मैसूरु में मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे विश्वनाथ ने मैसूरु पैलेस बोर्ड के एक अधिकारी की ओर से कर्नाटक सूचना आयोग के उस फैसले को चुनौती दिए जाने पर चिंता व्यक्त की, जिसमें कहा गया था कि बोर्ड आरटीआइ अधिनियम के दायरे में आता है।उन्होंने आरोप लगाया कि पैलेस बोर्ड में बड़े पैमाने पर कुप्रबंधन, अवैध गतिविधियों और वित्तीय हेराफेरी की मीडिया रिपोर्टों के बावजूद, सरकार चुप रही है।
उन्होंने कहा कि वे गुरुवार को बेंगलूरु में होने वाली आगामी दशहरा हाई पावर कमेटी की बैठक के दौरान इस मुद्दे को उठाएंगे। राज्य सरकार ने मैसूरु पैलेस (अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम लागू किया था और महल के प्रमुख हिस्सों पर कब्जा कर लिया था। इसके परिसर में मंदिरों को मुजराई विभाग के प्रबंधन के तहत रखा था। सरकार ने मैसूरु पैलेस के लिए एक प्रशासनिक बोर्ड का गठन किया था, जिसके अध्यक्ष राज्य के मुख्य सचिव और कार्यकारी अधिकारी के रूप में मैसूर के डिप्टी कमिश्नर थे। सरकार ने कर्नाटक प्रशासनिक सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी को प्रशासनिक अधिकारी के रूप में नियुक्त करने का आदेश जारी किया था, लेकिन अभी तक पैलेस बोर्ड में ऐसी कोई नियुक्ति नहीं की गई है।
मैसूरु पैलेस अधिनियम लागू होने के बाद अर्जित अमूल्य ऐतिहासिक कलाकृतियां, हथियार, उपकरण, आभूषण आदि भी सरकारी संरक्षण में आ गए, फिर भी मैसूरु पैलेस बोर्ड एक सरकारी इकाई के बजाय एक ‘स्वायत्त या स्वतंत्र’ संस्था के रूप में कार्य कर रहा है।उन्होंने सवाल किया, यदि मैसूरु पैलेस बोर्ड एक सरकारी संस्था है, तो इसके अधिकारी पिछले 13-14 वर्षों से जनता द्वारा मांगी गई जानकारी देने से क्यों इनकार कर रहे हैं। सरकार को चाहिए कि इस मामले का तुरंत समाधान करे।
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