पूर्णिया से चुनाव लड़ने पर अड़े Pappu Yadav, आखिर क्यों ये सीट कांग्रेस को नहीं देना चाहती RJD ?

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पूर्णिया सीट पर सियासी घमासान-Pappu Yadav – Adamant on Purnia seat

Pappu Yadav पूर्णिया सीट को लेकर अड़े

इंडिया गठबंधन में कई सीटों पर पेंच फंसा

कांग्रेस और आरजेडी पूर्णिया सीट चाहते हैं

Pappu Yadav ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया 

आखिर किसे मिलेगा पूर्णिया का टिकट ?

बिहार की पूर्णिया सीट को लेकर इंडिया ब्लॉक के भीतर ही सियासी घमासान छिड़ गया है. Pappu Yadav ने दो टूक कह दिया है कि पूर्णिया नहीं छोड़ेंगे. वहीं, आरजेडी भी यह सीट कांग्रेस को देना नहीं चाहती. हम आपको इसके पीछे वजह क्या है ये बताते हैं…दरअसल बिहार में विपक्षी गठबंधन से नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड  की एग्जिट के बाद सीट शेयरिंग को आसान कहा जा रहा था लेकिन हो ठीक उल्टा रहा है. पहले चरण में मतदान वाली सीटों पर नामांकन शुरू हुए करीब हफ्तेभर होने को आए हैं लेकिन इंडिया ब्लॉक में कई सीटों को लेकर अब भी पेच फंसा हुआ है. ऐसी ही एक सीट है पूर्णिया की.-Pappu Yadav – Adamant on Purnia seat

पूर्णिया लोकसभा सीट को लेकर कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल यानि आरजेडी दोनों ही दल अड़े हुए हैं. हाल ही में अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय करने वाले Pappu Yadav

ने दो टूक कह दिया है कि दुनिया छोड़ देंगे लेकिन पूर्णिया नहीं छोड़ेंगे. चुनाव लड़ेंगे तो पूर्णिया से ही. वहीं, पूर्णिया जिले की ही रुपौली सीट से जेडीयू की विधायक बीमा भारती ने आरजेडी जॉइन करते ही इस सीट से दावेदारी ठोक दी है. सवाल है कि कांग्रेस के Pappu Yadav पूर्णिया सीट से ही चुनाव लड़ने पर क्यों अड़े हैं और आरजेडी क्यों यह सीट कांग्रेस को देना नहीं चाहती?… -Pappu Yadav – Adamant on Purnia seat

दरअसल Pappu Yadav पूर्णिया सीट से ही चुनाव लड़ने की बात पर अड़े हैं तो इसके पीछे भी उनकी अपनी तैयारी, अपना चुनावी रिकॉर्ड और अपने समीकरण हैं. पूर्णिया में Pappu Yadav का रिकॉर्ड अजेय रहा है. Pappu Yadav 1991 से 2004 तक कभी निर्दलीय तो कभी समाजवादी पार्टी, आरजेडी के टिकट पर लगातार लोकसभा पहुंचते रहे. हालांकि, Pappu Yadav की मां शांति प्रिया 2009 के आम चुनाव में पूर्णिया सीट से हार गई थीं. साल 2014 में आरजेडी ने पप्पू को मधेपुरा सीट से उतारा. तब बीजेपी और जेडीयू, दोनों ही दल अलग-अलग चुनाव मैदान में उतरे थे. पप्पू ने तब जेडीयू के कद्दावर नेता शरद यादव को पटखनी दे दी थी लेकिन 2019 में वह ये सीट नहीं बचा सके.

Pappu Yadav ने एक इंटरव्यू में इसका जिक्र करते हुए कहा भी कि पूर्णिया ने मुझे कभी भी चुनाव नहीं हराया. 20 साल बाद भी पूर्णिया ने मुझे बेटे की तरह गले लगाया. पूर्णिया ने कभी जातिवाद नहीं किया, जबकि मधेपुरा के यादवों को लालू यादव अधिक और Pappu Yadav कम चाहिए. मेरे जैसे आदमी को चुनाव हरवा दिया जिसने हर घर की सेवा की. मधेपुरा मेरी विचारधारा और तौर-तरीकों से बहुत दूर है. पप्पू का यह बयान बताता है कि अभी भी उनके मन में कहीं ना कहीं 2019 और 2020 की हार की टीस है

वहीं Pappu Yadav के इस रुख के पीछे 2019 के चुनाव नतीजों का गणित भी है. 2019 में एनडीए की ओर से जेडीयू ने दिनेशचंद्र यादव को उम्मीदवार बनाया था. जन अधिकार पार्टी से Pappu Yadav और आरजेडी से शरद यादव मैदान में थे. जेडीयू उम्मीदवार को 6 लाख 24 हजार 334 वोट मिले थे जबकि शरद यादव को 3 लाख 22 हजार 807, Pappu Yadav को 97 हजार 631 वोट मिले थे. आरजेडी और पप्पू को मिले वोट जोड़ लें तो भी यह 4 लाख 20 हजार के करीब ही पहुंचता है जो जेडीयू उम्मीदवार को मिले वोट के मुकाबले करीब दो लाख कम है… Pappu Yadav अब मधेपुरा के यादव मठाधीशों का जिक्र करते हुए उनके तौर-तरीके पर सवाल उठाते हुए अगर यह कह रहे हैं कि मैं अपनों से नहीं लड़ सकता और उन्हें लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सकता.

मेरे लिए चुपचाप अलग हो जाना ही एकमात्र रास्ता था. अभी पूर्णिया से अलग नहीं लड़ सकता. ये मेरे लिए आत्मघाती होगा. तो इसे पिछले चुनाव नतीजों से, वोटों के गणित से जोड़कर भी देखा जा रहा है… एक आधार पप्पू की चुनावी तैयारी को भी बताया जा रहा है. Pappu Yadav ने पूर्णिया में जनसंपर्क के लिए ‘प्रणाम पूर्णिया’ अभियान शुरू किया था. पप्पू के समर्थकों का दावा है कि इस अभियान के तहत करीब छह लाख परिवारों से संपर्क किया जा चुका है… अब सवाल यह भी है कि आरजेडी क्यों पूर्णिया की सीट कांग्रेस को देना नहीं चाहती? आरजेडी ने पप्पू को 2014 में टिकट तो दिया था लेकिन मधेपुरा से. अनुमानों के मुताबिक मधेपुरा में यादव और मुस्लिम, इन दो वर्गों की आबादी ही 5 लाख के करीब है जो आरजेडी का बेस वोटर माना जाता है…

आरजेडी की रणनीति यह हो सकती है कि कोई ऐसा चेहरा इस सीट से उतारा जाए जो कोर वोट में दूसरी जातियों के वोट जोड़ने की भी क्षमता रखता हो और इस सीट से सांसद रह चुके Pappu Yadav बेहतर विकल्प लग रहे हों. एक दूसरा पहलू भी है. बीमा भारती ने भी आरजेडी जॉइन करते ही अपनी महत्वाकांक्षा जाहिर कर दी है ऐसे में कयास यह भी हैं कि वह लालू यादव की पार्टी से टिकट के आश्वासन पर ही आई हों… कयास Pappu Yadav से लालू की नाराजगी के भी हैं. Pappu Yadav ने कांग्रेस में शामिल होने से ठीक एक दिन पहले लालू यादव और तेजस्वी यादव से मुलाकात की थी. पप्पू ने यह कहा था कि लालू ने उनसे अपनी पार्टी का आरजेडी में विलय करने, मधेपुरा सीट से चुनाव लड़ने को कहा था. लालू से मुलाकात के बाद अगले ही दिन Pappu Yadav ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था. Pappu Yadav के इस कदम से लालू की नाराजगी के भी चर्चे हैं…

अब आपको पूर्णिया सीट का सियासी समीकर भी समझा देते हैं.. तो  पूर्णिया सीट के समीकरणों की बात करें तो यहां यादव और मुस्लिम फैक्टर के साथ ही दलित और ओबीसी की कुशवाहा जैसी जातियां निर्णायक भूमिका निभाती हैं. सवर्ण मतदाताओं की तादाद भी अच्छी खासी है. आरजेडी को यह उम्मीद है कि बीमा भारती को उतारने से उसके बेस वोटर मुस्लिम-यादव के साथ ही दलित मतदाताओं का साथ भी पार्टी को मिल सकता है और ऐसा हुआ तो जीतने की संभावनाएं भी बढ़ सकती हैं.. तो वहीं पूर्णिया से चुनाव लड़ने का Pappu Yadav का प्रण है.. ऐसे में आरजेडी और कांग्रेस का क्या कुछ रुख होगा ये आने वाले वक्त में साफ हो पाएगा लेकिन फिलहाल पू्र्णिया की लड़ाई थमने का नाम नहीं ले रही है…

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