Indian Economy – A Comparative Study of NDA and UPA Tenures

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद के बजट सत्र में Indian Economy पर एक ‘White Paper‘ प्रस्तुत करके 2014 से पहले की यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलायंस (यूपीए) की सत्ता पर गंभीर आरोप लगाए है।  इस पेपर में भारत की अर्थव्यवस्था का एक विस्तृत और विश्लेषणात्मक चित्रण किया गया है, जिसमें दो सरकारों के कार्यों का मूल्यांकन किया गया है। लेकिन क्या यह पेपर सचमुच में निष्पक्ष और विश्वसनीय है? क्या इसमें तथ्यों को छिपाने या बदलने का प्रयास तो नहीं किया गया है? क्या इसमें आंकड़ों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने का प्रयास तो  नहीं किया गया है? इन सवालों का जवाब जानने के लिए, बने रहिये हमारे साथ।  नमस्कार आप देख रहे है AIRR न्यूज़। 

सीतारमण ने व्हाइट पेपर को अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं में साझा किया है। इसमें यूपीए सरकार द्वारा किए गए कार्यो और गलतियों की सूची दी गई है, और उन गलतियों को ठीक करने के लिए एनडीए सरकार द्वारा किए गए कार्यों का भी उल्लेख किया गया है। सरकार द्वारा जारी किया गया व्हाइट पेपर यह दिखाने का प्रयास करता है कि जब कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सत्ता में थी, तो अर्थव्यवस्था कैसी थी। एक रिपोर्ट के अनुसार, व्हाइट पेपर कहता है कि जब वर्तमान एनडीए सरकार ने 2014 में सत्ता संभाली, तो अर्थव्यवस्था बहुत खराब हालत में थी। सार्वजनिक वित्त में समस्याएं थीं, अर्थव्यवस्था में अप्रबंधन था, और भ्रष्टाचार फैला हुआ था। यह एक संकट की स्थिति थी। 

सरकार ने अपने विश्लेषण में तुलना करते हुए कहा है कि यूपीए सरकार ने जब शुरू में सत्ता संभाली, तो उन्हें एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था मिली थी, लेकिन उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान उसे बिगाड़ दिया। उन्होंने अनुचित खर्च, अधिक कर्ज, अधिक बजट घाटा, अधिक मुद्रास्फीति, अधिक बेरोजगारी, और अधिक गरीबी पैदा की। इसके विपरीत, एनडीए सरकार ने 2014 में जब सत्ता संभाली, तो उन्होंने इन सभी समस्याओं को हल करने के लिए कई कदम उठाए। उन्होंने आर्थिक सुधार, नियमन में सरलीकरण, निवेश में बढ़ोतरी, विकास में गति, रोजगार, और गरीबी में कमी लाने के लिए प्रयास किए। व्हाइट पेपर में इन दोनों सरकारों के बीच की तुलना के लिए कई आंकड़े और ग्राफ भी शामिल हैं, जो आपको इस विषय पर एक स्पष्ट और व्यापक दृष्टिकोण देते हैं। 

आइए, इन आंकड़ों पर एक नज़र डाले।  यहाँ आप देख सकते हैं कि यूपीए सरकार के दौरान, भारत की जीडीपी की वार्षिक वृद्धि दर में गिरावट आई थी, जो 2013-14 में सिर्फ 4.7 प्रतिशत रह गई थी। इसके बाद, एनडीए सरकार ने अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए कई नीतियां लागू कीं, जिससे जीडीपी की वृद्धि दर में सुधार आया, और 2018-19 में यह 6.8 प्रतिशत तक पहुंच गई। इसी तरह, यूपीए सरकार के दौरान, मुद्रास्फीति की दर में तेजी आई, जो 2013-14 में 9.4 प्रतिशत तक चढ़ गई। इससे जनता को महंगाई का सामना करना पड़ा, और खरीदने की शक्ति में कमी आई। 

एनडीए सरकार ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाए, और 2018-19 में यह 3.4 प्रतिशत तक घट गई। विदेशी मुद्रा भंडार भी एक महत्वपूर्ण संकेतक है, जो देश की आर्थिक स्थिरता और विश्वसनीयता को दर्शाता है। यूपीए सरकार के दौरान, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई, जो 2013-14 में 304 अरब डॉलर तक गिर गई। इससे रुपये की कीमत में गिरावट आई, और विदेशी निवेशकों का भरोसा कम हुआ। एनडीए सरकार ने विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने के लिए निवेश को आकर्षित करने के लिए अनेक पहल कीं, जिससे 2018-19 में यह 412 अरब डॉलर तक पहुंच गया। इनके अलावा, एनडीए सरकार ने बजट घाटा, विदेशी सीधे निवेश, सरकारी कर्ज, राज्यों के लिए वित्तीय वितरण, शिक्षा और स्वास्थ्य के खर्च, और बेरोजगारी के मुद्दों पर भी बेहतर प्रदर्शन किया है। 

आपको बता दे कि, व्हाइट पेपर का उद्देश्य यह है कि देश के लोगों को अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति का पता चले, और वे अपने विकास के लिए सही फैसला ले सकें। लेकिन क्या यह व्हाइट पेपर पूरी तरह से सच बताता है? क्या इसमें कोई अधूरी या गलत जानकारी नहीं है? क्या इसमें कोई तर्कसंगतता या तथ्यसंगतता की कमी नहीं है? क्या इसमें कोई अभिप्राय या पक्षपात नहीं है? इन सवालों के जवाब के लिए, हम आपको कुछ तथ्यों को जानना जरुरी है 2004-09 से 2009-14 तक यूपीए सरकार के काल में, भारत का कुल खर्च 5.9 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 16.6 लाख करोड़ रुपये हो गया। इसमें सबसे ज्यादा खर्च राज्यों को देने, डिफेंस, वित्त आयोग, सब्सिडी और पेंशन पर हुआ। वही 2014-19 से 2019-24 तक एनडीए सरकार के काल में, भारत का कुल खर्च 17.9 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 47.6 लाख करोड़ रुपये हो गया। इसमें सबसे ज्यादा खर्च डिफेंस, केंद्र की योजनाएं, केंद्र प्रायोजित योजनाएं और ब्याज भुगतान पर हुआ।

इसी तरह 2004-09 से 2009-14 तक यूपीए सरकार के काल में, भारत का कुल कर्ज 21.1 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 54.9 लाख करोड़ रुपये हो गया था। इसका मुख्य कारण राजकोषीय घाटा था, जो जीडीपी का 4.2% से 4.5% तक रहा। वही 2014-19 से 2019-24 तक एनडीए सरकार के काल में, भारत का कुल कर्ज 61.4 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 125.7 लाख करोड़ रुपये हो गया। इसका मुख्य कारण कोरोना महामारी का प्रभाव बताया जा रहा था, जिसने राजकोषीय घाटा को जीडीपी का 9.2% तक पहुंचा दिया।

आपको बता दे कि 2004-09 से 2009-14 तक यूपीए सरकार के काल में, भारत की मुद्रास्फीति 3.8% से 9.4% तक रही। इसका मुख्य कारण उच्च खर्च, कम आयात और कम विदेशी मुद्रा आय थी। इसके सामने 2014-19 से 2019-24 तक एनडीए सरकार के काल में, भारत की मुद्रास्फीति 5.9% से 6.2% तक रही। इसका मुख्य कारण कोरोना महामारी, उच्च कच्चे तेल की कीमतें और खाद्य मूल्यों में वृद्धि बताया गया। जबकि कच्चे तेल कि कीमतों में भरी गिरावट भी देखी गयी थी जो कोरोना महामारी, यूक्रेन और रूस का युद्ध जिसमे भारत सरकार ने भारी मात्रा में खरीददारी की थी। 

2004-09 से 2009-14 तक यूपीए सरकार के काल में, भारत की बेरोजगारी दर 8.3% से 4.9% तक गिरी। इसका मुख्य कारण नौकरी पैदा करने वाले क्षेत्रों में विकास था। इसके बाद 2014-19 से 2019-24 तक एनडीए सरकार के काल में, भारत की बेरोजगारी दर 5.6% से 8.8% तक बढ़ी। इसका मुख्य कारण कोरोना महामारी, नोटबंदी और जीएसटी का प्रभाव बताया जा रहा था।

हालाँकि 2004-09 से 2009-14 तक यूपीए सरकार के काल में, भारत की गरीबी दर 37.2% से 21.9% तक गिरी। इसका मुख्य कारण आय में वृद्धि, सामाजिक कल्याण योजनाएं और शिक्षा में सुधार थे। लेकिन 2014-19 से 2019-24 तक एनडीए सरकार के काल में, भारत की गरीबी दर 21.9% से 19.5% तक गिरी। इसका मुख्य कारण आय में वृद्धि, आत्मनिर्भर भारत योजना और गरीबों के लिए उचित आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार की सुविधाएं थीं।

हमने विस्तृत रूप से भारत की अर्थव्यवस्था के विकास का विश्लेषण किया है, जिसमें खर्च, कर्ज, मुद्रास्फीति, बेरोजगारी और गरीबी दर के महत्वपूर्ण पहलुओं को शामिल किया गया है। सरकार द्वारा प्रस्तुत किए गए आंकड़े और तथ्य यथार्थ हो सकते हैं, लेकिन उन्हें समझने और व्याख्या करने का तरीका व्यक्तिगत दृष्टिकोण पर निर्भर कर सकता है। यह सत्य है कि व्हाइट पेपर और अन्य सरकारी रिपोर्ट अक्सर जटिल और विवादास्पद हो सकती हैं, और उन्हें समझने के लिए गहराई से अध्ययन करने की आवश्यकता होती है। इसलिए, हमें सभी सूचनाओं को संतुलित और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता होती है।

साथ ही हमें व्हाइट पेपर और अन्य स्रोतों की जांच करने की आवश्यकता हो सकती है, जिससे हम विश्लेषण कर सकें कि क्या उनमें कोई तर्कसंगतता, तथ्यसंगतता, या पक्षपात की कमी है। इसके अलावा, हमें यह भी समझना होगा कि कैसे और क्यों ये परिवर्तन हुए, और उनका भारत की अर्थव्यवस्था और समाज पर क्या प्रभाव पड़ा।

इसलिए, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हम सभी तथ्यों और आंकड़ों को समझें, उन्हें सही संदर्भ में देखें, और उन्हें सही तरीके से व्याख्या करें। इससे हम अपने विकास के लिए सही और सूचित निर्णय ले सकते हैं।

नमस्कार आप देख रहे थे AIRR न्यूज़। 

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