हाई कोर्ट जज ने पेश की मिसाल, पारदर्शी के साथ-साथ मानवतापूर्ण फैसला

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मध्य प्रदेश High Court judge सुजॉय पॉल ने अपने ट्रांसफर की सिर्फ इसलिए सिफारिश की थी क्योंकि अब उसी कोर्ट में उनका बेटा प्रैक्टिस करने लगा था जिसमें वो फैसला सुनाते थे…उन्होंने हितों में टकराव का हवाला देते हुए ट्रांसफर की मांग की थी…यानि खुद सिस्टम में बैठे जज भी इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि जनता को पारदर्शी और उचित न्याय मिले जिसकी हर किसी को दरकार है…कई बार वो अपने फैसलों से बड़ी मिसाल भी पेश करते हैं…साल 2022 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के जस्टिस दिनेश कुमार सिंह ने एक ऐसा फैसला सुनाया था जिससे देश के लोगों में न्यायपालिका के प्रति सम्मान बढ़ गया…

  हाई कोर्ट जज ने पेश की मिसाल, पारदर्शी के साथ-साथ मानवतापूर्ण फैसला

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जज सुजॉय पॉल ने अपने ट्रांसफर की सिर्फ इसलिए सिफारिश की थी क्योंकि अब उसी कोर्ट में उनका बेटा प्रैक्टिस करने लगा था जिसमें वो फैसला सुनाते थे…उन्होंने हितों में टकराव का हवाला देते हुए ट्रांसफर की मांग की थी…यानि खुद सिस्टम में बैठे जज भी इस

बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि जनता को पारदर्शी और उचित न्याय मिले जिसकी हर किसी को दरकार है…कई बार वो अपने फैसलों से बड़ी मिसाल भी पेश करते हैं…साल 2022 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के जस्टिस दिनेश कुमार सिंह ने एक ऐसा फैसला सुनाया था जिससे देश के लोगों में न्यायपालिका के प्रति सम्मान बढ़ गया…

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के जस्टिस दिनेश कुमार सिंह ने एक दलित छात्रा की योग्यता से प्रभावित होकर उसे दाखिले की फीस के लिए 15 हजार रुपये दिए थे…ये वो छात्रा थी जो आर्थिक तंगी के चलते फीस ना जमा कर पाने के कारण IIT में प्रवेश से वंचित रह गई थी…इसके साथ ही कोर्ट ने ज्वॉइंट एलोकेशन अथॉरिटी और IIT BHU को छात्रा को तीन दिन के अंदर एडमिशन देने का निर्देश दिया…साथ ही ये भी कहा कि यदि सीट ना खाली हो तो उसके लिए अलग से व्यवस्था की जाए…छात्रा आर्थिक कारणों से वह वकील तक नहीं कर सकी थी, जिस पर कोर्ट के कहने पर वकील सर्वेश दुबे और समता राव ने छात्रा का पक्ष कोर्ट के समक्ष रखने में सहयोग किया…जिससे साबित होता है कि अदलतों में बैठ जज न्याय दिलाने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं चाहे इसके लिए उन्हें अपनी जेब से ही क्यों ना मदद करनी पड़े…

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि छात्रा शुरू से ही मेधावी रही है…संस्कृति रंजन के 10वीं में 95.6 प्रतिशत  और 12वीं में 94 प्रतिशत अंक हासिल किए थे…वहीं JEE मेंस में उसने 92.77 प्रतिशत अंक प्राप्त करते हुए SC कैटेगरी में 2062वीं रैंक हासिल की…JEE एडवांस में उसे 1469वीं रैंक मिली थी…इसके बाद IIT BHU में उसे गणित और कंप्यूटर से जुड़े पांच वर्षीय कोर्स में सीट आवंटित की गई लेकिन आर्थिक कारणों के चलते छात्रा दाखिले के लिए तय समय तक आवश्यक 15 हजार रुपये की व्यवस्था नहीं कर सकी…इसके चलते उसे दाखिला नहीं मिला…छात्रा ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर दाखिला फीस के इंतजाम के लिए कुछ और समय की मांग की थी…जिसपर जस्टिस दिनेश कुमार सिंह ने ऐसा फैसला सुनाया जो एक नजीर बन गया जिससे अदालतों के प्रति गरीबों में सम्मान बढ़ गया…

छात्रा संस्कृति रंजन ने अपनी याचिका में कहा था कि उसके पिता की किडनी खराब है…हफ्ते में उनका दो बार डायलिसिस होता है…पिता की बीमारी और कोविड के चलते उसके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई है इसलिए वो समय पर फीस नहीं जमा कर सकी…उसने फीस के इंतजाम के लिए ज्वॉइंट एलोकेशन अथॉरिटी को पत्र लिखकर समय की मांग की लेकिन उसके पत्र का कोई जवाब नहीं मिला…फिर उसे कोर्ट की शरण लेनी पड़ी जिसके बाद कोर्ट ने छात्रा के शैक्षिक रिकॉर्ड को देखते हुए कोर्ट ने ये फैसला सुनाया साथ ही जस्टिस दिनेश कुमार सिंह ने छात्रा को 15 हजार रुपये दिए ताकि उसकी पढ़ाई में कोई विघ्न न पड़े…कोर्ट के इस फैसले से जहां छात्रा की आंखे नम हो गईं वहीं उसे अपने उज्ज्वल भविष्य की किरणें दिखाई देने लगीं…

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