महाराष्ट्र में Maratha Reservation के मुद्दे को राज्य के राजनीतिक, सामाजिक और न्यायिक स्तर पर उठाया गया है।ये मुद्दा उन लोगों को लेकर है, जो मराठा समुदाय का हिस्सा हैं, और जो अपने आप को कुणबी जाति के अंतर्गत आते हैं। कुणबी एक पारंपरिक कृषक जाति है, जो पश्चिमी भारत में पाई जाती है, और जो अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के रूप में मान्यता प्राप्त है। मराठा समुदाय का कहना है कि वे भी कुणबी के रूप में माने जाएं, और उन्हें भी OBC के अंतर्गत शिक्षा और रोजगार में आरक्षण का लाभ मिले। नमस्कार, आप देख रहे हैं AIRR न्यूज़।
मराठा समुदाय द्वारा आरक्षण की मांग का इतिहास काफी पुराना है, लेकिन इसे गति मिली 2016 में, जब एक मराठी लड़की के साथ बलात्कार और बाद में उसकी हत्या हुई, और इसके विरोध में मराठा क्रांति मोर्चा ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन किए। इस मोर्चे ने न केवल आरक्षण की मांग की, बल्कि बलात्कार पीड़िता के लिए न्याय, दोषियों के खिलाफ कार्रवाई, और किसानों की मुश्किलों को दूर करने के लिए सरकार से अनुरोध किया।
इसके बाद 2017 में, महाराष्ट्र सरकार ने एन.जी. गायकवाड आयोग की स्थापना की, जिसका काम था कि मराठा समुदाय को आरक्षण देने की योग्यता का मूल्यांकन करे। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में मराठा समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (SEBC) के रूप में शामिल करने की सलाह दी। इसके बाद, 2018 में, महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग अधिनियम बनाया गया, जिसने मराठा समुदाय को शिक्षा और रोजगार में 16% का आरक्षण दिया।
लेकिन इस अधिनियम को भी चुनौती दी गई, और इसे सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में असंवैधानिक घोषित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मराठा समुदाय को SEBC के रूप में मानना गलत है, क्योंकि वे न तो सामाजिक रूप से पिछड़े हैं, और न ही शैक्षणिक रूप से। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि मराठा आरक्षण से राज्य में कुल आरक्षण का प्रतिशत 50% से अधिक हो जाता है, जो कि 1992 के इंदिरा साहनी मामले में निर्धारित सीमा का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, मराठा समुदाय के कई नेता और कार्यकर्ताओ ने अपनी मांग को दोहराया, और कहा कि वे कुणबी जाति के रूप में माने जाएं, और उन्हें OBC के अंतर्गत आरक्षण मिले। इसी मांग के लिए, मराठा आरक्षण के एक्टिविस्ट मनोज जरंगे-पाटिल ने 4 फरवरी से अनशन शुरू किया, और उन्होंने सरकार से मांग की कि वे उन मराठा परिवारों को कुणबी प्रमाणपत्र दे, जो पहले से ही कुणबी समुदाय के रूप में स्थापित हैं, जबकि यह मांग उन लोगों की है, जो मराठा समुदाय के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन उनके पास कुणबी प्रमाणपत्र नहीं हैं। उनका कहना है कि वे अपने रक्त संबंधियों या सगे-सोयरे के आधार पर कुणबी प्रमाणपत्र प्राप्त कर सकते हैं, जो कि 2004 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा जारी एक आदेश के अनुसार है। लेकिन इस आदेश को लागू नहीं किया गया है, और इसके कारण उन्हें OBC के अंतर्गत आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
मनोज जरंगे-पाटिल ने अपने अनशन के दौरान कहा कि उन्हें मराठा आरक्षण के खिलाफ किसी भी राजनीतिक दल या वर्ग का विरोध नहीं है, बल्कि वे बस अपने हक की मांग कर रहे हैं। उन्होंने खासकर OBC नेता और मंत्री छगन भुजबल को चुनौती दी, और कहा कि अगर वे मराठा आरक्षण के रास्ते में बाधा डालते हैं, तो वे मंडल आयोग को चुनौती देंगे। बता दे कि मंडल आयोग ने ही 1990 में OBC को 27% का आरक्षण देने की सिफारिश की थी, जो कि बाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मान्यता प्राप्त हुई थी।
मनोज जरंगे-पाटिल का कहना है कि वे मंडल आयोग को चुनौती देने के लिए तैयार हैं, क्योंकि उनका मानना है कि OBC की सूची में कई ऐसी जातियां हैं, जो वास्तव में पिछड़ी नहीं हैं, और आरक्षण का गलत फायदा उठा रही हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने आप को OBC के रूप में स्थापित करने के लिए एक नए आयोग की जरूरत है, जो उनकी आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति का विश्लेषण करे।
मनोज जरंगे-पाटिल के अनशन का असर राजनीतिक दलों पर भी पड़ा है, जो मराठा आरक्षण के मुद्दे को अपने फायदे के लिए उठा रहे हैं। भाजपा ने कहा कि वे मराठा आरक्षण का समर्थन करते हैं, और उन्होंने शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की सरकार को इस मुद्दे पर गंभीरता से काम करने की आग्रह किया। शिवसेना ने कहा कि वे मराठा आरक्षण को बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं, और उन्होंने केंद्र सरकार से इसे अनुच्छेद 342 (ए) के तहत राष्ट्रीय महत्व का मुद्दा बनाने की मांग की। एनसीपी ने कहा कि वे मराठा आरक्षण के लिए संविधान संशोधन की मांग कर रहे हैं, जो कि 50% की सीमा को तोड़ सके। कांग्रेस ने कहा कि वे मराठा आरक्षण को न्यायिक रूप से लड़ने के लिए तैयार हैं, और उन्होंने भाजपा को इस मुद्दे पर दोहरी भाषा बोलने का आरोप लगाया।
इस प्रकार, मराठा आरक्षण का मुद्दा महाराष्ट्र के राजनीतिक, सामाजिक और न्यायिक तनाव को बढ़ा रहा है, और इसका निराकरण आसान नहीं है। मराठा समुदाय को आरक्षण का अधिकार मिले या न मिले, लेकिन इसके पीछे की वास्तविक समस्या यह है कि भारत में शिक्षा और रोजगार के अवसरो के लिए सरकारी योजनाओं और नीतियों का अभाव है, जो उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में मदद कर सकें। आरक्षण केवल एक आसरा है, जो उन्हें बराबरी का अवसर देने का दावा करता है, लेकिन वास्तव में वे अपनी क्षमता और योग्यता के आधार पर आगे बढ़ना चाहते हैं।
इसलिए, मराठा आरक्षण का मुद्दा एक गहरी सामाजिक और शैक्षणिक समस्या को दर्शाता है, जिसका समाधान केवल आरक्षण से नहीं हो सकता है। इसके लिए, सरकार को उनकी आवश्यकताओं और अक्षमताओं को समझना होगा, और उन्हें उचित शिक्षा, प्रशिक्षण, रोजगार और आर्थिक सहायता प्रदान करनी होगी। इसके साथ ही, समाज को भी उनके प्रति सकारात्मक रवैया अपनाना होगा, और उन्हें अपना समान अधिकारी मानना होगा।
यह थी हमारी आज की खास रिपोर्ट, जिसमें हमने मराठा आरक्षण के मुद्दे को विस्तार से जाना। आशा है कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी, और आपको इस मुद्दे के बारे में एक नए दृष्टिकोण से सोचने का मौका मिला होगा। अगर आपके पास इस मुद्दे के बारे में कोई राय या सुझाव है, तो आप हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं। हम आपके विचारों को जानने के लिए उत्सुक हैं।
अगले कार्यक्रम में, हम आपको बताएंगे कि कैसे भारत ने अंतरिक्ष में एक नया इतिहास रचा, और कैसे इससे देश की गरिमा और गौरव बढ़ा। तब तक के लिए, नमस्कार, आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।
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