क्या Karnataka सरकार के लिए ऐसा करना उचित है ?

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कुछ अन्य आकर्षक बिंदु जो निम्नलिखित है –

कानूनी रूप से संदिग्ध होना

प्रभावशाली समुदाय के लिए कोटे में वृद्धि

उप वर्गीकरण के बारे में विवाद

राष्ट्रीय नीति में असंगतता

प्रतिनिधित्व बनने पर उत्पन्न प्रभाव

समुदायों की पूरी ना होने वाली मांगों पर उत्पन्न अर्थात उभरता विरोध

हाल ही में भारत में आरक्षण नीति निरंतर चर्चा का विषय बनती रही है। इस नीति का उद्देश्य ऐतिहासिक रूप से वंचित समुदायों को उसी प्रकार के अवसर और प्रतिनिधित्व प्रदान करना है जिस प्रकार के उन्हें वर्तमान अर्थात हम कह सकते हैं कि बीते हुए कल में प्राप्त नहीं हो पाए थे।

कर्नाटक के मंत्री जैसी मधु स्वामी ने आरक्षण को 25% सुनिश्चित करने की घोषणा की। इसको सुनिश्चित करने के लिए मंत्री जी ने फरवरी महीने का समय लिया था परंतु अभी हालही में इन्होंने इसकी जानकारी हम दी है।

Karnataka की आरक्षण नीति में भिन्नता–

• यहां इस संदर्भ में मुसलमानों को 4% कोटे आरक्षण का खत्म कर दिया गया है –

सरकार में अभी जल्द ही अन्य पिछड़े वर्ग जैसे ओबीसी श्रेणी के अंतर्गत आने वाले मुसलमानों के लिए 4% कोटा खत्म करने का ऐलान किया है लेकिन ईसाई, जैन, सिख, बौद्ध और परिवर्तितu ईसाई पिछड़े वर्ग की श्रेणी में आज भी बने हुए हैं। 

इनमें विशेष रूप से कुछ मुख्य बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है जैसे–

• आरक्षण में वृद्धि

Karnataka सरकार द्वारा आरक्षण कोटा 50% से बढ़ाकर 56% कर दिया गया है जिसे बहुत ही हीन दृष्टि से देखा जा रहा है।

• आरक्षण का पुन:आवंटन

सरकार ने यह भी निर्णय लिया है कि मुसलमानों का 4% कोटा कालिका 2 फ़ीसदी और लिंगायत 2 फ़ीसदी को दिया जाएगा। इस परिणाम को इन समुदाय को खुश करने और आने वाले चुनाव में उनका समर्थन हासिल करने के प्रयास के रूप में देखा।

• दलित समुदायों का उप वर्गीकरण

इसी संदर्भ में कर्नाटक सरकार ने अनुसूचित जाति एससी श्रेणी केu तहत विभिन्न दलित समुदायों के लिए आंतरिक आरक्षण भी प्रारंभ करने के लिए चार उप श्रेणियां बनाई है। कर्नाटक में एससी को दिए गए 17% आरक्षण में से 6% एससी बाय 5 पॉइंट 5% ऐसी अदाएं और 4.5 प्रतिशत एससी स्पऋष्य 1% अन्य को दिया गया है। हम यह कह सकते हैं कि आरक्षण को उपायुक्त 4 वर्गों में वर्गीकृत किया गया है।

निष्कर्ष

भारत में आरक्षण नीति सामाजिक न्याय और समानता सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण पक्ष है। हालांकि वर्तमान में चुनाव के दौरान होने वाले आरक्षण बदलाव को राजनीति का मोहरा माना जाता है और राजनीति से प्रेरित एवं विभाजन कार्य के रूप में भी देखा जाता है।

आरक्षण की संवैधानिक वैधता:

सरकारी सेवाओं और संस्थानों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं पाने वाले पिछड़े समुदायों तथा उपलब्धि अनुसूचित जनजातियों से सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए भारत सरकार ने अब भारतीय कानून के जरिए सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र पर आरक्षण जैसे शब्द का इस्तेमाल किया था।

भारत में उपस्थित कुछ अन्य राज्यों में उपस्थित अल्पसंख्यक समुदाय के लिए आरक्षण –

भारत के कुछ अन्य राज्य में भी मुस्लिमों और पिछड़े वर्ग बीसी सूची में शामिल करके उनके लिए शैक्षणिक संस्थानों के साथ-साथ सार्वजनिक रोजगार में भी आरक्षण को विशेष रूप से लागू किया गया.

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