तस्वीर आंखों के सामने आती है… कांप उठती है रूह | The picture of that place comes in front of my eyes… my soul trembles

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    श्वेता ने बताया कि उनके साथ संगठन की कार्यकारिणी सदस्य बिमला चांडक और सलाहकार कृष्ण डागा भी थीं, जिन्होंने इस यात्रा की पूरी रूपरेखा तैयार की थी। इस समूह में तीन महिलाएं जयपुर, एक पुणे और बाकी बेंगलूरु से थीं। कश्मीर की वादियों में सुकून और खुशी तलाशने निकली इन महिलाओं को नहीं मालूम था कि डर में साए में उन्हें यात्रा छोड़कर बीच में ही लौटना पड़ेगा। ये महिलाएं बुधवार शाम श्रीनगर से बेंगलूरु लौटीं।

    बेहद असुरक्षित थी वह जगह

    श्वेता के मुताबिक पहलगाम की वो जगह, जहां हमला हुआ बेहद असुरक्षित थी। वहां पहुंचने का रास्ता इतना कठिन था कि सिर्फ घोड़े से ही जाया जा सकता था। अगर कोई भागना भी चाहे, तो बिना घोड़े के नीचे उतरना नामुमकिन था। न प्राथमिक उपचार की सुविधा थी, न ही कोई और व्यवस्था।वापस बेंगलूरु लौटने के बाद भी वो डर उनके चेहरों से नहीं उतरा। कश्मीर की खूबसूरती, जिसे वो अपने दिल में समेटने गई थीं, अब उनकी आंखों के सामने बार-बार उस भयावह मंजर को ला रही थी। श्वेता कहती हैं कि जब-जब उस जगह की तस्वीर आंखों के सामने आती है, रूह कांप उठती है। पल भर में कितनों की जिंदगियां खत्म हो गईं, कितने परिवार बिखर गए। 15 महिलाओं की जो यात्रा खुशियों की तलाश में शुरू हुई थी, डर और सबक के साथ खत्म हुई। लेकिन श्वेता और उनकी सहेलियों की सलामती ने उन्हें जिंदगी की कीमत समझा दी। वो कहती हैं, शायद हमारी उम्र बाकी थी और हमारे अच्छे कर्म हमारे साथ थे। श्वेता कहती हैं कि सरकार को चाहिए कि ऐसी जगहों पर पूरी सुरक्षा सुनिश्चित करे, ताकि पर्यटक बिना डर के वहां जा सकें।

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