VVPAT पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला-Supreme Courts decision on vvpat
EVM से ही होंगे चुनाव
VVPAT से 100 फीसदी पर्ची मिलान भी नहीं होगा
देश में बैलेट पेपर का जमाना वापस नहीं आएगा
नतीजों के 7 दिन के अंदर शिकायत करने पर जांच होगी
सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम की वैधता पर मुहर लगा दी है. 26 अप्रैल को ईवीएम और VVPAT पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सीधा मतलब है कि इस सिस्टम पर भरोसा करना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि देश में बैलेट पेपर से वोटिंग का दौर वापस नहीं आएगा. यानी मतदान तो ईवीएम से ही होगा. इसके साथ ही VVPAT से 100 फीसदी पर्ची मिलान भी नहीं होगा.चुनाव आयोग ने कहा कि कोर्ट के इस फैसले के बाद अब किसी को शक नहीं रहना चाहिए. -Supreme Courts decision on vvpat
अब पुराने सवाल खत्म हो जाने चाहिए. सवालों से वोटर के मन में शक होता है. हम आपको सिलसिलेवार तरीके से बताएंगे और समझाएंगे कि आखिर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के क्या कुछ मायने हैं.. तो सुप्रीम कोर्ट ने मतदाताओं और राजनीतिक दलों में विश्वास जगाने के लिए व्यवस्था दी है कि ईवीएम 45 दिनों तक सुरक्षित रहेगी और अगर नतीजों के बाद 7 दिनों के भीतर शिकायत की जाती है तो जांच कराई जाएगी… मतलब अगर प्रत्याशियों को लगता है कि कुछ गड़बड़ हुआ है तो ईवीएम की जांच की जा सकेगी… -Supreme Courts decision on vvpat
उम्मीद है कि विपक्ष सुप्रीम कोर्ट के इस व्यवस्था से जरूर संतुष्ट होगा… फिर भी ये उम्मीद करनी बेमानी है कि आगामी लोकसभा चुनावों में हारने वाला यह नहीं कहेगा कि सरकार ने ईवीएम के जरिए बेइमानी की गई है. क्योंकि हर बार चुनावों में जो पार्टी हारती है वही ईवीएम पर संदेह करती रही है… आपको बता दें कि भारतीय जनता पार्टी ने भी 2009 में ईवीएम का विरोध किया था. तत्कालीन बीजेपी नेताओं ने देश में बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग रखी थी. पर शायद सभी दलों के मन मस्तिष्क में ईवीएम के प्रति भरोसा ही है कि आरोप लगाने वाले भी कभी इसके खिलाफ आंदोलित नहीं हुए और न ही चुनावों का बहिष्कार ही किया..
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद एडीआर की अर्जी पर बहस करने वाले प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा कि, चूंकि ईवीएम और VVPAT में ऐसे चिप्स लगे होते हैं जिन्हें अपने हिसाब से तैयार किया जाता है. इसलिए ऐसी आशंका रहती है कि वोटों में हेरफेर करने के लिए एक दुर्भावनापूर्ण प्रोग्राम लोड किया जा सकता है...चूंकि मतदाताओं को ईवीएम पर भरोसा नहीं है, इसलिए हमने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि या तो बैलेट पेपर्स पर चुनाव के आदेश दें या मतदाता को मतपेटी में डालने के लिए वीवीपैट पर्ची दें और फिर VVPAT पर्चियों की गिनती करें. या वीवीपैट मशीन में लाइट चालू रखें और सभी पर्चियों की गिनती करें. आज सिर्फ 2 फीसदी VVPAT पर्चियों का ही ईवीएम से मिलान हो पाता है…
वहीं चुनाव के बाद सिंबल लोडिंग यूनिटों को भी सील कर सुरक्षित रखने के निर्देश के चलते उम्मीदवारों के पास परिणामों की घोषणा के बाद किसी टेक्निकल टीम से EVM के माइक्रो कंट्रोलर प्रोग्राम की जांच कराने का विकल्प होगा.. जिसे चुनाव की घोषणा के 7 दिनों के भीतर किया जा सकेगा. कोर्ट ने कहा कि सिंबल लोडिंग यूनिट्स के पूरा होने पर कंटेनर में सील कर दिया जाएगा. इस पर उम्मीदवारों के हस्ताक्षर होंगे और नतीजे घोषित होने के बाद 45 दिन के लिए स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाएगा. यानी नतीजे घोषित होने के 45 दिन तक ईवीएम का डेटा और रिकॉर्ड सुरक्षित रखा जाएगा…इससे निश्चित है कि इसका सीधा लाभ उन्हें होगा जिन्हें मात्र कुछ वोटों से चुनाव में हार मिलती है..
.नतीजे में दूसरे और तीसरे नंबर पर आए उम्मीदवार चाहें तो परिणाम आने के सात दिन के भीतर दोबारा जांच की मांग कर सकते हैं. ऐसी स्थिति में इंजीनियरों की एक टीम द्वारा माइक्रो कंट्रोलर की मेमोरी की जांच कर सकेगी…हो सकता है कि इस प्रकार की मांग के बाद ईवीएम प्रणाली की खामियां और सामने आएं. बहुत उम्मीद है कि इस व्यवस्था से ईवीएम के प्रति भरोसा जगेगा… सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने एक बात और कही है जिससे उम्मीद जगती है कि अभी भी ईवीएम को और सुरक्षित करने की गुंजाइश पर सुप्रीम कोर्ट विचार कर सकता है. बेंच का कहना है कि यदि जरूरी हुआ तो वो मौजूदा ईवीएम सिस्टम को मजबूत करने के लिए निर्देश पारित कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2019 में चुनाव आयोग से कहा था कि किसी संसदीय क्षेत्र में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में ईवीएम के साथ वीवीपैट की संख्या एक से बढ़ाकर पांच कर दी जाए.इस तरह के कुछ और आदेश सुप्रीम कोर्ट भविष्य में दे सकती है….
हालांकि पीठ ने कहा कि ‘संतुलित परिप्रेक्ष्य महत्वपूर्ण है, आंख मूंदकर किसी भी व्यवस्था पर संदेह करना उस व्यवस्था के प्रति शक पैदा कर सकता है. सार्थक आलोचना करने की जरूरत है फिर चाहे वो न्यायपालिका हो या फिर विधायिका. सुप्रीम कोर्ट की इस बात में दम है… क्योंकि इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि दुनिया में कोई भी व्यवस्था और तकनीक फूलप्रूफ नहीं हो सकती है. इसे हम डिजिटल फ्रॉड के रूप में देख सकते हैं… जब तक करेंसी का जमाना था जाली नोट प्रचलन में आ गए.
जब हम डिजिटल पर शिफ्ट हो रहे हैं हजारों करोड़ के फ्रॉड की रिपोर्ट आ रही है. हालांकि ईवीएम पर सवाल उठाने वाले कुछ वैसा ही व्यवहार कर रहे हैं कि एग्जाम की तैयारी किए नहीं और फेल होने पर बोलते हैं कि पास होने वाले छात्रों की एग्जामनर से सेटिंग थी. इस बार के चुनावों में प्रचार से हांफते हुए नरेंद्र मोदी, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ को हम देख रहे हैं , जबकि विपक्ष का हाल किसी से छुपा नहीं है. राहुल गांधी और अखिलेश एक साथ चुनाव लड़ रहे हैं पर यूपी में दोनों की संयुक्त रैली आज तक नहीं हुई. यूपी में गिन लीजिए कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने वैसे भी कितनी सभाएं की हैं.
अखिलेश यादव खुद 12 अप्रैल के बाद नींद से जागे हैं. बीएसपी सुप्रीमो अभी भी क्या कर रही हैं लोगों की समझ से परे है… ईवीएम अगर वास्तव में मैनुपुलेटेड है तो निश्चित रूप से उसका विरोध उस लेवल का नहीं हो रहा है जिस तरह का होना चाहिए. ईवीएम के विरोध में आजतक देश की एक भी पार्टी ने चुनाव का विरोध नहीं किया है. इंडिया गठबंधन ने अगर बिना ईवीएम के चुनाव न होने पर विरोध का फैसला किया होता तो नजारा ही कुछ और होता. विपक्ष आधे अधूरे मन से ईवीएम का विरोध करता रहा है… जनता भी इस बात को शायद समझती है.यही कारण है कि कांग्रेस ने भी ईवीएम पर आए फैसले पर बहुत संतुलित कमेंट किया है… सियासत तो जारी ही रहेगी लेकिन इस पार तार्किक बात करने की जरूरत है ना कि सिर्फ जुमलेबाजी की…. इसी तरह की और खबरों को देखने के लिए आप जुड़े रहिए AIRR NEWS के साथ…