जानिए क्या है मू-ए-मुकद्दस की चोरी से जुड़ा मामला, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में भड़क उठे थे दंगे

0
137

सबसे पहले हम आपको बताते हैं कि पवित्र मू-ए-मुकद्दस यानि पैगम्बर मुहम्मद की दाढ़ी का बाल भारत आया कैसे? जी हां, दोस्तों यह 17वीं सदी की बात है सय्यद अब्दुल्ला मदीना से भागकर भारत आते समय अपने साथ तीन पवित्र चीजें लेकर आए उनमें हजरत अली की पगड़ी, उनके घोड़े की जीन और मू-ए-मुकद्दस यानी पैगम्बर मुहम्मद की दाढ़ी का बाल शामिल है। अब सवाल यह उठता है कि यह मू-ए-मुकद्दस कश्मीर कैसे पहुंचा? इसके पीछे भी एक बड़ी दिलचस्प कहानी है। हिन्दुस्तान आने के बाद सैय्यद अब्दुला ने इसे बीजापुर की एक मस्जिद में रखवा दिया था लेकिन सय्यद अब्दुल्ला की मौत के बाद उनके बेटे सय्यद हामिद ने मू-ए-मुकद्दस कश्मीर के एक रईस कारोबारी नूरुद्दीन को बेच दिया था।

कहा जाता है कि जब इस बात की खबर मुगल बादशाह औरंगजेब को मिली तो उन्होंने नूरुद्दीन को गिरफ़्तार करके अवशेष को अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में रखवा दिया। यहां से इसे साल 1700 में कश्मीर भेजा गया, इसके बाद इस अवशेष को हज़रतबल दरगाह के खादिमों की निगहबानी में महफूज़ कर दिया। 

अब हम बात करते हैं साल 1963 में 27 दिसम्बर के रात की जब हज़रतबल दरगाह से मू-ए-मुकद्दस की रहस्यमय ढंग से चोरी हो गई। चूंकि यह घटना बहुत बड़ी थी इसलिए कुछ ही मिनटों में खबर आग की तरह फ़ैल गई। घण्टे के भीतर कुछ 50 हजार लोग काले झंडों के साथ दरगाह के सामने एकत्र हो गए। कई जगह गोली चलने की खबर आई, पूरा कश्मीर सुलग उठा।

कश्मीर की सरकार ने चोरों को पकड़वाने के लिए एक लाख रुपये का इनाम घोषित कर दिया। यहां तक कि पकड़वाने वाले को ताज़िंदगी सालाना 500 रूपये की पेंशन देने की पेशकश की गयी। बावजूद इसके लाल चौक पर लाखों की भीड़ एकत्र हो गई, जनता ने कश्मीर रेडियो स्टेशन जलाने तक की कोशिश, गोलीबारी में कुछ लोग घायल हुए, शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा। यहां तक कि राजनीतिक पार्टियों के कुछ नेताओं को पुलिस ने अरेस्ट भी कर लिया।

इस घटना के तीसरे दिन यानि 30 दिसम्बर को सदर-ए-रियासत डॉ. कर्ण सिंह, पंडित नेहरू और गुलजारी लाल नन्दा से मिलने के लिए दिल्ली पहुंचे। इस घटना को पाकिस्तानी मीडिया ने कुछ इस तरह से कवर किया कि पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में हालात खराब हो गए। 

पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में दंगे भड़क उठे जिसमें लगभग 400 लोग मारे गए। यहां तक कि यहां से हजारों हिन्दुओं ने भारत की ओर पलायन कर दिया। कराची में जिन्ना की मज़ार तक जुलस निकाला गया और इसे कश्मीरी मुसलमानों के खिलाफ साजिश बताया गया। इसका असर यह हुआ कि भारत के मुसलमानों में दहशत फैल गई।

इन्हीं घटनाक्रमों के बीच 4 जनवरी को शाम 5 बजे अचानक पता चला कि मू-ए-मुकद्दस फिर से अपनी जगह लौट चुका है। इसे किसने रखा और क्यों? इसका जवाब आज तक कोई नहीं दे पाया। इसी बीच लोगों ने सवाल उठाने शुरू किए कि कैसे पता चलेगा कि यही असली मू-ए-मुकद्दस है। 

इसकी जांच के लिए कश्मीर के सबसे बड़े संत मीराक़ शाह कशानी को बुलाया गया। कशानी ने 60 सेकेण्ड तक मू-ए-मुकद्दस को घूरकर देखा। आखिर में कशानी ने मू-ए-मुकद्दस पर मुहर लगा दी। अब कश्मीर में जश्न का माहौल था वहीं दूसरी तरफ नेहरू राहत की सांस ले रहे थे।

#theft  #Moo-e-Muqaddas #riots  #India  #Pakistan #Bangladeshriot #kashmir #ptnehru #drkarnsingh #HolyMoo-e-Muqaddas

SUBSCRIBE TO OUR NEWSLETTER.

Never miss out on the latest news.

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

RATE NOW

LEAVE A REPLY

We cannot recognize your api key. Please make sure to specify it in your website's header.

    null
     
    Please enter your comment!
    Please enter your name here