राफेल डील एक ऐसा सौदा है, जिसमें INDIA ने फ्रांस की कंपनी डसॉल्ट एविएशन से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदे हैं। यह विमान भारतीय वायु सेना की लड़ाई क्षमता को बढ़ाने और चीन और पाकिस्तान के साथ तनाव के बीच भारत की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। राफेल डील का आरंभ वर्ष 2007 में हुआ, जब INDIA ने 126 मेडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट की खरीद के लिए एक बोली निकाली। इस बोली में डसॉल्ट राफेल और यूरोफाइटर टाइफून दोनों शामिल थे। वर्ष 2012 में, डसॉल्ट राफेल को सबसे कम बोली लगाने वाले के रूप में चुना गया, लेकिन इस डील को पूरा करने में कई बाधाएं आईं। वर्ष 2015 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस के दौरे के दौरान एक नई डील की घोषणा की, जिसमें 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए सरकारों के बीच एक समझौता हुआ। इस डील के तहत, INDIA को 59 हजार करोड़ रुपये की लागत में 36 राफेल विमान मिलेंगे, जिनमें से 18 विमान तैयार होकर आएंगे और बाकी 18 विमानों का निर्माण भारत में होगा। इस डील के अनुसार, डसॉल्ट एविएशन को भारत में एक ऑफसेट पार्टनर चुनना था, जिसके लिए वह अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस को चुना।-India and France-Agreement ???
इसपर कांग्रेस ने मोदी सरकार पर लगातार आरोप लगाए हैं कि इस डील में भ्रष्टाचार, घोटाला और अनियमितता हुई हैं। कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार ने राफेल विमानों की कीमत में अनुचित बढ़ोतरी की है, रिलायंस डिफेंस को बिना अनुभव के ऑफसेट पार्टनर बनाया है और इस डील को गुप्त और अवैध तरीके से किया है। कांग्रेस ने इस डील की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति जेपीसी की मांग की है, जिसे मोदी सरकार ने ठुकरा दिया है।
मोदी सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि राफेल डील पूरी तरह से साफ और व्यवसायिक आधार पर की गई है। सरकार का कहना है कि राफेल विमानों की कीमत यूपीए सरकार के समय से कम है, रिलायंस डिफेंस का चयन डसॉल्ट एविएशन ने खुद किया है, इसमें कोई समझौता नहीं हुआ है और इस डील को सरकारों के बीच एक समझौते के अनुसार किया गया है। सरकार ने यह भी कहा है कि इस डील को सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकार किया है और कोई जांच की जरूरत नहीं है।
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राफेल डील का इतिहास वर्ष 2001 में शुरू हुआ, जब भारतीय वायु सेना ने अपनी लड़ाकू विमानों की कमी को पूरा करने के लिए एक नई परियोजना की घोषणा की। इस परियोजना का नाम मेडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट एमएमआरसीए था, जिसके तहत INDIA ने 126 लड़ाकू विमानों की खरीद की योजना बनाई। इस परियोजना के लिए वर्ष 2007 में एक बोली निकाली गई, जिसमें छह विदेशी कंपनियों ने हिस्सा लिया। ये कंपनियां थीं- डसॉल्ट राफेल (फ्रांस), ईएडीएस यूरोफाइटर टाइफून (यूरोपीय संघ), लॉकहीड मार्टिन एफ-16 (अमेरिका), बोइंग एफ/ए-18 (अमेरिका), मिग-35 (रूस) और साब ग्रिपेन (स्वीडन)।
वर्ष 2011 में, भारतीय वायु सेना ने इन विमानों को विभिन्न परीक्षणों में शामिल किया और उनकी तकनीकी योग्यता का मूल्यांकन किया। इसके बाद, वर्ष 2012 में, डसॉल्ट राफेल और ईएडीएस यूरोफाइटर टाइफून को अंतिम चरण में शामिल किया गया। इन दोनों में से, डसॉल्ट राफेल को सबसे कम बोली लगाने वाले के रूप में चुना गया और इसे एमएमआरसीए के लिए विजेता घोषित किया गया। इसके बाद, INDIA और फ्रांस के बीच एक अनुबंध पर हस्ताक्षर करने की प्रक्रिया शुरू हुई, जिसमें विमानों की कीमत, ऑफसेट अनुबंध, लड़ाई की तैयारी, गुप्त जानकारी और अन्य शर्तें शामिल थीं।
इस प्रक्रिया में कई बाधाएं आईं, जैसे कि डसॉल्ट और हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के बीच विमानों के निर्माण की जिम्मेदारी का बंटवारा, विमानों की कीमत में असहमति, ऑफसेट अनुबंध के लिए भारतीय उपकरण निर्माताओं का चयन, विमानों की गुणवत्ता और लाभांश की जांच आदि। इन बाधाओं को दूर करने के लिए, दोनों देशों के बीच कई बार वार्ता हुई, लेकिन कोई अंतिम समझौता नहीं हो सका।
वर्ष 2014 में, INDIA में नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी। इसके बाद, राफेल डील को फिर से समीक्षा किया गया और भारतीय वायु सेना ने अपनी आवश्यकताओं को पुनर्निर्धारित किया। वायु सेना ने बताया कि उन्हें तुरंत 36 विमानों की जरूरत है, जो फ्रांस से सीधे खरीदे जा सकते हैं। इसके अलावा, वायु सेना ने यह भी कहा कि वे अन्य 90 विमानों को भारत में निर्मित करने की योजना को छोड़ने को तैयार हैं, अगर उन्हें फ्रांस से तैयार विमान मिल जाएं।
वर्ष 2015 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस की यात्रा की और वहां उन्होंने फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद से मुलाकात की। इस मुलाकात में, दोनों नेताओं ने 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए एक सहमति जारी की, जिसमें कहा गया कि ये विमान फ्रांस से सीधे आयात किए जाएंगे और इनमें INDIA के लिए अनुकूलित होंगे। इस सहमति के अनुसार, इन विमानों की कीमत यूपीए सरकार के समय से कम होगी। इस सहमति के बाद, भारत और फ्रांस के बीच एक अंतिम अनुबंध पर काम किया गया, जिसमें विमानों की कीमत, ऑफसेट अनुबंध, गुप्त जानकारी, विमानों की डिलीवरी और अन्य शर्तें निर्धारित की गईं।
वर्ष 2016 में, INDIA और फ्रांस के बीच राफेल डील का अंतिम अनुबंध हस्ताक्षरित हुआ, जिसके तहत INDIA ने 36 राफेल विमानों को 7.87 अरब यूरो लगभग 59 हजार करोड़ रुपये की कीमत पर खरीदा। इस अनुबंध के तहत, भारत को विमानों के साथ 13 इंडिया स्पेसिफिक एन्हांसमेंट्स आईएसई, 75 प्रतिशत लाभांश, पांच साल की प्रारंभिक रखरखाव सेवा, 10 साल की प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता, विमानों के लिए 36 महीने की वारंटी, विमानों के लिए एक परिवहन विमान, दो फ्लाइट सिम्युलेटर और अन्य लाभ मिलेंगे।
इस अनुबंध के बाद, राफेल डील को लेकर देश में बहुत विवाद हुए। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि इसने विमानों की कीमत में बढ़ोतरी की, ऑफसेट अनुबंध में अनिल अंबानी की कंपनी को फायदा पहुंचाया, विमानों की तैयारी और गुप्त जानकारी को लेकर अस्पष्टता बनाई और राफेल डील की जांच के लिए जेपीसी की मांग को नकारा। मोदी सरकार ने इन आरोपों को खारिज किया और कहा कि राफेल डील देश की सुरक्षा के लिए जरूरी है, विमानों की कीमत यूपीए सरकार के समय से कम है, ऑफसेट अनुबंध में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं है, विमानों की तैयारी और गुप्त जानकारी को लेकर कोई संदेह नहीं है और राफेल डील की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला आखिरी है।
वर्ष 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील की जांच करने से इनकार करते हुए, सरकार को क्लीन चिट दी। कोर्ट ने कहा कि विमानों की कीमत, ऑफसेट अनुबंध और विमानों की तैयारी को लेकर कोई संदेह नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि राफेल डील में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ है। कांग्रेस ने इस फैसले को चुनौती दी और कहा कि सरकार ने कोर्ट को गुमराह किया है। कांग्रेस ने फिर से राफेल डील की जांच के लिए जेपीसी की मांग दोहराई।
वर्ष 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस की याचिका पर सुनवाई की और राफेल डील की जांच के लिए अपने पहले फैसले को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि राफेल डील में कोई दोष नहीं है और सरकार ने कोर्ट को गुमराह नहीं किया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि राफेल डील की जांच के लिए जेपीसी की आवश्यकता नहीं है। कांग्रेस ने इस फैसले को निराशाजनक बताया और कहा कि वह राफेल डील को लेकर जनता के सामने सच लाने का प्रयास जारी रखेगी।
वर्ष 2021 में, फ्रांस के एक पत्रकार ने राफेल डील को लेकर एक नया खुलासा किया। उसने दावा किया कि राफेल डील में बिचौलिए को 65 करोड़ रुपये की रिश्वत दी गई थी। उसने यह भी कहा कि इसकी जानकारी सीबीआई और ईडी को भी थी, लेकिन उन्होंने इस मामले को आगे नहीं बढ़ाया। इस खुलासे के बाद, कांग्रेस ने फिर से राफेल डील को लेकर मोदी सरकार पर आरोप लगाया और राफेल डील की जांच के लिए जेपीसी की मांग की। मोदी सरकार ने इस खुलासे को बेबुनियाद और असत्य बताया और कहा कि राफेल डील में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ है।
इस प्रकार, राफेल डील का इतिहास बहुत ही जटिल और विवादास्पद है। इस डील को लेकर दोनों पक्षों के बीच तर्क-वितर्क अभी भी जारी हैं। भारतीय वायु सेना को राफेल विमानों की जरूरत है, क्योंकि इससे उसकी लड़ाई की क्षमता बढ़ेगी और वह चीन और पाकिस्तान के साथ अपनी हवाई सीमा की रक्षा कर सकेगी। राफेल विमान एक बहु-भूमिका विमान है, जो वायु-वायु, वायु-थल और वायु-समुद्री युद्ध में कारगर है। इस विमान में उन्नत राडार, संचार, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, इंजन, आग्नेयास्त्र और अन्य उपकरण लगे हैं, जो इसे एक शक्तिशाली और लचीला विमान बनाते हैं।
भारत ने अब तक 36 राफेल विमानों का आदेश दिया है, जिनमें से 23 विमान भारत में पहुंच चुके हैं। इन विमानों को वायु सेना के दो स्क्वाड्रन में बांटा गया है, जो अंबाला और हाशिमारा में स्थित हैं। इन विमानों को भारत के पश्चिमी और पूर्वी सीमा पर तैनात किया गया है, जहां चीन और पाकिस्तान के साथ तनाव बढ़ा है। राफेल विमानों ने पहली बार वायु सेना के स्वर्णिम जयंती परेड में भाग लिया था, जो 8 अक्टूबर 2020 को नई दिल्ली में हुआ था। इन विमानों ने भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को सलामी दी थी।
राफेल डील का इतिहास बहुत ही जटिल और विवादास्पद है, लेकिन इस डील से भारत को एक आधुनिक और उन्नत वायु सेना मिलेगी, जो देश की सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। राफेल विमान भारत के वायु सेना को एक नया आत्मविश्वास और गौरव देगा, जो इसे दुनिया की सबसे शक्तिशाली वायु सेनाओं में से एक बनाएगा।
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