ओवैसी का ‘अभेद’ किला हैदराबाद… 4 दशक का इतिहास बदलना बीजेपी-कांग्रेस के लिए आसान नहीं

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Owaisi- Abheda Fort Hyderabad

क्या 4 दशरों का इतिहास बदलेगा ?

BJP- कांग्रेस के लिए बेहद मुश्किल किला 

ओवैसी के सामने कौन टिकेगा ?

Lok Sabha Elections 2024 में अब कुछ ही दिन बचे हैं और राजनीतिक दल केंद्र की सत्ता पर काबिज होने को बेताब हैं. इस बीच देश में एक ऐसी लोकसभा सीट है, जिस पर सबकी नजरें टिकी हैं. दशकों से यहां न सबसे बड़ी पार्टी का आधिपत्य है और न ही देश की सबसे पुरानी पार्टी का. ये सीट है हैदराबाद, जहां 10 बार से सिर्फ एक ही पार्टी का उम्मीदवार लगातार जीतते आ रहा है. दूसरी पार्टी का कोई उम्मीदवार सामने मैदान में टिक ही नहीं पाया. किसी दूसरी पार्टी के उम्मीदवार के लिए इस सीट पर जीतने की कल्पना करना भी मुश्किल है. इंदिरा गांधी से लेकर मोदी लहर तक, इस सीट पर किसी का कोई प्रभाव न पड़ सका. -Owaisi- Abheda Fort Hyderabad

इस Lok Sabha Elections में भी बीजेपी और कांग्रेस के लिए हैदराबाद का 4 दशकों का इतिहास बदलना आसान नहीं है. दरअसल, हैदराबाद कभी आंध्र प्रदेश की राजधानी हुआ करती थी, लेकिन 2014 में अलग राज्य बनने के बाद हैदराबाद तेलंगाना की राजधानी बन गई. वोटर्स के आंकड़े की बात करें तो इस लोकसभा सीट पर करीब 60 प्रतिशत मुसलमान तो करीब 40 प्रतिशत हिंदू आबादी है. इस हैदराबाद सीट पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) 1984 से लगातार जीतती आ रही है. ये वो दौर था जब इंदिरा गांधी की लहर देश में थी, लेकिन उसका जादू हैदराबाद में न चल सका और यहां कांग्रेस को हार का सामन करना पड़ा. -Owaisi- Abheda Fort Hyderabad

इसके बाद से अब तक हैदराबाद ओवैसी का अभेद किला बना हुआ है. इस किले की चाबी पिछले 40 वर्षों से ओवैसी परिवार के पास ही है. हैदराबाद सीट पर AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी के पिता दिवंगत सलाहुद्दीन ओवैसी 1984 से 1999 तक लगातार 6 चुनाव जीते. इसके बाद 2004 से लेकर 2019 तक, 4 बार से असदुद्दीन ओवैसी यहां से परचम लहरा रहे हैं. कुल मिलाकर 10 बार से पिछले दो चुनावों की बात करें तो जिस मोदी लहर में कमजोर से कमजोर प्रत्याशी भी जीत की सीढ़ी चढ़ गया, उस दौरान भी हैदराबाद में बीजेपी उम्मीदवार चारों खाने चित हो गए.

2014 और 2019 के चुनाव में ओवैसी ने दो लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज कर दूसरे उम्मीदवारों की हालत खराब कर दी. हर चुनाव के साथ ओवैसी की जीत का अंतर भी बढ़ता गया. इस सीट पर ओवैसी और उनकी पार्टी को 1984 से कोई भी चैलेंज नहीं कर पा रहा है. आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने भी एक बार इस सीट से चुनाव लड़ा और उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा. देश के पूर्व उपराष्ट्रपति 1996 में वेंकैया नायडू भी बीजेपी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ चुके हैं. उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा. इसी बात से समझा जा सकता है कि सभी पार्टियों के लिए यह कितनी महत्वपूर्ण सीट है. 

अब सवाल उठता है कि आखिर क्यों इस सीट पर कोई और उम्मीदवार नाकाम ही साबित हो रहा है? इसका जवाब है कि इस सीट पर मुस्लिम वोटों का सबसे अधिक प्रभाव है और ओवैसी परिवार हमेशा से मुसलमानों की राजनीति करता रहा है. पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से असदुद्दीन ओवैसी के छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी समेत अन्य नेताओं ने अपनी सभाओं में खुले तौर पर विवादित बयान दिए हैं, उससे भी साफ है कि पार्टी हमेशा से दिखाती रही है कि यही है, जो मुसलमानों की बात करती है.

खैर बात भी सही है. दूसरी पार्टियों ने यहां कभी कोई खास प्रयास नहीं किए. प्रयास हुए भी तो वोटर्स और समीकरण को ध्यान नहीं रखा गया और प्रत्याशी मैदान में उतार दिया गया. बीजेपी भी समय-समय पर हुंकार भरती रही, लेकिन वे प्रयास नाकाफी साबित हुए. वहीं कांग्रेस और राज्य की क्षेत्रीय पार्टी बीआरएस की तरफ से कोई खास प्रयास नजर नहीं आए. शायद यही कारण है कि हैदराबाद के बहुसंख्यक वोटर दूसरी किसी पार्टी या उम्मीदवार पर अभी तक पूरा भरोसा नहीं जता पाए. हालांकि किसी पार्टी द्वारा अगर कोई मजबूत मुसलमान प्रत्याशी उतारा जाता, जो मुसलमान वोटर्स के अलावा हिंदू वोटर्स को भी एक हद तक साधने का काम करता, तो शायद चुनावी समीकरण बदलते और ओवैसी के इस अभेद किले में सेंध लगाई जा सकती.

लगातार इस सीट पर ओवैसी परिवार का कब्जा है. अब इस बार के Lok Sabha Elections की बात करें तो सिर्फ बीजेपी ही कड़े प्रयास करती नजर आ रही है. पार्टी ने फायरब्रांड नेता माधवी लता के रूप में मजबूत प्रत्याशी उतारा है. माधवी लता पहली बार चुनाव लड़ रही हैं. लेकिन बीजेपी की तरफ से मजबूती से ग्राउंड लेवल पर हमेशा नजर आती थीं. माधवी काफी मजबूती से चुनाव लड़ रही हैं और उन्होंने दावा किया है कि वह डेढ़ लाख से अधिक वोटों से ओवैसी को मात देंगी. प्रचार प्रसार के लिए जहां-जहां वह जा रही हैं, वहां सुर्खियां भी खूब बटोर रही हैं. प्रधानमंत्री मोदी भी उनके कार्यों की तारीफ कर चुके हैं. पर बीजेपी प्रत्याशी की राह आसान नहीं है. बीजेपी प्रत्याशी भले ही लाख दावे कर ले, लेकिन ओवैसी को हराना आसान नहीं है.

या ये कहें कि ओवैसी को हराना मुमकिन नहीं है. इसका सबसे बड़ा कारण ओवैसी को मिलने वाले एकतरफा मुस्लिम वोट हैं, जो इस सीट का पूरा समीकरण तय करते हैं. इस लोकसभा सीट के अंतर्गत 7 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें से 6 पर ओवैसी की पार्टी का कब्जा है. वहीं बीजेपी की छवि हमेशा हिंदू राजनीति वाली रही है. हालांकि पिछले कुछ वर्षों से पार्टी ने मुसलमान वोटर्स को साधने के तमाम प्रयास किए हैं और इसका लाभ भी देश के कई राज्यों में मिला है, लेकिन हैदराबाद में मामला थोड़ा अलग है. कारण, अगर हैदराबाद के मुस्लिम वोट बंटते तो पिछले चुनावों की मोदी लहर में ओवैसी के कुल वोट प्रतिशत पर इसका असर देखने को मिल जाता.उधर, कांग्रेस ने अभी तक अपने प्रत्याशी का ऐलान नहीं किया है. चर्चा है कि कांग्रेस यहां से प्रत्याशी को न उतारकर ओवैसी को अंदरखाने समर्थन दे सकती है.  अब ऐसे में कांग्रेस ही है, जो ओवैसी की मुश्किलें बढ़ा सकती है.

इसके लिए पार्टी को यहां से किसी मुस्लिम सेलिब्रिटी चेहरे पर दांव लगाना होगा, जो स्थानीय होने के साथ-साथ लोगों के दिलों तक अपनी बात पहुंचा सके. साथ ही ऐसा कैंडिडेट, जो मुसलमानों को तो साधे ही, हिंदू वोटर्स का भी ध्यान खींच सके. 2009 के चुनाव की बात करें तो तब टीडीपी ने मजबूत मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया था, जिसने काफी मजबूती के साथ चुनाव लड़ा.

इससे टीडीपी दूसरे नंबर पर रही थी और ओवैसी की जीत का अंतर 1 लाख के करीब था. यानी साफ है कि कांग्रेस के पास संभावना है कि वह अगर बड़े मुस्लिम चेहरे को लेकर आती है तो समीकरण यहां बन सकते हैं. हालांकि ऐसा चेहरा कौन होगा? ये बड़ा सवाल है. कुछ दिनों पहले तक सोशल मीडिया से लेकर कई रिपोर्ट्स तक में चर्चा जोरों पर थी कि कांग्रेस पूर्व टेनिस स्टार सानिया मिर्जा को टिकट दे सकती है. सानिया मिर्जा जैसे किसी प्रसिद्ध और मजबूत उम्मीदवार का चयन किया जाता है तो शायद इस सीट के समीकरण बदल जाएं. हालांकि यह बीजेपी के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकता है.-Owaisi- Abheda Fort Hyderabad

कांग्रेस बड़े मुस्लिम चेहरे को अगर मैदान में उतारती है तो सीधी सी बात है कि इससे मुस्लिम वोट बंट जाएंगे और इसका सीधा लाभ बीजेपी उम्मीदवार को होगा. लेकिन क्या कांग्रेस ऐसा चाहेगी? बीजेपी पर लगातार वार कर रहे राहुल गांधी शायद ही ऐसा कोई कदम उठाने की सोचेंगे, जिसका फायदा बीजेपी को मिले. यूं तो कांग्रेस ओवैसी को बीजेपी की ‘बी टीम’ करार देती है, लेकिन इस चुनाव में नहीं चाहेगी कि ओवैसी हारे.  बहरहाल हालात जो भी हों लेकिन कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए हैदराबाद का किला फतह करना आसान नहीं होगा… ऐसी ही खबरों को जानने के लिए जुड़े रहिए AIRR NEWS के साथ.

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