लोकसभा चुनाव-2024: विपक्ष की INDIA पर हमेशा भारी पड़ेगा पीएम मोदी का NDA, जानिए कैसे?

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दोस्तों, ये बात हम सभी जानते हैं कि साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष ने अपनी चुनावी तैयारियां तेज कर दी हैं। जहां सत्ता पक्ष की तरफ से पीएम मोदी की अगुवाई वाले एनडीए में छोटे-बड़े कुल 39 राजनीतिक पार्टियां शामिल हैं वहीं विपक्ष के इंडिया में अभी तक 26 राजनीतिक दल शामिल हो चुके हैं, हांलाकि समय के मुताबिक यह संख्या घट बढ़ भी सकती है।

सत्ता पक्ष और विपक्ष की इन राजनीतिक गठजोड़ का सीधा मतलब है, किसी एक को सत्ता से बेदखल करना और फिर खुद सत्ता पर काबिज होना। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या विपक्षी दल मिलकर पीएम मोदी की अगुवाई वाले राजनीतिक संगठन को हरा पाएंगे? हम इस स्टोरी में इसी प्रश्न का हल ढूढंने की कोशिश करेंगे।  

आंकड़ों के मुताबिक बीजेपी का सबसे मजबूत पक्ष क्या है?

एक ऐसा आंकड़ा जिसके मुताबिक लोकसभा चुनाव-2024 के पहले ही पीएम मोदी की एनडीए विपक्ष की इंडिया के लिए कड़ी चुनौती के समान है। इस पहली चुनौती से निबटने के बाद ही विपक्ष को सत्ता के बारे में सोचने का अधिकार बनता है।

जी हां, द प्रिन्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी ने कुल 105 सीटों पर 3 लाख से ज्यादा मतों के अंतर से जीत हासिल की थी। वहीं साल 2019 के चुनाव में 2 लाख मतों से चुनाव जीतने वाले 236 सांसदों में से 164 केवल बीजेपी से थे। 4 लाख से ज्यादा वोट पाकर चुनाव जीतने वाले बीजेपी प्रत्याशियों की संख्या कुल 44 थी। वहीं बीजेपी के 15 ऐसे सांसद थे जिन्होंने 5 लाख से ज्यादा मतों से विजयश्री हासिल की थी। कुल मिलाकर ये आंकड़े यही कहते हैं कि तकरीबन 105 सीटों पर बीजेपी को हराना नामुमकिन है।

बीजेपी का दूसरा मजबूत पक्ष

यह गौर करने वाली बात है कि साल 2024 से पहले ही बीजेपी ने छोटे दलों को तरजीह देना शुरू कर दिया है क्योंकि कर्नाटक में मिली हार से सबक लेकर बीजेपी कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती। बतौर उदाहरण पूर्वांचल में राजभर समाज की अगुवाई करने वाले ओमप्रकाश राजभर तथा निषादों के बड़े नेता संजय निषाद ने पाला बदलकर बीजेपी का दामन थाम लिया है। साथ ही सपा के एक कद्दावर विधायक दारा सिंह चौहान ने बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली है। बताया जा रहा है कि योगी मंत्रिमंडल विस्तार में जल्द ही ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान को मंत्री का पदभार दिया जा सकता है। वहीं बिहार में चिराग पासवान और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के उपेंद्र कुशवाहा, विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश साहनी और हम पार्टी के जीतन राम मांझी एनडीए में शामिल हो चुके हैं। दरअसल “बीजेपी के पास छोटी पार्टियों को जोड़ने का एक बड़ा फ़ायदा ये है कि छोटे दलों को कंट्रोल करना बड़े दलों की तुलना में अधिक आसान है। बदले में इन पार्टियों को राष्ट्रीय प्लेटफ़ॉर्म मिलता है।”

बसपा सुप्रीमो मायावती का स्टैंड बीजेपी के हक में…

मायावती ने स्पष्ट कर दिया है कि वह विपक्ष की गठबन्धन का हिस्सा नहीं बनेंगी और आगामी लोकसभा चुनाव अपने दम पर लड़ेंगी। ऐसे में चुनाव के वक्त बहुजन समाज पार्टी का बेस वोट दलित और मुस्लिम कहीं न कहीं विपक्षी दलों को ही नुकसान पहुंचाने का काम करेगी, जो कि बीजेपी के हक में होगा। इससे पूर्व भी मायावती ने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रप​ति के चुनाव में बीजेपी समर्थित उम्मीदवारों द्रौपदी मुर्मू और जगदीप धनखड़ का ही समर्थन किया था।

जगनमोहन रेड्डी का बीजेपी की ओर झुकाव

आंध्र प्रदेश के युवा और तेजतर्रार सीएम जगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस भले ही पीएम मोदी की अगुवाई वाली एनडीए में शामिल नहीं है, लेकिन कई मौकों पर पार्टी केंद्र सरकार की नीतियों का खुला समर्थन करती रही है। इस बता के कम ही आसार है कि जगन मोहन रेड्डी विपक्ष का हिस्सा बनेंगे। साल 2019 में भी टीडीपी के चंद्रा बाबू नायडू ने गृहमंत्री अमित शाह से कई बार मुलाकात की। हांलाकि दक्षिण भारत में इन दोनों पार्टियों को लेकर बीजेपी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। 

कर्नाटक में कांग्रेस की मुख्य प्रतिद्वंदी जनता दल सेक्यूलर और बीजेपी का गठबंधन

कर्नाटक में जनता दल सेक्युलर पार्टी को कांग्रेस की मुख्य प्रतिद्वंदी के रूप में देखा जाता है। अभी हाल में ही बीजेपी के सीनियर लीडर बीएस येदियुरप्पा ने कर्नाटक में बीजेपी और जेडीएस के एक साथ चुनाव लड़ने के संकेत दिए थे। ऐसे में यह लाजिमी है कि लोकसभा चुनाव के दौरान जेडीएस और बीजेपी मिलकर कर्नाटक में बड़ा उलटफेर कर सकते हैं।

गौरतलब है कि उपरोक्त सभी आंकड़े और तथ्य ऐसे हैं जो कहीं न कहीं विपक्ष को कमजोर साबित करते नजर आ रहे हैं। ऐसे में एनडीए को सत्ता से बेदखल करने के लिए विपक्षी दलों को इन चुनौतियों से निबटना ही होगा।

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