भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने एक साक्षात्कार में कहा कि उन्होंने judgeको न्यायिक न्यायालयों में नियुक्त करने वाली कोलेजियम प्रणाली में पारदर्शिता की कमी के आरोपों को खारिज कर दिया है और उन्होंने अनुच्छेद 370 के संविधान के उस फैसले की आलोचना का जवाब देने से भी इनकार कर दिया है, जिसने पूर्व राज्य जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान किया था। इस वीडियो में हम इन दोनों मुद्दों का पर विश्लेषण करेंगे और तथ्यों को समझने की कोशिश करेंगे। नमस्कार आप देख रहे है AIRR न्यूज़। -D Y Chandrachud
कोलेजियम प्रणाली एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें न्यायिक न्यायालयों में judge की नियुक्ति और उनके स्थानांतरण का निर्णय भारत के मुख्य न्यायाधीश और चार वरिष्ठतम judge के द्वारा लिया जाता है। इस प्रणाली को 1993 में एक न्यायिक फैसले के बाद शुरू किया गया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए judge की नियुक्ति में केंद्र सरकार का हस्तक्षेप कम करना चाहिए।
कोलेजियम प्रणाली को अक्सर अपने कामकाज में गुप्त और अनियमित होने के लिए आलोचित किया जाता है। कुछ आलोचकों का कहना है कि इस प्रणाली में judge का चयन और उनके योग्यता का मूल्यांकन किसी विश्वसनीय मापदंड के आधार पर नहीं होता है। इसके अलावा, इस प्रणाली में judge के बारे में कोई जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं होती है और न ही किसी तरह का लोकतंत्रीय निरीक्षण होता है।
चंद्रचूड़ ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि कोलेजियम प्रणाली न्यायिक स्वतंत्रता का एक आवश्यक तत्व है और इसमें कोई गड़बड़ी नहीं होती है। उन्होंने कहा कि वे judge का चयन और उनके योग्यता का मूल्यांकन करते समय बहुत सावधानी और विवेक के साथ काम करते हैं। उन्होंने कहा कि वे judge के बारे में जितनी जानकारी उपलब्ध होती है, वे उसका उपयोग करते हैं और यदि किसी judge के बारे में कोई शक या शिकायत होती है, तो वे उसे गंभीरता से लेते हैं। उन्होंने कहा कि वे कोलेजियम प्रणाली को और अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए काम कर रहे हैं और वे इसे न्यायिक सुधार का एक हिस्सा मानते हैं।
चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि कोलेजियम प्रणाली को न्यायिक न्यायालयों की विविधता और प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिए उपयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वे judge को उनकी योग्यता, अनुभव, विशेषज्ञता और नैतिकता के आधार पर चुनते हैं, लेकिन वे यह भी ध्यान रखते हैं कि वे विभिन्न राज्यों, जातियों, लिंगों, धर्मों और समुदायों का प्रतिनिधित्व करें। उन्होंने कहा कि वे न्यायिक न्यायालयों को भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता का एक प्रतिबिंब बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
आपको बता दे कि अनुच्छेद 370 एक ऐसा संविधानीय अनुच्छेद था, जिसने पूर्व राज्य जम्मू और कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों से अलग और विशेष दर्जा प्रदान किया था। इसके तहत, जम्मू और कश्मीर को अपना अलग झंडा, विधानसभा, विधान और नागरिकता कानून बनाने का अधिकार था। इसके अलावा, भारत के केंद्र सरकार के अधिकार जम्मू और कश्मीर में केवल रक्षा, विदेश मामले और संचार पर सीमित थे। अनुच्छेद 370 को 1954 में एक अस्थायी अनुच्छेद के रूप में जोड़ा गया था, लेकिन यह बाद में एक स्थायी अनुच्छेद बन गया।
अनुच्छेद 370 को 2019 में एक विवादित फैसले के द्वारा समाप्त कर दिया गया था, जिसमें भारत की केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर को अपने विशेष दर्जे से वंचित कर दिया था और उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था। इस फैसले को कई राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, न्यायिक विशेषज्ञों और जनता के द्वारा आपत्तिजनक और असंवैधानिक माना गया था। इस फैसले के खिलाफ कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गईं, जिनमें से एक याचिका में, चंद्रचूड़ ने एक अलग से लेकिन सहमत राय लिखी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का फैसला भारत के संविधान के अनुसार नहीं था। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 को एक अस्थायी अनुच्छेद के रूप में प्रस्तुत करना गलत था, क्योंकि यह एक स्थायी अनुच्छेद था, जिसे केवल जम्मू और कश्मीर की विधायी सभा की सिफारिश पर ही बदला जा सकता था। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 के अंतर्गत बनाए गए अनुच्छेद 35A, जिसने जम्मू और कश्मीर के निवासियों को विशेष अधिकार दिए थे, को भी असंवैधानिक माना गया था। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का फैसला जम्मू और कश्मीर के लोगों के साथ विश्वासघात करता है और उनके संवैधानिक अधिकारों को हनन करता है।
चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का फैसला भारत के संविधान के भावनात्मक संबंध को भी तोड़ता है, जो जम्मू और कश्मीर को भारत का एक अभिन्न अंग बनाता है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का फैसला जम्मू और कश्मीर के लोगों को भारत के साथ जुड़ने के लिए उनके द्वारा किए गए बलिदानों और त्यागों का अपमान करता है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का फैसला जम्मू और कश्मीर के लोगों को भारत के संविधान के अंतर्गत एक विशिष्ट राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान से वंचित करता है।
चंद्रचूड़ ने अपनी राय में यह भी कहा कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का फैसला जम्मू और कश्मीर के लोगों के साथ किसी भी प्रकार की समझौते या सहमति के बिना लिया गया था। उन्होंने कहा कि जम्मू और कश्मीर के लोगों को उनके भविष्य के बारे में बातचीत और विचार-विमर्श का अवसर नहीं दिया गया था। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का फैसला जम्मू और कश्मीर के लोगों को उनके अधिकारों और स्वायत्तता को बचाने के लिए आंदोलन करने के लिए मजबूर करता है।
इस प्रकार, डी वाई चंद्रचूड़ के विचार और उनकी न्यायिक दृष्टि ने हमें न्यायिक प्रणाली और भारतीय संविधान की गहराई को समझने में मदद की है। उनके विचार न्यायिक स्वतंत्रता, पारदर्शिता, विविधता, और संविधानिक अधिकारों के महत्व को उजागर करते हैं। इस वीडियो में, हमने उनके विचारों और फैसलों का विश्लेषण किया है, जो हमें न्यायिक प्रणाली के बारे में नई समझ और संवेदनशीलता प्रदान करते हैं। हमें आशा है कि आपको यह वीडियो पसंद आया होगा और यह आपके ज्ञान और समझ में योगदान करता होगा। धन्यवाद कि आपने हमारे साथ अपना कीमती समय बिताया। अगर आपके पास कोई प्रश्न या सुझाव हैं, तो कृपया हमें नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में लिखें। और हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें। धन्यवाद, और हम मिलेंगे अगले वीडियो में। आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।
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