साइबेरिया में क्यों जिंदा होने लगे लाखों साल से दबे पुराने जर्म्स, ये महामारी का संकेत है या कोई उथल-पुथल?
जब भी हम साइबेरिया की बात करते हैं तो सबसे पहले यही दिमाग में आता है दुनिया का सबसे ठंडा इलाका…ओय्म्याकोन शहर में तो −71.2 डिग्री सेंटीग्रेड तक का न्यूनतम तापमान देखा जा चुका है…जिसके आधार पर इसे विश्व का सबसे ठंडा शहर होने का ख़िताब मिला है…यानि यहां पर गर्मी की कोई जगह नहीं है…लेकिन अब ऐसा नहीं है…ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते गर्मी ने साइबेरिया में भी अपना ठिकाना तलाश करना शुरू कर दिया है…जो एक बड़े खतरे का संकेत भी हो सकता है…हम ऐसा क्यों कह रहे हैं और इसके पीछे का कारण क्या है…आज हम अपने इस वीडियो में इसी पर विस्तार से चर्चा करेंगे…
हर ठंडे इलाके की तरह साइबेरिया में भी पर्माफ्रॉस्ट पाए जाते हैं…जिनपर तापमान के बदलने का असर दिख रहा है…करोड़ों साल से पर्माफ्रॉस्ट में दबे प्राचीन रोगाणु अब बाहर आ रहे हैं क्योंकि ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण पर्माफ्रॉस्ट की बर्फ पिघल रही है…ये रोगाणु बेहद खतरनाक साबित हो सकते हैं जो इकोसिस्टम को प्रभावित करने के साथ-साथ बिगाड़ भी सकते हैं…
हाल ही में साइबेरिया में हुए एक अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से लाखों सालों से दबे हुए रोगाणु पर्माफ्रॉस्ट से बाहर आने लगे हैं…इनमें से 1 प्रतिशत वो हैं जो आज के इकोसिस्टम के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकते हैं…जो साइबेरिया के साथ-साथ पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी है…
पर्माफ्रॉस्ट बर्फ से बंधी मिट्टी, बजरी और रेत का मिश्रण होता है…यह आर्कटिक के इलाकों और अलास्का, ग्रीनलैंड, रूस, चीन, उत्तरी यूरोप और पूर्वी यूरोप के कुछ हिस्सों में पृथ्वी की सतह पर या उसके नीचे पाया जाता है…जब पर्माफ्रॉस्ट बनता है तो बैक्टीरिया और वायरस जैसे सूक्ष्म जीव इसके अंदर फंस जाते हैं…ये हजारों और लाखों साल तक बिना कोई हरकत किए जीवित रह सकते हैं…लेकिन जैसे ही गर्मी बढ़ती है इनमें मेटाबॉलिक प्रक्रिया शुरू हो सकती है जो इन निष्क्रिय रोगाणुओं को दोबारा सक्रिय और दोबारा बाहर आने में मदद करती है…
पर्माफ्रॉस्ट से बाहर आने वाले कुछ रोगाणुओं में बीमारी पैदा करने की भी क्षमता होती है…जो पहले भी अपना प्रकोप दिखा चुके हैं…2016 में साइबेरिया में एंथ्रेक्स के प्रकोप से हजारों बारहसिंगों की मौत हो गई थी और दर्जनों लोग प्रभावित हुए थे…वैज्ञानिकों ने इसके लिए पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने को जिम्मेदार ठहराया था…ये रोगाणु एक संभावित खतरा पैदा करते हैं क्योंकि आज का इंसान या धरती पर दूसरे जीवित प्राणी इनके संपर्क में पहले नहीं आए थे…अगर रोगाणु लंबे समय से बैक्टीरिया इंसान या जानवरों के साथ रह रहे हों तो रोगाणुओं और इनके बीच कुछ सह-विकास की उम्मीद कर सकते हैं जो इकोसिस्टम के लिए रोगाणुओं का खतरा कम कर देता है…लेकिन अगर हमारे सामने पर्माफ्रॉस्ट पिघलने के बाद अतीत से आया कोई रोगाणु हमला करे तो खतरा बढ़ जाता है…
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