नवम्बर 2023 एक ऐसा महीना जब भारतीय जनता पार्टी और Congress के बीच जबरदस्त घमासान देखने को मिला। जब जब कोई स्टार प्रचारक किसी राज्य में चुनावी सभा में भाषण देता तो उनके भाषणों से जनता के बीच आक्रोश और विपक्षी पार्टी के लिए बड़ा संकट पैदा करके उनकी मुश्किलें बढ़ाता चला गया।-The Turmoil of Indian Elections news
लेकिन आपको बता दे की इन चुनावो में चाहे कितने ही दावे और आरोप लगाए गए हो लेकिन कुछ ऐसा था जिस पर जनता के मन में कुछ कसक अभी भी बाकि रह गयी और इसी कश्मकश में उन्होंने वोटिंग के दिन मतदान किया।-The Turmoil of Indian Elections news
आपको बता दे कि,इन पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भारतीय राजनीतिक दलों ने अपने-अपने तरीके से विभिन्न मुद्दों पर जनता को आकर्षित करने की कोशिश की। इनमें जातिगत जनगणना, आतंकवाद, चरमपंथ, अलगाववाद, महिला आरक्षण ,हिंदुत्व आदि मुद्दे शामिल थे। इन मुद्दों पर राजनीतिक दलों में तीखी बहस और आरोप-प्रत्यारोप हुए। इन मुद्दों का अपना-अपना महत्व और प्रभाव था, लेकिन इनके साथ ही कुछ ऐसे मुद्दे भी थे, जिन पर नेताओं ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया था।
इन मुद्दों में कोविड-19 महामारी का प्रभाव, बाल विवाह, बाल श्रम, बाल यौन शोषण, जल संकट, जलवायु परिवर्तन, किसान और मजदूर शामिल थे। इन मुद्दों को लेकर नेताओं ने न तो कोई नई नीति बनाई थी और न ही कोई कार्यक्रम चलाया था। इन मुद्दों को लेकर जनता को निराशा और आक्रोश का अनुभव हुआ था।
आपको यद् होगा कि कोविड-19 महामारी ने देश की आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य परिस्थितियों पर गहरा असर डाला था। लाखों लोगों की जानें चली गई थीं और करोड़ों लोगों को अपनी रोजी-रोटी खोनी पड़ी थी। इस महामारी से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने कुछ कदम उठाए थे, जैसे लॉकडाउन, वैक्सीनेशन, राहत पैकेज आदि, लेकिन ये कदम पर्याप्त नहीं थे। इस महामारी के दौरान जनता को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा, जैसे कि अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन, दवाओं की कमी, टेस्टिंग और ट्रेसिंग की कमी, मुफ्त भोजन और राशन की कमी आदि। भविष्य में इन समस्याओं करने के लिए नेताओं से उचित जवाब और समाधान की उम्मीद थी, लेकिन नेताओं ने इस मुद्दे को अनदेखा कर दिया था।
इसके अलावा इन राज्यों मे बाल विवाह, बाल श्रम और बाल यौन शोषण जैसे मुद्दे भी नेताओं के ध्यान से बाहर थे। इन मुद्दों से देश के लाखों बच्चों का भविष्य खतरे में था। इन मुद्दों को रोकने के लिए कानून और नियम तो थे, लेकिन उनका पालन और कार्यान्वयन नहीं हो रहा था। इन मुद्दों को लेकर जनता को नेताओं से उचित ध्यान और कार्रवाई की आवश्यकता थी। जल संकट और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों को लेकर नेताओं ने न तो कोई लंबे समय की योजना बनाई थी और न ही कोई तुरंत कार्य किया गया था। जबकि इन मुद्दों से देश के कई राज्यों में सूखा, बाढ़ और तूफान जैसी आपदाओं से जनता का काफी नुकसान होता था। स्थानीय जनता के लिए चुनाव ही वो वक़्त होता है जब ये नेता उनके पास आते है और इसी समय में वो सब नेता झूठे ही सही कभी तो मतदाताओं के हित में आवाज उठाते है। लेकिन इस बार भी पिछले हर चुनाव कि तरह इस बार भी जनता खुद को अपनी उन अनसुलझी समस्याओ के बीच पा रहे है और इसी कश्मकश में लोगो ने मतदान किया था अब आने वाले समय में देखना काफी रोचक होगा कि जनता के इन मुद्दों पर मतदान मे क्या प्रभाव पड़ा था।
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