बीजेपी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में क्यों हो रही देरी

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    भाजपा की राष्ट्रीय परिषद में सर्वाधिक 75 सदस्यों का कोटा उत्तर प्रदेश के पास है। लेकिन, यूपी में जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में वैचारिक शुद्धता का मामला इस कदर तूल पकड़ा है कि प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव भी लटक गया। किसी तरह से पार्टी ने असंतुष्टों को मनाते हुए बीते 16 मार्च को 98 में से 70 जिलाध्यक्षों के नामों की घोषणा की। जबकि यह काम जनवरी में ही हो जाना था। फ़िलहाल प्रदेश अध्यक्ष घोषित करना अभी बाक़ी है। एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि यूपी में पार्टी के तमाम विधायक और सांसद दूसरे दलों से आए हैं। सांसद और विधायक अपने चहेते को जिलाध्यक्ष बनाने की पैरवी कर रहे थे, लेकिन संगठन पदाधिकारियों का मत है कि जिलाध्यक्ष वही बनना चाहिए कि जिसकी निष्ठा संगठन के प्रति हो न कि व्यक्ति विशेष के प्रति। क्योंकि 2027 में चुनाव के वक्त टिकट कटने पर सांसद और विधायक पाला बदल सकते हैं, ऐसे में अगर उनकी मर्जी का जिलाध्यक्ष बना तो फिर उसकी वफादारी पर सवाल उठेंगे। ऐसे में वैचारिक शुद्धता और नामों पर सहमति बनाने के चक्कर में सूची में देरी हुई। राजस्थान से 25, असम से 23, बिहार से 60 नेता भाजपा के राष्ट्रीय परिषद के सदस्य बने हैं। राज्यों के आकार के हिसाब से राष्ट्रीय परिषद का कोटा है।

    इन राज्यों में हो गए संगठन चुनाव

    राजस्थान, असम, गोवा, छत्तीसगढ़, बिहार सहित 14 राज्यों में संगठन चुनाव हो गए हैं। कुल 36 में से 18 राज्यों में चुनाव होना जरूरी है। इस प्रकार यूपी, एमपी सहित चार प्रमुख राज्यों में चुनाव हो जाएंगे तो राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल का गठन का रास्ता साफ हो जाएगा।

    क्या कहता है भाजपा का संविधान

    भाजपा के संविधान में धारा 19 में राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की व्यवस्था है। राष्ट्रीय परिषद और प्रदेश परिषदों के सदस्यों को लेकर एक निर्वाचक मंडल बनेगा। यही निर्वाचक मंडल राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में भाग लेगा। दावेदार के पक्ष में निर्वाचक मंडल में से कम से कम 20 सदस्यों का समर्थन जरूरी होगी। ये सदस्य पांच अलग-अलग राज्यों के होने चाहिए। राष्ट्रीय अध्यक्ष के दावेदार को कम से कम चार अवधियों तक सक्रिय सदस्य और न्यूनतम 15 वर्ष तक पार्टी का प्राथमिक सदस्य रहना अनिवार्य है।

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