मुगल बादशाह शाहजहां अपनी बेगम अर्जुमंद बानो यानि मुमताज से बेइंतहा मोहब्बत करता था। इतिहासकार इनायत ख़ान के मुताबिक मुगल बादशाह शाहजहां की सभी खुशियां मुमताज महल पर ही केंद्रित थी, इस हद कि दूसरी पत्नियों के लिए उस प्यार का एक हज़ारवां हिस्सा भी नहीं था जो मुमताज़ के लिए था।
बेहद चर्चित् क़िताब ‘द ग्रेट मुग़ल्स’ के लेखक बैम्बर गैस्कॉइन लिखते हैं कि शाही फ़रमान के मसौदों पर भी मुमताज की मुहर लगती थी। यहां तक कि मुगल सत्ता से जुड़े राजनीतिक मसलों पर भी शाहजहां अक्सर मुमताज से राय लिया करता था।
बता दें कि जंग के दौरान भी शाहजहां अपने साथ मुमताज को ले जाया करता था। दक्षिण भारत में खान जहां लोदी के विद्रोह को दबाने के लिए शाहजहां ने बुरहानपुर के लिए कूच किया। इन दिनों मुमताज गर्भवती थी बावजूद इसके शाहजहां उन्हें अपने साथ आगरा से 787 किमी दूर धौलपुर, ग्वालियर, मारवाड़ सिरोंज, हंदिया होता हुआ बुरहानपुर ले गया। सैन्य अभियान के तहत की गई इस लंबी यात्रा की वजह गर्भवती मुमताज बुरी तरह से थक गई थी, लिहाजा आधी रात को ही बुरहानपुर में मुमताज को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई।
कहा जाता है कि जब मुमताज प्रसव पीड़ा से कराह रही थीं, तब शाहजहां दक्षिण के विद्रोह को दबाने की रणनीति बना रहा था। मुमताज की हालत गंभीर होने की सूचना मिलने के बावजूद भी वह उनसे मिलने नहीं गया बल्कि दाईयों को भेजने के निर्देश दिए।
मंगलवार की सुबह से बुधवार की आधी रात तक तकरीबन 30 घंटे की लंबी प्रसव पीड़ा झेलने के बाद मुमताज ने बेटी गौहर आरा को जन्म दिया। इस बेटी के जन्म के बाद मुमताज का शरीर ठंडा पड़ने लगा और अत्यधिक रक्तस्राव के चलते वह तड़प रही थी।
शाहजहां को कई संदेश भेजे गए लेकिन वह लौटकर नहीं आया। आधी रात के बाद शाहजहां ने खुद ही हरम में जाने का फैसला किया। जब शाहजहां हरम में पहुंचा तब उसने मुमताज को हकीमों से घिरा हुआ पाया। मुमताज तड़प रही थीं और मौत के बिल्कुल करीब थीं। शाहजहां के हरम में पहुंचते ही शाही हकीम को छोड़कर अन्य सभी लोग बाहर चले गए। शाहजहां की आवाज सुनकर मुमताज ने आंखें खोली, उनमें आंसू भरे हुए थे। इसके बाद शाहजहां की गोद में मुमताज की मौत हो गई। 16 जून, 1631 को जब मुमताज की मौत हुई तब उनके गर्भ से 14वें बच्चे का जन्म हुआ था। शाहजहां और मुमताज से 13 बच्चे हुए, मुमताज 19 साल में 14 बार गर्भवती हुईं।
शाहजहां अपनी बेगम मुमताज को बुरहानपुर में ही दफ़ना कर आगरा चला आया। जून 1969 में ‘द मार्ग’ मैगज़ीन में छपे लेख के मुताबिक मुमताज की मौत बाद शाहजहां ने पूरे दो साल तक मातम मनाया था। इस दौरान शाहजहां ने शाही लिबास, शाही भोजन और शाही जलसे से दूरी बना ली थी। मतलब साफ है, मुमताज की मौत के बाद शाहजहां के जीवन में खालीपन आ गया था लिहाजा उसने शाही जलसे और संगीत से खुद को दूर कर ही लिया था, साथ ही शाही भोजन करना भी छोड़ दिया था।
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