what One Nation-One Election
कोविंद कमिटी की रिपोर्ट में क्या-क्या?
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को कमिटी का चेयरमैन बनाया गया
कमिटी मे 7 मेंबर बनाए गए थे
अधीर रंजन चौधरी ने मेंबर बनने से इनकार कर दिया था
One Nation-One Election के लिए बनाई गई हाई लेवल कमिटी ने सिफारिश की है कि देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ कराए जाएं.. इसके लिए संविधान में संशोधन की सिफारिश भी की गई है.. केंद्र सरकार ने One Nation-One Election को लेकर 2 सितंबर 2023 को एक हाई लेवल कमिटी बनाने का फैसला किया था.. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को कमिटी का चेयरमैन बनाया गया और साथ में 7 मेंबर बनाए गए थे.. रिपोर्ट में कहा गया कि बीच-बीच में चुनाव कराए जाने से सौहार्द बिगड़ता है..-One Nation-One Election
साथ ही आर्थिक विकास, शैक्षणिक क्षेत्र और खर्च पर पर विपरीत असर होता है.. अब हम आपको इस कमेटी, इसकी रिपोर्ट और इससे जुड़े कई सवालों के जवाब देंगे.. तो सबसे पहले आपको बताते हैं कि इस कमेटी में कौन-कौन शामिल था.. दरअसल पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को कमिटी का चेयरमैन बनाया गया और साथ में 7 मेंबर थे.. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी मेंबर में थे.. -One Nation-One Election
पूर्व राष्ट्रपति कोविंद को चेयरमैन बनाया गया.. शाह के अलावा दूसरे सदस्यों में लोकसभा में विरोधी दल के नेता अधीर रंजन चौधरी, गुलाम नबी आजाद, 15वीं फाइनैंस कमिशन के पूर्व चेयरमैन एन. के. सिंह, लोकसभा के पूर्व सेक्रेट्री जनरल सुभाष सी. कश्यप, सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे और पूर्व चीफ विजिलेंस कमिश्नर संजय कोठारी शामिल थे.. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल स्पेशल इन्वाइटी बनाए गए..
लीगल मामलों के सेक्रेटरी एन. चंद्रा हाई लेवल कमेटी के सेक्रेट्री बनाए गए… बाद में अधीर रंजन चौधरी ने मेंबर बनने से इनकार कर दिया था... अब एक सवाल ये है कि क्या एक साथ चुनाव के लिए संविधान में सशोधन की जरूरत होगी या नहीं तो इस पर कमिटी ने कहा है कि एकसाथ चुनाव और कार्यकाल फिक्स करने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा.. इसके लिए अनुच्छेद-324 और 325 में संशोधन करना होगा.. अनुच्छेद-324 में संशोधन के लिए राज्यों से पुष्टि लेनी होगी. अनुच्छेद-324 में संशोधन से एकसाथ चुनाव कराने और अनुच्छेद-325 में संशोधन से वोटर आई कार्ड के संदर्भ में की गई सिफारिश का रास्ता साफ होगा…
अनुच्छेद-83 और 172 में संशोधन करने की सिफारिश भी की गई है.. इसके तहत लोकसभा और विधानसभा के कार्यकाल के बारे में बताया गया है.. इस संवैधानिक संशोधन को राज्यों की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी.. कमिटी ने रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल ऐक्ट में भी संबंधित बदलाव की सिफारिश की है..इस कमेटी ने अलग-अलग चुनाव कराए जाने का नुकसान भी बताया है.. कमिटी ने तमाम विशेषज्ञों और हितधारकों से बात करने के बाद सिफारिश की है.. कमिटी ने कहा कि देश की आजादी के बाद शुरुआत में हर 10 साल में दो चुनाव होते थे…
अब हर साल कई चुनाव हो रहे हैं.. इस कारण सरकार, व्यवसायी, मजदूर, अदालतें, राजनीतिक दल, चुनाव के उम्मीदवार, सिविल सोसायटी के लोगों पर बड़े पैमाने पर बोझ पड़ रहा है… ऐसे में सरकार को एक साथ चुनावी चक्र को बहाल करने के लिए कानूनी तौर पर मान्य तंत्र विकसित करना चाहिए.. कमिटी ने पहले फेज में लोकसभा और विधानसभाओं का चुनाव एकसाथ कराने की सिफारिश की है.. इसके बाद दूसरे फेज में इस चुनाव के 100 दिनों के अंदर नगर पालिका और पंचायत चुनाव के भी कराया जाए…
अब सवाल ये है कि अगर चुनाव के परिणाम त्रिशंकु हुए तो क्या होगा.. कमिटी ने कहा है कि त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी स्थिति जिसमें नए सिरे से चुनाव की स्थिति बन जाए तो नए लोकसभा का कार्यकाल, पहली लोकसभा के कार्यकाल के शेष बचे समय के लिए ही होगा… साथ ही निर्धारित तिथि के बाद सदन भंग होगा.. इसी तरह विधानसभा में भी अगर नए चुनाव की स्थिति बनती है तो नया विधानसभा का कार्यकाल लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की अवधि तक ही होगा.. कमिटी की सिफारिश के मुताबिक, EVM, VVPAT जैसे उपकरण की खरीद, सुरक्षा और दूसरी व्यवस्था के लिए चुनाव आयोग को योजना तैयार करनी होगा.. अब आपको बतात के है कि कमिटी ने सुप्रीम कोर्ट के किस जजमेंट का हवाला दिया था..
कमिटी ने अपने निष्कर्ष में सुप्रीम कोर्ट के केशवानंद भारती के जजमेंट के सिद्धांत का हवाला दिया है.. उसने कहा है कि सिफारिशें केशवानंद भारती केस के सिद्धांतों को स्पष्ट करती हैं.. केशवानंद भारती जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रत्येक संविधान से लंबे समय तक बने रहने की अपेक्षा की जाती है और इसलिए इसे अनिवार्य तौर पर समायोजी होना चाहिए..
संविधान और विधान को इनकी जरूरतों के अनुसार बदलना होगा. वहीं एक सवाल ये भी उठता है कि क्या एकसाथ चुनाव कराने के लिए राज्य विधानसभा को समय से पहले भंग करना होगा… इस पर सीनियर एडवोकेट एम. एल. लाहौटी बताते हैं कि अनुच्छेद-83 (2) लोकसभा टर्म पांच साल से ज्यादा न करने और पहले खत्म होने की बात करता है.. अनुच्छेद-85 (2) बी सदन भंग करने और नए सदन की बात करता है.. 172 (1) राज्य विधानसभा भंग पहले भंग करने या फिर पांच साल का कार्यकाल की बात करता है। ऐसे में इसमें जरूरी संशोधन करना होगा..
आपको बता दें कि आजादी के बाद चार चुनाव 1952, 57, 62 और 67 के चुनाव में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ ही हुए थे.. लोकसभा और विधानसभा का कार्यकाल क्या होगा, त्रिशंकु की स्थिति में मध्यावधि चुनाव के बाद क्या स्थिति होगी इस तरह के तमाम सवालों का जवाब समिति के रिपोर्ट से साफ हो चुका है अब कुछ संवैधानिक संशोधन की जरूरत पड़ेगी और अगर केंद्र सरकार संविधान संशोधन कर पाए तो One Nation-One Election का रास्ता साफ हो सकता है..
एक देश एक चुनाव के प्रस्ताव को 47 राजनीतिक पार्टियों में से 32 ने इसका समर्थन किया है.. राष्ट्रपति को कमिटी ने 18625 पेज की रिपोर्ट सौंपी है.. कुल 21558 नागरिकों की प्रतिक्रिया मिली.. 80 फीसदी ने चुनाव एकसाथ कराने का समर्थन किया.. वहीं इस कमिटी ने सुप्रीम कोर्ट के चार पूर्व चीफ जस्टिस, हाई कोर्ट के 12 रिटायर्ड चीफ जस्टिस, चार पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों और आठ पूर्व चुनाव आयुक्तों के साथ-साथ लॉ कमिशन के अध्यक्ष को व्यक्तिगत तौर पर आमंत्रित किया और उनके विचार मांगे.. साथ ही फिक्की, आर्थिक मामलों के जानकारों के विचार भी जाने.. यानि एक देश एक चुनाव की परिकल्पना हर मायने में देश हित में है…