क्या न्यायपालिका को कमज़ोर करता है ‘अंकल सिंड्रोम’?

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न्यायिक व्यवस्था किसी भी लोकतंत्र का आधार है…देश का ये वो सिस्टम है जो सुनिश्चित करता है कि हर किसी के साथ, चाहे उसकी सामाजिक स्थिति कुछ भी हो, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण व्यवहार किया जाए…न्यायपालिका कानून के शासन की संरक्षक है और ज़रूरी है कि वो ईमानदारी, स्वतंत्रता और निष्पक्षता के साथ काम करे…इन सबके बीच माना ये भी जाता है कि न्यायपालिका में भाई-भतीजावाद या ‘अंकल सिंड्रोम‘ की मौजूदगी पूरी व्यवस्था की विश्वसनीयता को कमजोर कर सकती है…और बार-बार इसको लेकर सवाल भी उठते रहे हैं…

हम सभी जानते हैं कि न्यायिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से संबंधित होना लॉ प्रैक्टिस में सफलता की गारंटी नहीं देता…कानूनी पेशे में सफलता शैक्षणिक योग्यता, कानूनी ज्ञान और अनुभव जैसे विभिन्न आयामों पर निर्भर करता है…कानूनी पेशे में सफल होने के लिए कड़ी मेहनत, समर्पण और दृढ़ता की आवश्यकता होती है ना कि न्यायिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से संबंधित होना…हालांकि मुद्दा कानूनी पेशे में सफलता का नहीं बल्कि न्यायपालिका में प्रमुख पदों पर व्यक्तियों की नियुक्ति का है…न्यायपालिका में न्यायाधीशों और दूसरे प्रमुख पदों की नियुक्ति योग्यता के आधार पर होनी चाहिए ना कि पारिवारिक या मित्रता वाले संबंधों के आधार पर…अगर इन पदों पर आवश्यक योग्यता और अनुभव की कमी वाले व्यक्तियों की नियुक्ति होती है तो परिणाम घातक हो सकते हैं…

भाई-भतीजावाद और ‘अंकल सिंड्रोम’ में न्यायपालिका की अखंडता को कमजोर करने की क्षमता है…ऐसे व्यक्तियों की नियुक्ति जो किसी विशेष पद के लिए योग्य या योग्य नहीं हैं, हितों के टकराव का कारण बन सकते हैं…ऐसा व्यक्ति अपने निर्णयों में निष्पक्ष नहीं हो सकता जो न्याय को बाधित करता है…इसी बात को ध्यान में रखते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जज सुजॉय पॉल ने अपने ट्रांसफर की गुजारिश की थी क्योंकि उनके बेटे ने भी उसी अदालत में प्रैक्टिस शुरू कर दी थी…जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने उनका ट्रांसफर तेलंगाना हाईकोर्ट कर दिया…इसका मतलब साफ है कि सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम भी इस बात को मानती है कि भाई-भतीजावाद या ‘अंकल  सिंड्रोम’ न्याय प्रक्रिया में बाधा बनती हैं…

एक निष्पक्ष न्याय व्यवस्था इस बात की गारंटी देती है कि यह किसी भी प्रकार के भाई-भतीजावाद और ‘अंकल सिंड्रोम’ से मुक्त होनी चाहिए…न्यायपालिका में न्यायाधीशों और दूसरे प्रमुख पदों पर नियुक्ति केवल योग्यता के आधार पर की जानी चाहिए…नियुक्ति की प्रक्रिया पारदर्शी, स्वतंत्र और किसी भी प्रकार के राजनीतिक प्रभाव से मुक्त होनी चाहिए तभी हम देश की जनता को एक निष्पक्ष न्याय व्यवस्था दे सकते हैं…इसके अलावा नियुक्ति प्रक्रिया में और जवाबदेही और निगरानी की जरूरत है…
भाई-भतीजावाद और ‘अंकल सिंड्रोम’ के मामलों की जांच करने और दंडित करने के लिए तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए…इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि न्यायिक प्रणाली अखंडता, स्वतंत्रता और निष्पक्षता के साथ संचालित होती है…न्यायिक प्रणाली को उस समाज को प्रतिबिंबित करना चाहिए जिसकी वह सेवा करती है…इसे अपनी नियुक्तियों में विविधता और समावेशिता को प्रोत्साहित करना चाहिए, साथ ही हाशिए पर रहने वाले और कम प्रतिनिधित्व वाले समुदायों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने पर भी ध्यान देना चाहिए…

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