न्यायपालिका में क्या है ‘अंकल सिंड्रोम’? जिसपर छिड़ा है घमासान

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देश के हर तबके को उचित न्याय मिले इसके लिए न्यायपालिका की ओर से हर संभव प्रयास किया जाता है…हितों के टकराव का हवाला देते हुए हाईकोर्ट के जजों का तबादला किया जाता है…और तो और कुछ जज खुद से ही आगे आकर अपने ट्रांसफर की मांग कर रहे हैं…दूसरे राज्य में पोस्टिंग करवा रहे हैं…जो ये साबित करता है कि लोगों को न्याय दिलाने वाली हमारी न्यायपालिका का आधार बहुत मजबूत है…इन सबके बावजूद हमेशा से ही अदालतों में न्यायाधीशों और दूसरे प्रमुख पदों पर नियुक्तियों को लेकर विवाद की खबरें आती रहती हैं…बीते लंबे वक़्त से यह बहस समय-समय पर उठती रहती है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जज चुने जाने की प्रक्रिया में भयंकर भाई-भतीजावाद है जिसे न्यायपालिका में ‘uncle syndrome‘ कहते है…यानी ऐसे लोगों को जज चुने जाने की संभावना ज़्यादा होती है जिनकी जान-पहचान के लोग पहले से ही न्यायपालिका में ऊंचे पदों पर हैं या यूं कहें कि कॉलेजियम का हिस्सा होते हैं…जिसको लेकर पिछले साल केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू ने भी सवाल उठाए थे…

देश के हर तबके को उचित न्याय मिले इसके लिए न्यायपालिका की ओर से हर संभव प्रयास किया जाता है…हितों के टकराव का हवाला देते हुए हाईकोर्ट के जजों का तबादला किया जाता है…और तो और कुछ जज खुद से ही आगे आकर अपने ट्रांसफर की मांग कर रहे हैं…दूसरे राज्य में पोस्टिंग करवा रहे हैं…जो ये साबित करता है कि लोगों को न्याय दिलाने वाली हमारी न्यायपालिका का आधार बहुत मजबूत है…इन सबके बावजूद हमेशा से ही अदालतों में न्यायाधीशों और दूसरे प्रमुख पदों पर नियुक्तियों को लेकर विवाद की खबरें आती रहती हैं…बीते लंबे वक़्त से यह बहस समय-समय पर उठती रहती है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जज चुने जाने की प्रक्रिया में भयंकर भाई-भतीजावाद है जिसे न्यायपालिका में ‘अंकल सिंड्रोम’ कहते है…यानी ऐसे लोगों को जज चुने जाने की संभावना ज़्यादा होती है जिनकी जान-पहचान के लोग पहले से ही न्यायपालिका में ऊंचे पदों पर हैं या यूं कहें कि कॉलेजियम का हिस्सा होते हैं…जिसको लेकर पिछले साल केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू ने भी सवाल उठाए थे…

कॉलेजियम भारत के चीफ़ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के चार सबसे वरिष्ठत जजों का एक समूह है…ये पांच लोग मिलकर तय करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में कौन जज होगा…ये नियुक्तियां हाई कोर्ट से की जाती हैं और सीधे तौर पर किसी अनुभवी वकील को भी हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया जा सकता है…हाई कोर्ट में भी जजों की नियुक्ति कॉलेजियम की सलाह से होती है जिसमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस, हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस और राज्य के राज्यपाल शामिल होते हैं…लेकिन इसको लेकर ये कहा जा रहा है या यूं कहें कि आरोप लगाया जा रहा हैकि जिन जजों को कॉलेजियम के सदस्य जानते हैं उन्हीं के नामों की सिफारिश की जाती है…

आपको बता दें कि भारत के विधि आयोग ने अपनी 230वीं रिपोर्ट में उच्च न्यायालयों में ‘अंकल न्यायाधीशों’ की नियुक्ति के मामले का उल्लेख किया था…जिसमें कहा गया था कि जिन न्यायाधीशों के परिजन उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस कर रहे हैं उन्हें उस उच्च न्यायालय में नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए…जजों की नियुक्तियों के साथ-साथ ट्रांसफर में भी इस बात का पूरी तरह से ध्यान रखा जाना चाहिए…भाई-भतीजावाद को पूरी तरह से दरकिनार किया जाना चाहिए…

उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति ज्ञापन के तहत की जाती है जिसे 1993 और 1998 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के बाद निर्धारित किया गया है…इसके तहत उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव शुरू करने की जिम्मेदारी है…न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में नियुक्तियों का अधिकार उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पास है…संविधान के अनुच्छेद 217 के तहत एक व्यक्ति जो किसी उच्च न्यायालय में या दो या दो से अधिक न्यायालयों में लगातार 10 साल तक वकील रहा हो वो भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए विचार किए जाने के योग्य है…इस प्रकार संवैधानिक प्रावधान के तहत मुख्य न्यायाधीश बार के न्यायाधीशों को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश कर सकते हैं… 

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