मुगल विद्वान अबुल फजल ने ‘अकबरनामा’ और ‘आइने अकबरी’ लिखकर खासी शोहरत पायी। इतना ही नहीं अबुल फजल अपनी विद्वता और वफादारी के दम पर अकबर के नवरत्नों में शामिल हो गया। लोग अबुल फजल को मुगल बादशाह अकबर का राइट हैंड कहने लगे थे। मुगल बादशाह अकबर राज्य के अधिकांश काम-काज में अबुल फजल से ही राय मशविरा करता था। उन दिनों सलीम मुगल साम्राज्य का बादशाह बनने के लिए संघर्ष कर रहा था, लेकिन उसकी आंखों में अबुल फजल बहुत ज्यादा खटकता था। मुगल बादशाह अकबर के प्रति अबुल फजल की वफादारी देखकर सलीम ने उसे अपने रास्ते से हटाने का निर्णय लिया। ऐसे में 1602 में दक्षिण से वापसी के मार्ग में जहांगीर ने अबुल फजल की हत्या के लिए ओरछा के राजा बीर सिंह देव बुन्देला के साथ मिलकर साजिश रची। आगरा आते समय अबुल फजल के रास्ते में बीर सिंह देव बुन्देला के सैनिक कवच पहनकर तलवार लहराते हुए पहुंचे। तभी एक राजपूत ने बर्छे से अबुल फजल पर इतनी तेजी से वार किया किया यह आर-पार हो गया। बावजूद इसके अबुल फजल की मृत्यु नहीं हुई थी, उनके शरीर से खून निकल रहा था। तभी वीर सिंह देव बुन्देला ने अपनी तलवार निकाली और एक झटके में अबुल फजल का सिर धड़ से अलग कर दिया। अबुल फजल की मृत्यु का अकबर को गहरा धक्का लगा, जिसके चलते अकबर ने खुद को तीन दिनों तक महल के अंदर बंद रखा। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि अकबर अपने वफादार अबुल फजल की हत्या की खबर सुनते ही बेहोश हो गया था और तीन दिनों तक रोता रहा। |
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हम सभी जानते हैं कि मुगल विद्वान अबुल फजल ने ‘अकबरनामा’ और ‘आइने अकबरी’ लिखकर खासी शोहरत पायी। इतना ही नहीं अबुल फजल अपनी विद्वता और वफादारी के दम पर अकबर के नवरत्नों में शामिल हो गया। लोग अबुल फजल को मुगल बादशाह अकबर का राइट हैंड कहने लगे थे। मुगल बादशाह अकबर राज्य के अधिकांश काम-काज में अबुल फजल से ही राय मशविरा करता था। उन दिनों सलीम मुगल साम्राज्य का बादशाह बनने के लिए संघर्ष कर रहा था, लेकिन उसकी आंखों में अबुल फजल बहुत ज्यादा खटकता था। परिणामस्वरूप वह मुगल बादशाह अकबर के बेटे जहांगीर के षड्यंत्र का शिकार हो गया। दरअसल सलीम यानि जहांगीर ने अबुल फजल की हत्या करवा दी। अब आप सोच रहें कि आखिर सलीम ने ऐसा क्यों किया?
यह घटना उन दिनों की है जब अकबर की शक्तियां कमजोर हो रही थीं, वो थक रहे थे। तब यह खबर तेजी से फैली कि अकबर के बेटे सलीम यानि जहांगीर ने बगावत कर दी है। इस दौरान सलीम के लोगों ने उसे भड़काया कि अकबर खुसरो को मुगल बादशाह बनाने की सोच रहा है, और अबुल फजल भी इस षड्यंत्र में शामिल है।
साल 1602 में जहांगीर को सूचना मिली कि अकबर ने अबुल फजल को मुगल दरबार में तुरन्त हाजिर होने के लिए पैगाम भेजा है। जहांगीर इस खबर से चिन्तित हो उठा था, इसलिए वह सोचने लगा कि किसी भी तरह से अबुल फजल को अकबर तक पहुंचने से रोका जाए। मुगल बादशाह अकबर के प्रति अबुल फजल की वफादारी देखकर सलीम ने उसे अपने रास्ते से हटाने का निर्णय लिया।
ऐसे में 1602 में दक्षिण से वापसी के मार्ग में जहांगीर ने अबुल फजल की हत्या के लिए ओरछा के राजा बीर सिंह देव बुन्देला के साथ मिलकर साजिश रची। आगरा आते समय अबुल फजल के रास्ते में बीर सिंह देव बुन्देला के सैनिक कवच पहनकर तलवार लहराते हुए पहुंचे। तभी एक राजपूत ने बर्छे से अबुल फजल पर इतनी तेजी से वार किया किया यह आर-पार हो गया। बावजूद इसके अबुल फजल की मृत्यु नहीं हुई थी, उनके शरीर से खून निकल रहा था। तभी वीर सिंह देव बुन्देला ने अपनी तलवार निकाली और एक झटके में अबुल फजल का सिर धड़ से अलग कर दिया।
अबुल फजल की मृत्यु का अकबर को गहरा धक्का लगा, जिसके चलते अकबर ने खुद को तीन दिनों तक महल के अंदर बंद रखा। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि अकबर अपने वफादार अबुल फजल की हत्या की खबर सुनते ही बेहोश हो गया था और तीन दिनों तक रोता रहा।
मुगल बादशाह जहांगीर अपनी आत्मकथा तुजुके जहांगीरी में लिखता है कि अबुल फजल की हत्या मैंने ही कराई। मेरा लक्ष्य केवल बादशाह बनना था ऐसे में जब अबुल फजल के बेटे से मिला तो मेरे मन में अपराध का बोध नहीं था। चौंकाने वाली बात यह है कि अबुल फजल का बेटा भी अपने पिता की मृत्यु के बाद जहांगीर का विश्वनीय बनकर उभरा।