबे समय से शिवसेना के महत्वपूर्ण नेता रहे हैं, ने पार्टी में अपने असंतोष को खुले तौर पर व्यक्त किया और अंततः बगावत कर दी। नरेश म्हासके, जो खुद ठाकरे गुट से निर्वाचित हुए थे, अब शिंदे के समर्थन में खड़े हैं, जो पार्टी के अंदरूनी मतभेदों को उजागर करता है।

वैसे शिवसेना का इतिहास आंतरिक कलह और विभाजन से भरा रहा है। 2006 में, उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे के बीच विवाद ने पार्टी को विभाजित कर दिया था, जिससे राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया। यह घटना दर्शाती है कि शिवसेना के भीतर सत्ता संघर्ष और मतभेद नई बात नहीं हैं।

अब इस हालिया घटनाक्रम का महाराष्ट्र की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। अगर शिवसेना के और सांसद शिंदे के समर्थन में आते हैं, तो इससे ठाकरे गुट की स्थिति कमजोर हो सकती है। इसके अलावा, यह भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार को स्थायित्व मिलेगा और विपक्ष कमजोर हो सकता है। दूसरी ओर, यह घटनाक्रम शिवसेना के मूल समर्थकों के बीच असमंजस और असंतोष पैदा कर सकता है, जो पार्टी के दीर्घकालिक हितों के लिए हानिकारक हो सकता है।

तो इस तरह शिवसेना के दो नवनिर्वाचित लोकसभा सदस्यों के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के संपर्क में होने की खबर ने एक बार फिर से पार्टी में आंतरिक मतभेदों और असंतोष को उजागर किया है। यह घटना न केवल शिवसेना के लिए बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण है। इससे सत्ता संतुलन पर असर पड़ सकता है और राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव आ सकता है। यह जरूरी है कि राजनीतिक दल अपने आंतरिक मुद्दों को हल करें और जनता की सेवा पर ध्यान केंद्रित करें।

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